भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण एवं विस्थापितों का पुनर्वास Class 9 इतिहास Chapter 8 Question Answer – हमारा भारत IV HBSE Solution

Class 9 इतिहास BSEH Solution for chapter 8 भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण एवं विस्थापितों का पुनर्वास question answer for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of  हमारा भारत IV Book for HBSE.

Also Read – HBSE Class 9 इतिहास – हमारा भारत IV Solution

HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण एवं विस्थापितों का पुनर्वास / bharat ka vibhajan, riyaston ka ekikaran avam vishthapito ka punarvas question answer for Haryana Board of chapter 8 in Hamara bharat IV Solution.

भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण एवं विस्थापितों का पुनर्वास Class 9 इतिहास Chapter 8 Question Answer


फिर से जानें :

  1. सरदार बल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क कहा जाता है।

  2. स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 562 रियासतें थी।

  3. कश्मीर के शासक का नाम महाराजा हरि सिंह था।

  4. भारत का विभाजन साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ।

  5. जिन्ना का संबंध मुस्लिम लीग से था।

  6. शरणार्थियों का सबसे बड़ा शिविर कुरुक्षेत्र में लगा।


आइये विचार करें :


प्रश्न 1. भारत का विभाजन किन कारणों से हुआ?

उत्तर

1. अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति – भारत में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अंग्रेज़ों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् भारत में अंग्रेज़ों ने मुसलमानों का पक्ष लेना और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना आरम्भ कर दिया। उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों में आपसी फूट डालने का हर सम्भव प्रयास किया। इस नीति के परिणामस्वरूप ही 1947 ई. में भारत का विभाजन हुआ।

2. मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक विचारधारा – भारत के विभाजन का मुख्य कारण मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक विचारधारा थी। मुस्लिम लीग ने अपने उद्देश्य में स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय मुसलमानों के पृथक राजनीतिक अस्तित्व के रूप में उनके हितों की रक्षा करेगी। 1939 ई. में जब ब्रिटिश सरकार की मनमानी नीति के विरोध में कांग्रेस के मन्त्रीमण्डल ने त्याग पत्र दे दिया तो जिन्ना ने मुसलमानों को ‘मुक्ति दिवस’ मनाने के लिए कहा। 1940 में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए पृथक स्वतन्त्र देश पाकिस्तान की मांग संबंधी प्रस्ताव पास करके अलग स्वतन्त्र राज्य के लिए संघर्ष करना आरम्भ कर दिया। जिसके कारण विभाजन हुआ।

3. जिन्ना की हठधर्मिता – मोहम्मद अली जिन्ना बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति था, वह अपनी हठधर्मिता पर चलते हुए लंदन के तीनों गोलमेज सम्मेलनों में साम्प्रदायिकता का राग अलापता रहा। वह हर उस प्रस्ताव का विरोध करता रहा जिसमें पाकिस्तान का समर्थन नहीं था। उसने दंगे व कत्लेआम करवाकर कांग्रेस पर दबाव बनाया तथा पाकिस्तान बनवाने में सफल हो गया।

4. कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति – मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के मार्ग में बाधाएँ डालने की नीति अपनाई। दूसरी ओर कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मुस्लिम लीग का साथ चाहती थी। इनसे सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला। देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़क रहे थे, जिनके पीछे मुस्लिम लीग का ही हाथ था। कांग्रेस को अब यह विश्वास हो गया था कि देश की शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए देश के बंटवारे को स्वीकार करना आवश्यक है।

5. मुस्लिम लीग की प्रत्यक्ष कार्यवाही एवं साम्प्रदायिक दंगे – मुस्लिम लीग पाकिस्तान का निर्माण करने एवं सत्ता प्राप्त करने के लिए बेचैन हो रही थी। उसने कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया और 16 अगस्त, 1946 ई. को प्रत्यक्ष कार्यवाही की घोषणा कर दी। उस दिन बंगाल विशेषकर कलकत्ता में दंगे हुए। यहाँ मुसलमानों ने सैकड़ों हिन्दुओं की हत्या कर दी तथा उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया। शीघ्र ही साम्प्रदायिक दंगों की यह आग पूरे उत्तर भारत में फैल गई। ऐसी परिस्थिति में निर्दोष जनता के खून-खराबे को बंद करने के लिए कांग्रेस देश के विभाजन को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गई।


प्रश्न 2. क्या विभाजन को टाला जा सकता था?

उत्तर – हां, विभाजन को टाला जा सकता था। बहुत सारे मतभेदों के कारण मुस्लिम लीग और कांग्रेस का समझौता होना बहुत मुश्किल था। कांग्रेस के नेता सत्ता प्राप्त करने में लग गए और उन्होंने देश के विभाजन की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। महात्मा गांधी के प्रयासों में उनकी सहायता किसी ने नहीं की। मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी बातें मनवाने के लिए पूरे देश में दंगे करवा दिए ताकि नेताओं के ऊपर दबाव पढ़े और वह ज्यादा विचार ना करें।


प्रश्न 3. रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका पर विचार करें।

उत्तर – 4 जुलाई, 1947 ई. को सरदार पटेल द्वारा देशी शासकों से अपील की गई कि देश के सामूहिक हितों के लिए रियासतों को सुरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार सम्बन्धी विषयों पर भारतीय संघ में शामिल हो जाना चाहिए। तत्पश्चात् रियासतों के समायोजन सम्बन्धी पत्र तैयार किया गया। सरदार पटेल तथा उनके सचिव मेनन ने बहुत से शासकों से भेंट की और उनसे अधिमिलन सम्बन्धी पत्र पर हस्ताक्षर करने की अपील की। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप अधिकतर रियासतें स्वतंत्रता से पहले ही भारतीय संघ मे शामिल हो गईं। 15 अगस्त, 1947 ई. के पश्चात् भारत की स्वतन्त्र सरकार को रियासतों के सम्बन्ध में केवल जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर की समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि इन रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में शामिल होने से मना कर दिया। सरदार पटेल के योगदान को देखते हुए उन्हें ‘लोह पुरुष’ की उपाधि दी गई।


प्रश्न 4. जूनागढ़, हैदराबाद एवं कश्मीर के विलय पर विचार करें।

उत्तर

जूनागढ़ का विलय – जूनागढ़ काठियावाड़ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक प्रमुख रियासत थी। इस रियासत की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत हिन्दू तथा 20 प्रतिशत मुसलमान थे। जूनागढ़ का नवाब मुसलमान था। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी। नवाब की इस घोषणा का वहाँ की जनता ने घोर विरोध किया। जूनागढ़ के नवाब ने अपने पड़ोस की दो रियासतों में अपनी सेनाएँ भेज दी। ये दोनों रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो चुकी थी। भारतीय सरकार ने इसका उचित उत्तर देने के लिए ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेज दी। ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में सेना के पहुँचने पर नवाब ने पाकिस्तान से मदद की प्रार्थना की। मदद की कोई आशा न देखकर नवाब अपने परिवार तथा धन-दौलत सहित विमान द्वारा कराची चला गया। 20 फरवरी, 1948 ई. को जूनागढ़ में जनमत करवाया गया। इस जनमत में 99 प्रतिशत मत भारतीय संघ में सम्मिलित होने के पक्ष में थे। इस प्रकार जूनागढ़ को भारतीय संघ में शामिल किया गया।

हैदराबाद का विलय – हैदराबाद भारत की बड़ी रियासतों में से एक थी। 1947 ई. में मीर उसमान अली खाँ बहादुर, हैदराबाद का निज़ाम (शासक) था। हैदराबाद की रियासत में 85 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दुओं की थी। निजाम किसी भी संघ में शामिल नहीं होना चाहता था। उसने भारतीय संघ के सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। निज़ाम ने लार्ड माउंटबेटन की हैदराबाद में जनमत करवाने की मांग भी अस्वीकार कर दी। 29 नवम्बर, 1947 ई. में भारत की स्वतन्त्र सरकार और निज़ाम के बीच एक समझौता हो गया। इसके अनुसार भारत सरकार तथा निज़ाम दोनों ने मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हुए एक दूसरे के हितों में काम करने का वचन दिया परन्तु हैदराबाद का निजाम अधिक समय तक इस समझौते की शर्तों पर टिक न सका। उसने अपने फरमानों द्वारा हैदराबाद से भारत जाने वाली सभी मूल्यवान धातुओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। साथ ही उसने भारतीय सिक्कों को भी अवैध घोषित कर दिया। इसके अतिरिक्त हैदराबाद के निज़ाम ने भारतीय सरकार की स्वीकृति के बिना रियासत की सेना की संख्या भी बढ़ा दी। रज़ाकारों ने हैदराबाद के मुसलमानों को भड़काना आरम्भ कर दिया। अन्त में विवश होकर भारत सरकार ने हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया। 13 सितम्बर, 1948 ई. को मेजर जनरल जे. एन. चौधरी के नेतृत्व में सेना हैदराबाद भेजी गई । 18 सितम्बर, 1948 ई. को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई और उस पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् निज़ाम ने भारतीय संघ में शामिल होने की घोषणा कर दी।

कश्मीर का विलय – कश्मीर भारत के उत्तर में स्थित एक बड़ी रियासत थी। इस रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। रियासत की बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी। इस रियासत की सीमाएँ भारत तथा पाकिस्तान दोनों के साथ लगती थी। इसलिए दोनों देश इसे अपने देश में शामिल करने के इच्छुक थे, परन्तु कश्मीर का शासक किसी भी देश में शामिल नहीं होना चाहता था। कश्मीर की रियासत को अपने साथ मिलाने हेतु विवश करने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने कश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी कर दी। पाकिस्तान ने कश्मीर को अनाज, पेट्रोल तथा कई अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बन्द कर दी। सीमावर्ती क्षेत्रों में कबाइलियों द्वारा गड़बड़ी करवानी आरम्भ कर दी। 22 अक्टूबर, 1947 ई. को पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबाइली हमला करवा दिया। जम्मू कश्मीर की सेना ने कर्नल नारायण सिंह के नेतृत्व में कबाइलियों का मुकाबला किया। लड़ाई के दौरान रियासत के कुछ मुसलमान सैनिक भी कबाइलियों के साथ मिल गये। परिणामस्वरूप कबाइलियों ने रियासत के कई सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया तथा श्रीनगर की बिजली सप्लाई बन्द कर दी। ऐसी परिस्थितियों में कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 ई. को भारत की सरकार से सैनिक सहायता की अपील की और अपनी रियासत को भारतीय संघ में शामिल करना स्वीकार कर लिया।


प्रश्न 5. विस्थापितों की समस्याओं का वर्णन करते हुए उनके पुनर्वास पर चर्चा करें।

उत्तर

विस्थापितों की समस्याएँ – विभाजन के कारण सबसे अधिक दुःख एवं मुसीबतें पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिन्दुओं और सिक्खों को सहनी पड़ी। विस्थापित होकर भारत आए इन लोगों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित थीं :

  1. पहली समस्या विस्थापितों के लिए निवास स्थान उपलब्ध करवाने की थी। लाखों की संख्या में हिन्दू तथा सिक्ख अपने-अपने गाँव, शहर तथा घरों को छोड़ कर भारत आ गए थे। उनके पास भारत आने पर न घर था न ही छत जिसके नीचे रहकर वे अपना जीवन व्यतीत कर सकें।
  2. विस्थापितों की दूसरी बड़ी समस्या भोजन, वस्त्र तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की थी। पाकिस्तान से भारत आते हुए इन लोगों की धन-संपत्ति भी लूट ली गई थी। अब इनके पास भोजन, वस्त्र तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए धन भी नहीं था।
  3. तीसरी समस्या जमीन की थी। जो सिक्ख तथा हिन्दू जमींदार पाकिस्तान से भारत आए थे, उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था। भारत आने पर उनके पास कोई जमीन नहीं थी जिस पर वे खेती कर सकें जबकि पाकिस्तान में उनके पास कृषि योग्य उपजाऊ जमीन थी।
  4. चौथी समस्या रोजगार एवं व्यवसाय की थी। अधिकतर हिन्दू तथा सिक्ख विस्थापित पाकिस्तान के शहरों में रहने वाले थे और वहां उनका अच्छा व्यापार चलता था। इनमें कई अमीर साहूकार एवं व्यापारी थे। अनेक लोगों के पाकिस्तान में अपने उद्योग धन्धे थे।
  5. विस्थापितों की पांचवीं समस्या बिछुड़े हुए अपनों से मिलने की थी। भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आ रहे हिन्दू तथा सिक्ख विस्थापितों के परिवार बिखर गए। विस्थापन के अराजक माहौल में कई परिवारों से उनके सदस्य बिछड़ गए। ये लोग या तो दंगे की भेंट चढ़ गए या उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बना दिया गया।

भारत विभाजन के पश्चात् पाकिस्तान से लाखों की संख्या में आए हिन्दू एवं सिक्ख विस्थापितों के पुनर्वास एंव पुनर्स्थापना की समस्या अत्यन्त कठिन तथा गम्भीर थी। इस समस्या का समाधान करने के लिए एक विशेष ‘पुनर्वास विभाग’ की स्थापना की गई। भारत की सरकार ने पुर्नवास विभाग के माध्यम में विस्थापितों के पुनर्वास के लिए कई महत्वपर्ण कदम उठाए। भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘पुनर्वास विभाग’ ने विस्थापितों के रहने एवं उनकी देखभाल के लिए कई शहरों में विस्थापित शिविर स्थापित किए। इन शिविरों में विस्थापितों के लिए भोजन, कपड़े, आदि देने की व्यवस्था की गई। बीमार व्यक्तियों के लिए डॉक्टर तथा निःशुल्क दवाइयों की व्यवस्था की गई। विस्थापितों के लिए राशन कार्ड बनाए गए ताकि उन्हें आटा, चावल, दाल आदि वस्तुएँ दी जा सकें। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों को शहरों और गांव में बसाना शुरू कर दिया। उन्हें सरकार द्वारा काम करने के लिए रोजगार और जमीन उपलब्ध करवाई गई ‌‌।


आओ करके देखें :


प्रश्न 1. अपने आस-पास बसे किसी शरणार्थी परिवार से संपर्क कर उनसे विभाजन एवं विस्थापन पर चर्चा कर एक लेख लिखें।

उत्तर – छात्र स्वयं प्रयास करें।


प्रश्न 2. शरणार्थियों की जीवन शैली के स्थानीय जनता पर पड़े प्रभावों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर – शरणार्थियों की वजह से आम जनता पर बहुत सारे प्रभाव पड़े।

  • बहुत सारे इलाकों में भारी भीड़ इकट्ठी हो गई।
  • विस्थापन की वजह से लगभग पूरे उत्तर भारत में दंगे भड़के हुए थे।
  • लोगों को डर से अपना जीवन जीना पड़ रहा था।
  • लोगों की संपत्ति लूटी जा रही थी।

कल्पना करें :


प्रश्न 1. आप शरणार्थी शिविर में रह रहे एक विस्थापित हैं। आपके सामने कौन-कौन सी समस्याएं आएंगी तथा उनके आप क्या उपाय करेंगे?

उत्तर – अगर मैं शरणार्थी शिविर में रह रहा हूं तो मुझे बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा :-

  • खाने की समस्या
  • रहने की समस्या
  • रोजगार की समस्या
  • अपने परिवार की समस्या
  • जीवन की समस्या

इन सब समस्याओं से बचने के लिए मैं सरकार से सहायता मांगूंगा। खुद भी जीवन को बेहतर करने की कोशिश करूंगा और रोजगार की तलाश करुंगा।


 

Leave a Comment

error: