NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 बालगोबिन भगत पाठ का सार for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board, Up Board, RBSE and Some other state Boards. We also Provides पाठ का सार और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर for score Higher in Exams.
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NCERT Solution of Class 10th Hindi Kshitij bhag 2/ क्षितिज भाग 2 Balgobin Bhagat / बालगोबिन भगत Summary / पाठ का सार Solution.
बालगोबिन भगत Class 10 Hindi पाठ का सार ( Summary )
‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इस रेखाचित्र के माध्यम से लेखक ने एक ऐसे संन्यासी का वर्णन किया है जो वेश-भूषा या बाह्य-आडंबरों से संन्यासी नहीं लगता था। लेखक के अनुसार उनके संन्यासी होने का आधार मानवीय जीवन के प्रति प्रेम था। वे वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक रूढ़ियों के विरोधी थे इस रेखाचित्र के माध्यम से हमें ग्रामीण जीवन की झलक भी देखने को मिलती है।
लेखक बचपन में स्वयं को पक्का ब्राह्मण मानता था वह ब्राहमण की पहचान कराने वाली सभी क्रियाएं करता था। वे इस बात पर विश्वास करते थे कि ब्रह्म का जाता केवल ब्राहमण होता है। एक तेली के आगे लेखक का गर्व से ऊँचा सिर स्वयं ही झुक जाता था। हमारे समाज में तेली का यात्रा के समय मिलना अच्छा नहीं समझा जाता था बाल गोबिन साठ वर्ष के मंझोले कद के व्यक्ति थे वे केवल कमर में एक लंगोटी तथा कबीरपंथियों वाली कनपटी टोपी पहनते थे । सर्दियों में काली कंबली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका तथा गले में तुलसी की जड़ा की माला पहनते थे। बालगोबिन एक गृहस्थ व्यक्ति थे। उनके बेटा-बह थे ये खेती- बाड़ी का काम करते थे। बालगोबिन गृहस्थ होते हुए साधु थे। वे ‘कबीर’ की मान्यताओं को बहुत मानते थे । उन्हीं के गीतों को गाते थे। वे ‘कबीर’ को ‘साहब’ मानते थे। ‘कबीर की मान्यताओं के अनुसार वे न कभी झूठ बोलते थे, न किसी की चीज़ को हाथ लगाते थे और न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। उनकी हर चीज़ पर ‘साहब’ का अधिकार था। वे अपने खेत की पैदावार को सिर पर रख ‘कबीर’ के मठ पर जाते। उस पैदावार को भेट स्वरूप चढ़ाते और जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते थे।
लेखक बालगोबिन भगत के गायन पर मुग्ध था उनका गायन सदा ही सबको सुनने को मिलता था आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। इसका कारण यह था कि बालगोविन अपने खेतों में रोपाई करते समय गाना गाते थे उनके कंठ से निकले एक-एक शब्द ऐसे लगते थे जैसे कुछ ऊपर स्वर्ग में जा रहे हैं और कुछ पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया साथ होते हुए प्रियतमा अपने को अकेली समझती है इसलिए बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फ़ागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खिचड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना की चरम सीमा सब लोगों ने उस दिन देखी, जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा था। उनका बेटा दिमागी तौर पर सुस्त था। बालगोबिन उस पर अधिक ध्यान देते थे। उनके अनुसार ऐसे लोगों को अधिक देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है। उनके बेटे की बहू बहुत सुघड़ और सुशील थी। उसने आते ही घर के सारे काम को संभाल लिया था। उसने बालगोबिन भगत को दुनियादारी से काफ़ी सीमा तक मुक्त कर दिया था। जिस दिन बालगोबिन का लड़का मरा सारा गाँव उसके घर इकट्ठा हो गया। बालगोविन को देखकर सभी लोग हैरान थे। उन्होंने अपने बेटे को आँगन में चटाई पर लिटा रखा था। उस पर सफ़ेद कपड़ा दे रखा था। कुछ फूल और तुलसी के पत्ते उस पर बिखेर रखे थे वे पास में ही आसन पर बैठे गीत गा रहे थे। कमरे में उनकी पुत्रवधू रो-रही थी। वे बीच-बीच में उसे चुप कराते और कहते कि उसे रोना नहीं चाहिए। यह समय तो उत्सव मनाने का है। उनके बेटे की आत्मा परमात्मा में मिल गई है। आज प्रियतमा का अपने पिया से मिलन हो गया है। यह तो आनंद की बात है। लेखक को लग रहा था कि वे पागल हो गए हैं। उन्होंने अपने बेटे का क्रिया-क्रम अपने बेटे की बहु से करवाया था। श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर उन्होंने बहू को उसके घर भेज दिया था उन्होंने उसके घरवालों से उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया था। बहू ने उनकी बात मानने से इन्कार कर दिया। वह उनके पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। उसे इस बात की बहुत चिंता थी कि बुढ़ापे में उनका ध्यान कौन रखेगा। लेकिन बालगोबिन भगत अपने कारण बहू का जीवन ख़राब नहीं करना चाहते थे और वे जवानी में संन्यास लेने के विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने उसे घर छोड़ने की धमकी दी कि यदि वह अपने पिता के घर नहीं गई तो वे घर छोड़ कर चले जाएंगे। उनकी यह बात सुनकर बहू अपने घर चली गई।
बालगोबिन भगत के स्वभाव के अनुरूप ही उनकी मृत्यु हुई थी। वे प्रतिवर्ष पैदल ही गंगा स्नान के लिए जाते थे। गंगा-स्नान के बहाने वे संतों से मिलते थे। गंगा उनके गाँव से तीस-कोस दूर थी। वे घर से ही खा-पीकर चलते थे और लौट कर घर पर ही आकर खाते थे। रास्ते भर वे गाते-बजाते जाते थे उनको आने-जाने में चार दिन लग जाते थे। अब वे बूढ़े हो गए थे लेकिन उनका लंबा उपवास और गायन लगातार चलता था। इस बार वे गंगा स्नान से लौट कर आए तो उनकी तबीयत खराब थी। बुखार में भी नियम-व्रत नहीं तोड़े। लोगों ने उन्हें सब कुछ छोड़कर आराम करने के लिए कहा परंतु सबका कहना वे हँस कर टाल देते थे। एक दिन उन्होंने संध्या को गीत गाए लेकिन रात को जीवन की माला का धागा टूट गया था। लोगों को सुबह बालगोबिन भगत के गीतों का स्वर नहीं सुनाई दिया तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर से आत्मा निकल कर परमात्मा से मिल गई थी।