संगति की सूक्तियां Class 9 नैतिक शिक्षा Chapter 3 Explain HBSE Solution

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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 3 संगति की सूक्तियां / Sangati ki Suktiyan Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

संगति की सूक्तियां Class 9 Naitik Siksha Chapter 3 Explain


1. देवो देवेभिरागमत् । ऋग्वेद 1/1/5

भाव : परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है।

2. गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुर्हरेत् ।
पापं तापं तथा दैन्यं सद्यः साधुसमागमः । गर्ग संहिता (62/9)

भाव : गंगा पाप का, चन्द्रमा ताप का और कल्प वृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परन्तु सत्संग, पाप, ताप और दैन्य तीनों का तत्काल नाश कर देता है।

3. रत्नं रत्नेन संगच्छते । मृच्छकटिक 1/32

भाव : रत्न रत्न के साथ जाता है।

4. क्षीराश्रितमुदकं क्षीरमेव भवति । चाणक्य नीति

भाव : दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है।

5. सत्संगः स्वर्गवासः । चाणक्य नीति (519)

भाव : सज्जनों का संग स्वर्ग में वास के समान है।

6. सत्संगति कथय किन्न करोति पुंसाम्। नीतिशतक – 23

भाव : कहिए सत्संगति मानव का क्या नहीं करती अर्थात् सब कुछ करती है। यह मनुष्य की बुद्धि की जड़ता को हरती है, वाणी में सत्य का संचार करती है, सभी दिशाओं में सम्मान व उन्नति को बढ़ाती है, पाप से दूर करती है तथा हृदय को प्रसन्न रखती है।

7. सद्भिरेव सहासीत, सद्भिः कुर्वीत संगतिम् ।
सद्भिर्विवाहं मैत्रीं च, नासद्भिः किंचिदाचरेत् । ।

भाव : सज्जनों के साथ ही बैठना चाहिए, उनकी संगति करनी चाहिए। सदाचारी के साथ ही विवाह एवं मित्रता करनी चाहिए। दुर्जनों के साथ इनमें से कोई भी आचरण नहीं करना चाहिए।

8. सत्संगजानि निधनान्यपि तारयन्ति । उत्तररामचरित (भवभूति)

भाव : सत्संग में होने वाला मरण भी मनुष्य का उद्धार कर देता है।

9. वासो न संग: कैर्विधेयो मूर्खेश्च खलैश्च पापैः ।। शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी

भाव : किनके साथ निवास और संग नहीं करना चाहिए?- मूर्खो नीचों, दुष्टों और पापियों के साथ।

10. यादिसं कुरुते मित्तं यादिसं चूपसेवति ।
सोपि तादिसको होति सहवासो हि तादिसो ।।  सतिगुम्ब जातक

भाव : जो जैसे आदमी से मित्रता करता है, जैसे आदमी की संगति करता है, वह भी वैसा ही हो जाता है क्योंकि उसकी संगति ही वैसी है।

11. दोष गुण वि हवन्ति संसग्गिए । पउमचरिउ (स्वयम्भूदेव)

भाव : अच्छे संसर्ग में रहने से ही दोष गुणों में परिवर्तित होते हैं।

12. कबिरा संगत साध की, ज्यों गन्धी की बास ।
जो गन्धी कछु दे नहीं, तो भी बास सुवास ।। कबीरदास

भाव : साधू और सत्पुरुषों की संगत ऐसी है जैसे की गन्धी (इत्र बेचने वाला) हरदम अपने साथ इत्र और सुगन्धित प्रदार्थ रखता है वह गंध उसमे भी समां जाती है। यदि कोई गंधी के संपर्क में आता है। गन्धी के पास बैठे तो उसमे भी सुगंध आने लगती है चाहे प्रत्यक्ष रूप से गन्धी कुछ भी नहीं दे। 

13. सीप गयो मोती भयो कदली भयो कपूर
अहिमुख गयो तो विष भयो संगत के फल सूर । सूरदास

भाव : सूरदास संगती के प्रभाव को लक्ष्य कर कहते है हम जैसी संगती में बैठते हैं उसका प्रभाव हमारे संस्कारों पर अवश्यंभावी है जैसे स्वाती की बूंदे सीप के सम्पर्क से मोती, कदली से कपूर तो विषधर के साथ से जहर बन जाती है।

14. सठ सुधरहि सत्संगति पाई। पारस परसि कुधातु सुहाई । रामचरितमानस (तुलसीदास)

भाव : दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं।

15. पावक परत निषिद्ध लाकरी होति अनल जग जानि । कृष्ण गीतावली (तुलसीदास)

भाव : निषिद्ध लकड़ी (बबूल, बहेड़ा) भी अग्नि में पड़ने पर अग्निरूप ही हो जाती हैं, यह सम्पूर्ण जगत जानता है।

16. रहे समीप बड़ेन के, होत बड़ो हित मेल ।
सब ही जानत बढ़त है, बृच्छ बराबर बेल। वृन्द

भाव : यदि कोई व्यक्ति बड़े व्यक्ति का सामीप्य प्राप्त कर लेता है तो उस व्यक्ति को बड़े व्यक्ति के सहारे से बड़ा लाभ भी प्राप्त होता है। यह तो हम सभी जानते हैं कि वृक्ष के साथ रहने से लता भी उसके बराबर बढ़ जाती है। बड़े व्यक्ति से यहाँ तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसमें मानवीय गुण हों।

17. जिहिं प्रसंग दूषन लगे, तजिये ताको साथ |
मदिरा मानत है जगत, दूध कलारी हाथ ।। वृन्द

भाव : जिसके साथ बैठने से दोष लगता हो, उसका साथ छोड़ देना चाहिए। कलारी के हाथ के दूध को भी दुनिया मदिरा मान लेती है।

18. रहिमन नीच प्रसंग ते, नितप्रति लाभ विकार ।
नीर चौरावे सम्पुटी, मारि सहै धरि आर।। रहीम

भाव : नीच लोगों के साथ रहने से प्रत्येक दिन कुछ न कुछ नुकसान होता है। समय बताने बाली जल घड़ी का यन्त्र जल की चोरी करता है परन्तु चोरी की सजा घंटा बजाने बाले आदमी को मिलती है। यह प्राचीन काल में समय बताने का एक तरीका था।

19. जो साधुन सरणी परे तिनके कवन विचार
दन्त जीभ जिमि राखि है, दुष्ट अरिष्ट संहार । गुरु गोविन्द सिंह कृत विचित्र नाटक (13/25)

भाव : जो लोग श्रेष्ठ लोगों की शरण लेते हैं, उनकी क्या चिन्ता करनी? जैसे दाँतों से घिरी जीभ भी सुरक्षित रहती है, उसी प्रकार गुरुभक्त लोग भी दुष्टों और दुर्भाग्य से सुरक्षित रहते हैं।

20. जो जैसी संगति करता है, वो वैसा फल पाता है। महात्मा गांधी

21. मुझे बताइए आपके संगी साथी कौन हैं? और मैं बता दूँगा आप कौन हैं। गेटे

22. बदमाशों की संगति ने मेरा नाश कर डाला। शेक्सपियर

23. ख्वाहि की वेदानी ब यकीं दोजखरा ।
दोजख बजहां सोहबते ना अहल बुवद । उमर खैयाम

भाव : यदि तुम चाहते हो कि तुम निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है ? तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है।

24. मूढ़ों की संगति में ज्ञानी ऐसा है, जैसे अन्धों के साथ लावण्यमयी । शेखसादी

25. संगति करती है असर यह जाने सब कोय ।
जाते हैं सब बाग में बाग-बाग होय ।। रसिकेश


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