भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका Class 9 इतिहास Chapter 9 Question Answer – हमारा भारत IV HBSE Solution

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HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका / Bhartiya Rashtariya Andolan me haryana ki bhumika Question Answer for Haryana Board of chapter 9 in Hamara bharat IV Solution.

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका Class 9 इतिहास Chapter 9 Question Answer


रिक्त स्थान भरें

  1. सुर्जीअर्जुन गांव की संधि ________ ई. में हुई।

  2. दुजाना में क्रांति का नेतृत्व __________ ने किया।

  3. रोहतक में क्रांति का बिगुल __________ के नेतृत्व में बजा।

  4. राव तुलाराम का देहांत ________ शहर में हुआ।

उत्तर 1. 1803 ई., 2. हसन अली, 3. बिरासत खां, 4. काबुल


उचित मिलान करो

केंद्र क्रांतिकारियों के नाम
  1. झज्जर के नवाब
  2. झाड़सा परगना के शासक
  3. रानियां के नवाब
  4. हांसी
  5. बल्लभगढ़
  • चौधरी बख्तावर सिंह
  • राजा नाहर सिंह
  • लाला हुकुमचंद जैन
  • अब्दुर्रहमान खान
  • नूर समद खां

उत्तर

केंद्र क्रांतिकारियों के नाम
  1. झज्जर के नवाब
  2. झाड़सा परगना के शासक
  3. रानियां के नवाब
  4. हांसी
  5. बल्लभगढ़
  • अब्दुर्रहमान खान
  • चौधरी बख्तावर सिंह
  • नूर समद खां
  • लाला हुकुमचंद जैन
  • राजा नाहर सिंह

फिर से जाने

  1. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1938 ई. में हिसार के सातरोड़ गांव में आए।

  2. राव तुलाराम का साथ देने वाले उनके चचेरे भाई का नाम राव गोपाल देव था।

  3. नसीबपुर का युद्ध राव किशन सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया।

  4. आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन 1943 ई. में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने किया।

  5. हरियाणा में स्थित दो रियासत जीन्द व कैथल थी।

  6. हरियाणा राज्य 1 नवम्बर, 1966 ई. को अस्तित्त्व में आया।


आइये विचार करें :


प्रश्न 1. 1857 ई. की क्रांति में हरियाणा के विभिन्न जिलों का अपना योगदान रहा है। क्रांतिकारियों के नेतृत्व का वर्णन करते हुए विस्तारपूर्वक चर्चा करें।

उत्तर – इस क्रान्ति में साधारण जनता से लेकर सैनिकों तथा रियासतों के शासकों सहित सभी ने भाग लिया। रेवाड़ी के राव तुलाराम, बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह आदि प्रमुख शासक थे, जिन्होने क्रांति में हरियाणा का नेतृत्व किया। क्रांति की ज्वाला अम्बाला, रेवाड़ी, गुडगाँव, हांसी, रोहनात, रोहतक, हिसार, सिरसा, पानीपत, कुरुक्षेत्र, वल्लभगढ़ आदि स्थानों पर पूरी तरह से धधकती रही।

अम्बाला में क्रांति – 1857 ई. की महान क्रांति का आरम्भ हरियाणा में अंबाला से हुआ। मेरठ में यह क्रांति की ज्वाला भड़कने से नौ घंटे पहले अम्बाला में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। विद्रोह करने वाली फौज में प्रमुख रूप से 60वीं व 5वीं देशी पलटनें थी। परन्तु इनके विद्रोह को दबा दिया गया।

गुडगाँव एवं बल्लभगढ़ में क्रांति – 13 मई को 300 सैनिक गुड़गाँव पर आक्रमण करने के लिए बढ़ चले। गुड़गाँव के कलैक्टर-मैजिस्ट्रेट फोर्ड ने इन क्रांतिकारियों को रोकने का असफल प्रयास किया। 14 मई को क्रांतिकारियों ने गुड़गाँव के कलैक्टर ऑफिस पर आक्रमण कर दिया। फोर्ड गुड़गाँव छोड़ कर भोंडसी होते हुए मथुरा की तरफ भाग गया।

हांसी में क्रांति – 1857 ई. में क्रांति के समय हांसी छावनी में अंग्रेजों की हरियाणा लाईट इन्फैन्ट्री की दो कम्पनियां, चौथी इररेग्युलर केवलरी के 900 सवार, दादरी केवलरी के 800 सवार तैनात थे। 15 मई को चौथी इररेग्युलर केवलरी के जवानों ने बगावत का बिगुल बजा दिया। बाकी दिल्ली की ओर चल पड़े। इसके 14 दिन बाद शेष सैनिकों ने भी बगावत कर दी। अंग्रेजों के आवास, दफ्तर जला दिये गए व सम्पत्ति लूट ली गई।

रोहनात में क्रांति – गांव रोहनात हांसी से आठ मील दक्षिण की ओर स्थित है। अंग्रेज सैनिकों ने 800 घुड़सवार व 4 तोपें लेकर तोशाम पर हमला किया और उसके बाद रोहनात गाँव पर अंग्रेजी सेना व बीकानेर के सैनिकों ने जबरदस्त हमला किया, जिसका गाँव के देशभक्त क्रांतिकारियों ने जेली, बल्लम, गंडासों आदि हथियारों से डटकर मुकाबला किया। इसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई।  

हिसार में क्रांति – हांसी में विद्रोह की ज्वाला सुलगने के तीन घंटे बाद हिसार जिले के मुख्यालय में भी विद्रोह भड़क उठा तब हिसार जिले के जिलाधीश डिप्टी कमिश्नर मि. बेबर्न को उनके परिवार सहित कत्ल कर दिया गया। विद्रोहियों ने हिसार के खजाने से एक लाख सत्तर हजार रुपये अपने कब्जे में ले लिये। इस विद्रोह की आग में हांसी व हिसार में कुल 23 अंग्रेज अफसरों का वध किया गया। गाँव के लोगों ने अपने स्वदेशी हथियारों के साथ हमला किया और किले में 11 अंग्रेज अफसरों को मार डाला।

सिरसा में क्रांति – 12 मई को यह महान क्रांति दोपहर को दो बजे सिरसा पहुंची। क्रांति की लहर के वशीभूत हरियाणा लाइट पलटन तथा चौदह नम्बर की टुकड़ी ने सिरसा नगर में विद्रोह का बिगुल बजा दिया। रानियां के भट्ठी नवाब नूर समद खां ने अपने चाचा गुलाम अली खां के साथ 4000 भट्टी सैनिकों को लेकर सिरसा पर कब्जा कर लिया व अपने आपको गवर्नर घोषित कर दिया।

रेवाड़ी में क्रांति – राव तुलाराम दूर-दृष्टि रखने वाला एक जनरल था। उसने पटौदी की इस छोटी-सी टक्कर से शावर्स की सेना की ताकत का अंदाजा लगा लिया। शावर्स के रेवाड़ी पहुंचने से पहले ही राव तुलाराम ने 5 अक्टूबर, 1857 ई. को किला खाली कर दिया। कप्तान हडसन राव तुलाराम की मिलिट्री तैयारी से बड़ा ही आश्चर्य चकित हुआ। राव तुलाराम पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने सहायता के लिए विदेश जाने का प्रयास किया परन्तु अफगानिस्तान तक ही पहुंच पाए और काबुल में 23 सितम्बर, 1863 ई. को उनका देहांत हो गया। इनके बलिदान के कारण ही रेवाड़ी को ‘वीरभूमि’ भी कहा जाता है।


प्रश्न 2. 1857 ई. की क्रांति में राव तुलाराम की क्या भूमिका रही? व्याख्या करें।

उत्तर – राव तुलाराम दूर-दृष्टि रखने वाला एक जनरल था। उसने पटौदी की इस छोटी-सी टक्कर से शावर्स की सेना की ताकत का अंदाजा लगा लिया। शावर्स के रेवाड़ी पहुंचने से पहले ही राव तुलाराम ने 5 अक्टूबर, 1857 ई. को किला खाली कर दिया। राव तुलाराम पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने सहायता के लिए विदेश जाने का प्रयास किया परन्तु अफगानिस्तान तक ही पहुंच पाए और काबुल में 23 सितम्बर, 1863 ई. को उनका देहांत हो गया।

 


प्रश्न 3. 1857 ई. की क्रांति में रोहनात गांव की भूमिका पर विचार करें।

उत्तर – गांव रोहनात हांसी से आठ मील दक्षिण की ओर स्थित है। अंग्रेज सैनिकों ने 800 घुड़सवार व 4 तोपें लेकर तोशाम पर हमला किया और उसके बाद रोहनात गाँव पर अंग्रेजी सेना व बीकानेर के सैनिकों ने जबरदस्त हमला किया, जिसका गाँव के देशभक्त क्रांतिकारियों ने जेली, बल्लम, गंडासों आदि हथियारों से डटकर मुकाबला किया। इसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई। परंतु सितम्बर के आखिरी दिनों में अंग्रेजों की पकड़ मजबूत होने लगी। अंग्रेजों ने तोपों के साथ गाँव रोहनात पर हमला किया। बहुत से हिस्सों को जला दिया गया जिसमें सैंकड़ों क्रांतिकारी शहीद हुए । ‘मंगल खां’ व ‘बिरड़ दास बैरागी’ को तोप से उड़ा दिया गया व ‘रूपा खाती’ को मार डाला गया। अन्य साथियों को हांसी ले जाकर पत्थर की गिरड़ी के नीचे कुचल दिया गया।


प्रश्न 4. असहयोग आंदोलन में हरियाणा के योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर –  1920 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ। इसमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन को चलाने का निर्णय लिया गया। अतः हरियाणा में लाला लाजपत राय, लाला दुनी चन्द, लाला मुरलीधर, गणपतराय आदि महान राष्ट्रीय नेताओं ने विभिन्न शहरों में जनसभाएँ आयोजित की। असहयोग आंदोलन के अन्तर्गत सरकार को किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का निर्णय लिया गया, जिसके परणामस्वरूप प्रदेश के सैकड़ों लोगों ने उपाधियाँ त्याग दी। विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जाना बन्द कर दिया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी। किसानों द्वारा कर देना बन्द कर दिया गया। विभिन्न शहरों में शराब की दुकानों एवं विदेशी सामान बेचने बाली दुकानों के सामने धरने दिये जाने लगे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई और खादी पहनने की शपथ ली गई। हरियाणा में असहयोग आंदोलन गाँव-गाँव तथा शहर-शहर में बड़ी सफलता से चल रहा था। इससे सरकार घबरा गई और उसने आंदोलनकारियों की धर-पकड़ आरम्भ कर दी। हरियाणा से हजारों की संख्या में आंदोलनकारी गिरफ्तार किये गए। झज्जर के पंडित श्रीराम शर्मा ने भी असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने व्यक्तियों को न केवल एकजुट होने अपितु विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने के लिए भी प्रेरित किया।


प्रश्न 5. आप किस प्रकार कह सकते हैं कि आजाद हिंद फौज में हरियाणा की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी? अपने विचारों से स्पष्ट करें।

उत्तर – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा 1943 ई. में आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन करके भारत की स्वतंत्रता के लिए सिंगापुर में सेना का गठन किया गया। हरियाणा से लगभग 398 अधिकारी तथा 2317 सैनिक आजाद हिन्द फौज में भारत की स्वतंत्रता के लिए शामिल हुए। प्रदेश के इन सेनानियों ने असहनीय कष्ट झेलते हुए अंग्रेजो के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया। नागालैण्ड व अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह पर स्वदेशी झण्डा फहराया गया। अतः हरियाणा के वीरों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में अपनी कुर्बानी देने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पूरे भारत में हरियाणा से सबसे अधिक सैनिक आजाद हिंद फौज में भर्ती हुए थे।


प्रश्न 6. हरियाणा कब व किस प्रकार एक पूर्ण राज्य के रूप में विकसित हुआ? स्पष्ट करें।

उत्तर – स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हरियाणा पंजाब राज्य के साथ जुड़ा हुआ था। इसके आर्थिक व सामाजिक हितों की निरंतर उपेक्षा की जा रही थी जिससे यहाँ के लोगों को अनुभव होने लगा कि पंजाब में रह कर उनका राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विकास नहीं हो सकता। इसके फलस्वरूप अलग प्रान्त के निर्माण के लिए आंदोलन छिड़ गया ।

अलग प्रान्त की मांग को और अधिक प्रबल बनाने के लिए आर्य समाज, हिन्दू महासभा तथा जनसंघ आदि संगठनों ने इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन किए। पंडित श्रीराम शर्मा की अध्यक्षता में ‘हरियाणा विकास कमेटी’ द्वारा हरियाणा को अलग प्रांत की मांग को पुरजोर तरीके से रखा गया। पंजाब सरकार ने बहुत लोगों को जेलों में बन्द कर दिया लेकिन विरोध बढ़ता देखकर एक अलग प्रान्त की मांग को स्वीकार कर लिया गया। एक विधेयक के अनुसार 1 नवम्बर, 1966 ई. को हरियाणा का एक पूर्ण राज्य के रूप में उदय हुआ।


 

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