विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार Class 7 इतिहास Chapter 4 Notes – हमारा भारत II HBSE Solution

Class 7 इतिहास BSEH Solution for chapter 4 विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार notes for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 7 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of  हमारा भारत II Book for HBSE.

Also Read – HBSE Class 7 इतिहास – हमारा भारत II Solution

Also Read – HBSE Class 7 इतिहास – हमारा भारत II Solution in Videos

HBSE Class 7 इतिहास / History in hindi विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार / Vishwa me Bhartiya Sanskriti ka Prsar notes for Haryana Board of chapter 4 in Hamara Bharat II Solution.

विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार Class 7 इतिहास Chapter 4 Notes


भारत की विश्व में प्रसिद्धि के कारण दक्षिण-पूर्वी एवं दक्षिण एशियाई देशों (वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड, कंबोडिया वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि) के लिए ‘इंडीज’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। ‘इंडीज’ शब्द भारत की प्रसिद्ध नदी ‘सिंधु’ (इण्डस) से लिया गया है। भारतीयों ने कभी भी अपनी संस्कृति एवं विचारों को किसी पर भी बलपूर्वक थोपने का प्रयास नहीं किया। अन्य देशों के लोगों ने भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को स्वेच्छा से अपनाया और आत्मसात् किया है।

व्यापार :

भारत में प्राचीन काल में काशी, मथुरा, उज्जैन, पाटलिपुत्र आदि अनेक संपन्न नगर तथा भृगुकच्छ, ताम्रलीप्ति, कावेरीपट्टनम, अरिकमेडु आदि विकसित बंदरगाहें स्थित थी। 500 ई. पूर्व के लगभग समुद्री व्यापार के बढ़ने के परिणामस्वरूप इन संपन्न नगरों तथा बंदरगाहों से भारतीय व्यापारी, व्यापार के नए-नए अवसरों की खोज में दूर-दूर देशों की यात्राएं करते थे। ये व्यापारी जहां भी गए भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों को भी अपने साथ ले गए। उनमें से कुछ व्यापारी तो उन देशों में ही बस गए। इस प्रकार व्यापारियों ने भारतीय वस्तुओं के व्यापार के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के वाहक के रूप में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतीय विद्वान :

अनेकों भारतीय विद्वानों तथा आचार्यों ने भी अनेकों देशों की यात्राएं की तथा वहां भारतीय संस्कृति की कीर्ति पताका फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 67 ई. में चीन के शासक मिंग-ती के निमंत्रण पर कश्यप मार्तग तथा धर्मरक्षित नामक दो आचार्य चीन की यात्रा पर गए थे। एक अन्य भारतीय आचार्य कुमारजीव जब चीन गए तो वहां के शासक के अनुरोध पर उन्होंने अनेक संस्कृत ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रमुख आचार्य अतीश (दीपांकर श्रीज्ञान) जब ग्यारहवीं शताब्दी में तिब्बत गए तो उन्होंने वहां बौद्ध धर्म को एक मजबूत आधार प्रदान किया। परिणामस्वरूप अनेक तिब्बतियों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया तथा इसे तिब्बत का शासकीय धर्म घोषित कर दिया। आज भी तिब्बत के दलाई लामा बौद्ध धर्म के सबसे प्रमुख नेता हैं

शैक्षणिक केंद्र :

प्राचीन काल में भारत में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी आदि अनेक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे जो न केवल भारतीय अपितु विदेशी छात्रों और विद्वानों के लिए भी आकर्षण का केंद्र थे। विदेशी विद्वान प्रायः नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने तथा विभिन्न विषयों का अध्ययन करने आते थे। ऐसा बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का भवन सात मंजिला था। ये विद्यार्थी शिक्षा पूर्ण करके जब अपने देश वापस जाते थे तो भारतीय ज्ञान के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को भी अपने साथ ले जाते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भारत यात्रा के विवरण में भारत के दो विश्वविद्यालयों नालंदा और वल्लभी में अपने अनुभवों का उल्लेख किया है। इसी प्रकार तिब्बत के एक विद्वान तारानाथ ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय का वर्णन किया है तथा वहां प्राप्त ज्ञान का तिब्बत में प्रसार किया है। इस प्रकार शिक्षा के माध्यम से भारत से बाहर भारतीय संस्कृति का प्रसार हुआ था।

धर्म प्रचारक एवं राजदूत :

विदेशों में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के प्रचार-प्रसार में धर्म प्रचारकों एवं राजदूतों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राजा अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा था। उनके साथ-साथ अनेक बौद्ध भिक्षु भी वहां गए। ऐसी मान्यता है कि वह बौद्धगया के बोधिवृक्ष की एक टहनी भी अपने साथ श्रीलंका ले गए और उसे वहां रोपित किया। कालांतर में श्रीलंका में बौद्धधर्म इतना लोकप्रिय हो गया कि वहां पर महाविहार तथा अभयगिरी नामक दो बौद्ध मठों का निर्माण किया गया। लंबे समय तक श्रीलंका में बौद्ध धर्म वहां का मुख्य धर्म तथा पालि भाषा वहां की साहित्यिक भाषा बनी रही। भारत और कंबोडिया के बीच सांस्कृतिक संबंधों की जड़ें तब और भी गहरी हो गई जब भारतीय मूल के कौंडिन्य नामक ब्राह्मण ने वहां कौडिन्य राजवंश की स्थापना की।

विदेशी यात्री : मेगस्थनीज व डायोनिसियस आदि विद्वान मौर्य काल में भारत आये व चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में आया। उसने अपनी पुस्तक ‘फो-कुओ की’ में भारत की संस्कृति एवं सामाजिक परम्परा का वर्णन किया। ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासन काल में भारत आया और ‘सी-यू-की’ नामक पुस्तक लिखी । इत्सिंग ने भी भारत की सभ्यता व संस्कृति का वर्णन किया। अतः समय-समय पर काफी विदेशी यात्री भारत आये और भारत की संस्कृति का विश्व में अपने वृतांत के माध्यम से प्रसार किया।

दक्षिण एशियाई देशों पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव-

भाषाई प्रभाव :

विभिन्न देशों की भाषाओं पर भारतीय भाषाओं जैसे संस्कृत, प्राकृत, पालि आदि का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। उदाहरण के रूप में थाई भाषा में रावण का थोसाकाठा के नाम से उल्लेख मिलता है। जो संस्कृत मूल के शब्द ‘दसकंठ’ का थाई संस्करण है जिसका अर्थ है दस कंठ वाला। इसी प्रकार थाईलैंड के राजा ‘भूमिबोल अदुल्यादेज’ का नाम संस्कृत शब्द ‘अतुल्यतेज’ का ही थाई रूप है। बहुत से इंडोनेशियाई लोगों के नामों का उद्गम संस्कृत ही है। उदाहरण के लिए इंडोनेशिया के प्रमुख नेता ‘सुकर्णो’ तथा उनकी पुत्री का नाम ‘मेघावती सुकर्णोपुत्री’ है।

विभिन्न स्थानों का नामकरण संस्कृत भाषा में ही किया गया है।

  • उदाहरण के लिए लंबे समय तक दक्षिण-पूर्वी एशिया को ‘सुवर्णभूमि‘ या ‘सुवर्णद्वीप‘ के नाम से पुकारा जाता रहा है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के एयरपोर्ट का नाम आज भी ‘सुवर्णभूमि एयरपोर्ट’ ही है।
  • इंडोनेशिया की राजधानी ‘जकार्ता’ संस्कृत शब्द ‘जया कृत:’ से ही निकला है। इसी प्रकार इंडोनेशिया के ‘जावा’ का नाम संस्कृत के शब्द जावाद्वीप से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘यव’ यानि जौ के आकार का द्वीप। वर्तमान में भी विभिन्न स्थानों के नामकरण में संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है। उदाहरण के लिए 1962 में इंडोनेशिया के ‘न्यू गिनीज’ का नाम बदलकर ‘जयापुर’ रखा गया। इसी प्रकार आरेंज पर्वत को ‘जयविजय’ पर्वत कर दिया गया है। इंडोनेशिया के रक्षा मंत्रालय और खेल मंत्रालय को क्रमशः ‘युद्ध ग्रह’ तथा ‘क्रीड़ाभक्ति’ जैसे संस्कृत नामों से पुकारा जाता है।
  • 1999 में मलेशिया द्वारा अपनी राजकीय सीट का नाम बदलकर ‘पुत्रजय’ रखा गया है। मलेशिया की राजधानी का नाम है- ‘कुआलालंपुर’ जो संस्कृत मूल के शब्द ‘चोलानामपुरम’ यानि ‘चोलों का शहर’ का ही मलेशियाई संस्करण है। मलेशिया में ही एक पर्वतीय स्थल है जिसका नाम है ‘सुंगेई पट्टनी’ जो संस्कृत शब्द ‘श्रृंगपट्टनम से लिया गया है। ये सभी उदाहरण इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि अनेक देशों की भाषाएं भारतीय भाषा संस्कृत से प्रभावित रही हैं।

धार्मिक प्रभाव :

भारतीय धर्म प्रचारकों, बौद्ध भिक्षुओं, व्यापारियों तथा विदेशी यात्रियों के माध्यम से विश्व के विभिन्न भागों में हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार हुआ तथा ये वहां की संस्कृति का अभिन्न अंग बन गए। आज भी नेपाल, भूटान, श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार, कम्बोडिया, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया यहां तक कि जापान, कोरिया, चीन आदि देशों में हिंदू और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की बहुत संख्या है। इन देशों में हिंदू मंदिरों, बौद्ध स्तूपों, रामायण तथा महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों, जातक कथाओं, भारतीय पौराणिक कथाओं के अनेक प्रसंगों से जुड़े पात्रों व विभिन्न स्थानों का नामकरण तथा भारतीय जीवन पद्धति, रीति-रिवाजों, आध्यात्मिक मूल्यों के प्रमाण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। वर्तमान समय में कनाडा में सिक्ख समुदाय के प्रभावी होने से गुरुमुखी भाषा को दूसरी राष्ट्रीय भाषा माना गया है।

मंदिर

‘कंबोडिया’ में स्थित अंकोरवाट का विष्णु मंदिर, विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है। यह मंदिर भगवान ‘विष्णु’ को समर्पित है। इस मंदिर की दीवारों पर रामायण, महाभारत तथा पौराणिक आख्यानों के विभिन्न प्रसंगों का सुंदर चित्रण किया गया है। इनमें सबसे प्रमुख है- ‘समुद्र मंथन’ का चित्रण। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत के रूप में मान्यता दी गई है।

अंकोरवाट मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी की शुरुआत में खमेर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा अपने राज्य मंदिर के रूप में करवाया गया था।

इंडोनेशिया के जावा में स्थित ‘बोरोबदूर मंदिर’ विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर है। यह मंदिर भगवान बुद्ध को समर्पित बौद्ध धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जिसे भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं वाली 504 मूर्तियों से सुसज्जित किया गया है। इसे भी यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है।

इंडोनेशिया के जावा में ही ‘प्रम्बनन’ मंदिर स्थित है जो हिंदू त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) समर्पित है । तीन देवताओं के मंदिरों के सामने उनके वाहनों क्रमश: हंस, गरुड़ और नंदी के भी मंदिर बनवाए गए हैं। दोनों पंक्तियों के मध्य दुर्गा, गणेश को समर्पित दो मंदिर हैं। इन आठ मुख्य मंदिरों के अतिरिक्त 240 छोटे मंदिर हैं।

मलेशिया में स्थित ‘बातू गुफाएं भारत से बाहर स्थित अत्यंत लोकप्रिय हिंदू मंदिरों में एक मानी जाती हैं जो भगवान ‘मुरुगन’ (कार्तिकेय) को समर्पित हैं।

थाईलैंड में स्थित ‘एरावन मन्दिर’ भारत के राजस्थान में पुष्कर मंदिर के अतिरिक्त भारत से बाहर ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित ‘पशुपतिनाथ’ का प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

पौराणिक पात्र :

विश्व के अनेक देशों में सनातन धर्म ग्रंथों और पुराणों से संबंधित विभिन्न पात्रों को विशेष महत्त्व दिया गया है जो वहां के जनमानस के अवचेतन में भारतीय संस्कृति की गहरी छाप का स्पष्ट प्रमाण है।

कम्बोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर ‘अंकोरवाट मंदिर’ की प्रतिकृति अंकित है।

इंडोनेशिया की राष्ट्रीय विमान सेवा का नाम भगवान विष्णु के वाहन के नाम पर ‘गरुड़ इंडोनेशिया’ रखा गया है।

इंडोनेशिया के करेंसी नोटों पर भगवान गणेश का चित्र अंकित है तथा वहां के राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर भी गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित किया गया है।

‘बैंकॉक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ के बाहर एक शानदार मंदिर का निर्माण किया गया है जिसमें भगवान गणेश की सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई है।

मलेशिया में सेना प्रमुख को ‘लक्ष्मण’ कहा जाता है जो राम-रावण युद्ध में भगवान श्रीराम की विजय में उनके छोटे भाई लक्ष्मण की महत्त्वपूर्ण भूमिका से प्रेरित है।

भारतीय पौराणिक स्थानों के नाम पर विभिन्न स्थानों का नामकरण –

  • थाईलैंड में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि ‘अयोध्या’ के नाम से मिलते-जुलते नाम वाले एक शहर ‘अयुथिया’ के अवशेष मिले हैं।
  • इंडोनेशिया के शहर ‘मदुरा’ का नाम भगवान कृष्ण की जन्मभूमि ‘मथुरा’ अथवा दक्षिण भारत के प्रमुख नगर ‘मदुरै’ से मिलता-जुलता है।

अन्य देशों पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव –

चीन, जापान, कोरिया एवं अरब देशों में भी भारतीय संस्कृति का प्रसार हुआ।

कांचीपुरम के एक विद्वान बोधिधर्म के माध्यम से भारतीय योग और ध्यान की विधि चीन पहुंची जो वहां पर ‘चॉन’ के नाम से लोकप्रिय हुई। चौथी शताब्दी में ‘वी’ राजवंश के प्रथम शासक सम्राट ‘डाऊन’ ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर इसे चीन का राजकीय धर्म घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप चीन में बौद्ध धर्म लोकप्रिय हो गया।

चीन के उत्तर-पूर्व स्थित देश कोरिया में भी बौद्ध धर्म चीन के रास्ते पहुंचा। 352 ई. में ‘सनदो’ नामक बौद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध की प्रतिमा तथा उनके सूत्र लेकर कोरिया गया । 404 ई. में कोरिया के प्रोग्यांग शहर में दो बौद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ। आठवीं और नौवीं शताब्दी में चीन के ही रास्ते ‘ध्यान योग’ की पद्धति कोरिया पहुंची तथा वहां के राजाओं, रानियों, राजकुमारों, मंत्रियों यहां तक कि योद्धाओं ने भी एकाग्रता, निडरता एवं वीरता जैसे गुणों का विकास करने के लिए बड़े पैमाने पर इसका प्रशिक्षण प्राप्त किया। कोरिया में बौद्ध ग्रंथों को छापा गया।

जापान में भारतीय संस्कृति के सबसे पहले प्रमाण 552 ई. के आसपास मिलते हैं जब कोरिया के सम्राट ने जापान के सम्राट को भगवान बुद्ध की प्रतिमा, उनके सूत्र, पूजा यंत्र भेंट के रूप में भेजे। जल्द ही हजारों की संख्या में जापानी लोग बौद्ध भिक्षु बन गए और बौद्ध धर्म को जापान में राजकीय धर्म का दर्जा दे दिया। संस्कृत को जापान में पवित्र भाषा के रूप में मान्यता मिली और बौद्ध भिक्षु संस्कृत के वर्णों और मंत्रों को लिखने का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे । इन्होंने जिस लिपि का प्रयोग किया उसे ‘शीत्तन’ के नाम से जाना जाता है जो संस्कृत मूल के शब्द ‘सिद्धम’ का जापानी संस्करण माना जाता है यानि ऐसी लिपि जो ‘सिद्धि’ प्रदान करे।

हिमालय के उत्तर में स्थित तिब्बत, बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है। सातवीं शताब्दी में तिब्बत के शासक नारदेव ने अपने मंत्री ‘थोनमी संभोत’ को 16 विद्वानों के साथ मगध भेजा। जहां उन्होंने भारतीय आचार्यों से शिक्षा ग्रहण की तथा तिब्बत में एक नई लिपि का प्रतिपादन किया जो भारत की ‘ब्राह्मी लिपि’ के वर्णो पर आधारित थी। उसने पाणिनी के संस्कृत व्याकरण के आधार पर एक नए व्याकरण की भी रचना की जिसके बाद अनेक संस्कृत ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया।

नालंदा, प्रमबनन मंदिर, बोरोबदूर मंदिर व अंकोरवाट मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।

भारत और अरब देश स्थल और समुद्री दोनों मार्गों से जुड़े हुए थे। खगोल विज्ञान का प्रसिद्ध ग्रंथ ‘ब्रह्म-स्फुट – सिद्धांत’ अरब देशों में ‘सिंधिंन’ के नाम से जाना जाता था। भारतीय गणित को अरब देशों में ‘हिंदिसा’ यानि ‘हिन्द से लिया गया’ के नाम से पुकारा जाता था। भारतीय दशमलव प्रणाली और शून्य का सिद्धांत अरब लोगों ने भारतीयों के संपर्क से ही सीखा था। भारतीय चिकित्सा पद्धति पर आधारित अनेक ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया गया।

माइंड मैप

  • प्राचीन काल से ही विभिन्न माध्यमों से भारतीय संस्कृति का विश्व के अनेक भागों में प्रसार हुआ।
  • अनेक संस्कृत ग्रंथों का विभिन्न देशों की भाषाओं में अनुवाद किया गया।
  • ‘रामायण’, ‘महाभारत’ जैसे ग्रंथ अनेक देशों में अत्यंत लोकप्रिय हुए।
  • प्राचीन काल से ही भारत शिक्षा का प्रमुख केंद्र था और यहां के शिक्षण संस्थान अपने उच्च शैक्षिक मानदंडों के कारण विदेशी विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे।
  • भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर अनेक देशों में हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ।
  • भारतीय भाषा ‘संस्कृत’ तथा भारतीय लिपि ‘ब्राह्मी’ का अनेक देशों की भाषाओं और लिपियों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • विदेशी विद्यार्थी भारतीय संस्कृति के वाहक बने।
  • भारतीय खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा-पद्धति, योग-ध्यान आदि का विश्व के कोने-कोने में प्रसार हुआ।
  • अनेक देशों में हिन्दू तथा बौद्ध धर्म को प्रमुख धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

Leave a Comment

error: