सरस्वती-सिंधु सभ्यता Class 6 इतिहास Chapter 1 Notes – हमारा भारत I HBSE Solution

Class 6 इतिहास NCERT Solution for chapter 1 सरस्वती-सिंधु सभ्यता notes for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 6 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of  हमारा भारत II Book for HBSE.

Also Read – HBSE Class 6 इतिहास – हमारा भारत I NCERT Solution

Also Read – HBSE Class 6 इतिहास – हमारा भारत I Solution in videos

HBSE Class 6 इतिहास / History in hindi सरस्वती-सिंधु सभ्यता / saraswati sindhu sabhyata notes for Haryana Board of chapter 1 in Hamara Bharat 1 Solution.

सरस्वती-सिंधु सभ्यता Class 6 इतिहास Chapter 1 Notes


गार्डन चाइल्ड के अनुसार यह सभ्यता 4000 वर्ष पुरानी मानी गई है। जबकि मार्टिमर व्हीलर ने इसका अनुमान 2000 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बीच माना है। परंतु नवीन खोजों के अनुसार यह सभ्यता 8000 साल पुरानी है।

सरस्वती नदी आदिबद्री से निकलकर हरियाणा के यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा से बहती हुई राजस्थान व गुजरात होती हुई अरब सागर में गिरती थी।

सिंधु नदी का अधिकतर प्रवाह पाकिस्तान में है। मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, बालाकोट जैसे प्रमुख स्थल इसी नदी के किनारे पर हैं।

सरस्वती सिंधु एवं उनकी सहायक नदियों के किनारे मिले अनेक नगर अवशेषों के आधार पर ही इस सभ्यता को सरस्वती सिंधु सभ्यता कहा जाता है।

पहली बार हड़प्पा तब देखने को मिला। जब वहां रेल लाइन बिछाने के लिए रोडे चाहिए थे तो मजदूर नजदीक एक टीले से ईंटों के रोड़े उठा लाए और तब पहली बार यह स्थान अंग्रेजी अधिकारियों की नजर में आया।

1921 ईस्वी में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के किनारे हड़प्पा की खुदाई करवाई गई तब एक विशाल नगर के अवशेष निकले। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से भी इसी प्रकार के अवशेष प्राप्त किए गए।

सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना

सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार पक्की ईंटों का बना हुआ था। इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनी है, चारों ओर कमरे बनाए गए हैं, कुएं से पानी निकालकर इसे भरा जाता था। इसे खाली करने के लिए नाली बनी है।

सरस्वती सिंधु सभ्यता की सड़कें और नालियां

इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।

सड़कों के दोनों ओर नालियां बनी थी। घरों में प्रयोग होने के बाद पानी इन नालियों में आकर गिरता था। यह नालियां पक्की ईंटों से बनी हुई थी और ढकी हुई थी। पानी इन नालियों से बहता हुआ मुख्य नाले में जाकर गिरता था। जो नगर से बाहर पानी को ले जाता था।

सरस्वती सिंधु सभ्यता में भवन निर्माण योजना

इस सभ्यता में घरों का निर्माण एक निश्चित योजना से किया जाता था। आमतौर पर घर दो मंजिल के होते थे। घर में आंगन होते थे तथा रसोईघर, स्नानागार व शौचालय की सुविधाएं होती थी। दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर न खुलकर गली में खुलते थे।

सरस्वती सिंधु सभ्यता में जनजीवन

इस सभ्यता के लोग नगरों के अतिरिक्त गांव में भी रहते थे। गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे।

यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी व हाथी आदि जानवर पालते थे। बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा व तोता आदि जानवर भी पालते थे। यह सभी जानवर उनके कृषि कार्य, यातायात व भोजन में सहायक थे।

सरस्वती सिंधु सभ्यता में माप तोल

सरस्वती सिंधु सभ्यता में कई स्थानों पर बड़ी और भारी वस्तुओं को तोलने के लिए बांट भी मिले हैं। इसके अलावा पत्थर, शंख, तांबे, कांसे, सोने और चांदी से बनी बहुत सारी वस्तुएं भी प्राप्त की गई हैं।

सरस्वती सिंधु सभ्यता में हार श्रृंगार

इस सभ्यता के लोग बहुत ही सुंदर आकार के सोने-चांदी और पत्थरों के गहने बनाते थे। जिनको उस समय की महिलाएं और पुरुष पहना करते थे।

सरस्वती सिंधु सभ्यता का व्यापार

इस सभ्यता के लोग वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करते थे। तांबा, टिन, सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों को भी दूर-दूर के क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।

सरस्वती सिंधु सभ्यता की मोहरे

हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं।

मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।

मनोरंजन के साधन :- इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा  बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।

इतिहास में तिथियां पढ़ने का तरीका

अंग्रेजी में B.C. जिसे हम हिंदी में ई.पू. कहते हैं। बी.सी. का अर्थ होता है ‘बिफोर क्राइस्ट’ व ई.पू. का अर्थ होता है ‘ईसा पूर्व।’

ईसा पूर्व का तात्पर्य यहां ईसा मसीह के जन्म से पहले के वर्षों से है। इसके अलावा हम कहीं बार हम अन्य शब्दों का भी प्रयोग करते हैं जैसे :- ए.डी. ( एनो डॉमिनी ), सी.ई. ( कॉमन एरा ), बी.सी.ई. ( बिफोर क्राइस्ट एरा )

इस पाठ से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां –

मेहरगढ़ में कपास की खेती लगभग 7000 वर्ष पहले होती थी।

सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अंत की शुरुआत 3900 वर्ष पहले हो गई थी।

सरस्वती सिंधु सभ्यता लगभग 8000 वर्ष पुरानी है।

इस सभ्यता के नगरों की शुरुआत लगभग 4700 वर्ष पहले हो गई थी।

  • खुदाई में मिले अवशेषों से हमें पता चलता है कि सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग वटवृक्ष, तुलसी, शिवलिंग, पशुपति शिव, कूबड़ वाले नंदी, मातृदेवी की पूजा करते थे।

Leave a Comment