Class 9 इतिहास BSEH Solution for chapter 4 भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन notes for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of हमारा भारत IV Book for HBSE.
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HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन / Bhartiya Krantikari Andolan notes for Haryana Board of chapter 4 in Hamara bharat IV Solution.
भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन Class 9 इतिहास Chapter 4 Notes
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिकारी आंदोलन अहिंसात्मक आंदोलन के साथ साथ चलने वाला एक हिंसक संघर्ष था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को स्वतंत्र करवाना था। क्रांतिकारी, शक्ति के बल पर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के पक्ष में थे। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम विश्व युद्ध तक का क्रांतिकारी आंदोलन तथा प्रथम विश्व युद्ध के बाद का क्रांतिकारी आंदोलन।
क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति –
भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना के उदय के फलस्वरूप क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति हुई। भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति के कई कारण थे :
- समाज सुधार आंदोलनों द्वारा प्रेरणा।
- 1857 ई. की क्रांति से प्रेरणा।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के आर्थिक दोहन और शोषण के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
- अंग्रेजों द्वारा भारतीयों से दुर्व्यवहार के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
- राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं साहित्य से प्रेरणा।
- लाल, बाल, पाल एवं अरविंद घोष की विचारधारा से प्रेरणा।
- अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव।
क्रांतिकारियों के उद्देश्य एवं साधन –
क्रांतिकारियों में राष्ट्रीयता की ऐसी भावना थी कि वे देश के लिए अपने जीवन का बलिदान करने से भी नहीं हिचकिचाते थे। भारत के क्रांतिकारियों का प्रमुख उद्देश्य ‘स्वतंत्रता’ था।
क्रांतिकारियों के उद्देश्य :-
- भारत में ब्रिटिश सरकार का अस्तित्व समाप्त करके पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना।
- युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जागृत करना।
- सशस्त्र बल का प्रयोग करके क्रांति करना।
- युवाओं को संगठित करना।
- भारत में क्रांतिकारी संस्थाओं की स्थापना करना।
- लोकतंत्र की स्थापना।
- राष्ट्रीय सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना।
- व्यवस्था में बदलाव करना।
क्रांतिकारियों के सिद्धांत एवं साधन :-
- संवैधानिक एवं उदारवादी विचारधारा में अविश्वास ।
- सशस्त्र संघर्ष एवं क्रांति में विश्वास ।
- आत्मबलिदान की भावना पर बल ।
- राष्ट्रहित में ‘मारो या मरो’ के सिद्धांत में विश्वास।
- क्रांतिकारी संगठनों व संस्थाओं का निर्माण।
- जन-जागृति में विश्वास।
- राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत साहित्य, पत्रक एवं समाचार पत्रों का प्रकाशन।
क्रांतिकारी आंदोलनों का प्रसार –
भारत में उन्नीसवीं शताब्दी में क्रांतिकारी आंदोलनों का उदय हुआ। इन आंदोलनों के मुख्य नेताओं में रामसिंह कूका, चापेकर बंधु, वीर सावरकर, गणेश सावरकर, बारिन्द्र कुमार, शचीन्द्र नाथ सान्याल, खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस, श्यामजी कृष्ण वर्मा, भीकाजी कामा, लाला हरदयाल, सोहन सिंह भखना, भाई परमानंद, करतार सिंह सराभा, अजीत सिंह, अम्बा प्रसाद, राजा महेन्द्र प्रताप, बरकतुल्ला खान इत्यादि प्रमुख थे। इसका प्रारंभ महाराष्ट्र में हुआ लेकिन इसका मुख्य केंद्र बंगाल बन गया। भारत के अन्य प्रांतों में तथा विदेशों में भी भारतीय क्रांतिकारी सक्रिय रहे। क्रांतिकारी आंदोलन के प्रथम चरण में जो कि प्रथम विश्व युद्ध तक चला, अधिकतर क्रांतिकारी गतिविधियाँ बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब एवं दिल्ली में हुई। 1857 ई. की महान क्रांति के बाद भी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चलता रहा। 1859 ई.-1861 ई. में नील विद्रोह, 1875 ई. में दक्कन का विद्रोह, 1879 ई. में वासुदेव बलवंत फड़के का विरोध तथा 1899 ई.-1900 ई. में बिरसा मुण्डा का विद्रोह इनमें प्रमुख थे। भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के प्रसार का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है
1. कूका आंदोलन – कूका या नामधारी आंदोलन वास्तव में एक ‘धर्म सुधार आंदोलन’ था। सामूहिक रूप से एक साथ इकट्ठे होकर किसी विशेष उद्देश्य के लिए ऊँची आवाज लगाने को कूक कहा जाता है। नामधारी ऊँची-ऊँची आवाज (कूक) लगाकर गायन करते थे इसलिए उनके आंदोलन को कूका आंदोलन का नाम दिया गया। आदर्श राजनीतिक शासन की स्थापना के लिए बालक सिंह नामक उदासी फकीर के शिष्य राम सिंह कूका के नेतृत्व में यह आंदोलन शुरू हुआ। । बालक सिंह की मृत्यु के पश्चात् बाबा राम सिंह ने कार्यभार संभाला तथा अपना मुख्यालय भैणी साहिब (लुधियाना) में स्थापित किया। जब बाबा राम सिंह ने सिक्खों को अंग्रेजों के हाथों पराजित व अपमानित होते हुए देखा तब उन्होंने अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए प्रयास प्रारम्भ कर दिए। बाबा राम सिंह ने पंजाब के विभिन्न जिलों में अपने सूबेदार और नायब सूबेदार नियुक्त किए। उन्होंने युवकों को सैनिक प्रशिक्षण देने के लिए एक निजी अर्ध-सैनिक संस्था स्थापित कर ली।
कूका या नामधारी आंदोलन के अनुयायी गायों का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने सरकार से गौ हत्या पर कड़ी रोक लगाने की लगातार मांग की, परन्तु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 1872 ई. में कूकाओं को सूचना मिली कि मुस्लिम राज्य मलेरकोटला में गायों की हत्या की जा रही है तो उनके एक समूह ने मलेरकोटला पर धावा बोल दिया। अंग्रेज सरकार ने राम सिंह व उनके अनुयायियों को इस उपद्रव के लिए उत्तरदायी माना और उन्हें बंदी बनाकर रंगून (वर्तमान में म्यानमार) भेज दिया। अपनी मृत्यु तक वे जेल में बंदी रहे। राम सिंह कूका ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को उखाड़ने का प्रयास किया। नामधारी कूकाओं ने सर्वप्रथम स्वदेशी कपड़े, खासकर गाढ़ा या खर पहनकर स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके उसे राष्ट्रीय अस्त्र के रूप में प्रयोग किया था।
2. महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन – 1896 ई. में महाराष्ट्र में प्लेग की जानलेवा बीमारी फैली जो धीरे-धीरे महामारी का रूप ले चुकी थी। 1897 ई. तक आते-आते पूना में भी प्लेग फैल गया। प्लेग से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार ने ठोस कदम उठाने पर विचार किया और ‘वाल्टर चार्ल्स रैंड’ नामक अंग्रेज को प्लेग कमिश्नर नियुक्त किया। इस अंग्रेज ने पूना में लोगों के घरों तथा मंदिरों में बेरोक-टोक प्रवेश कर आम जनता में असंतोष उत्पन्न कर दिया। सार्वजनिक रूप से लोगों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाने लगा था। दो भाइयों दामोदर चापेकर व बालकृष्ण चापेकर ने 22 जून, 1897 ई. को बदनाम चार्ल्स रैंड की गोली मारकर हत्या कर दी। उसके साथ आयर्स्ट भी मारा गया। क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे। दोनों को पकड़कर मृत्युदंड दिया गया।
विनायक दामोदर सावरकर ने महाराष्ट्र में क्रांतिकारियों को संगठित करने के लिए यूरोप जाने से पूर्व ही ‘मित्र मेला’ व ‘अभिनव भारत’ जैसी संस्थाओं का निर्माण किया। इन संस्थाओं के माध्यम से कई क्रांतिकारी उत्पन्न हुए। 1909 ई.- 1910 ई. में अभिनव भारत ने नासिक, अहमदाबाद और सतारा में क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। 1909 ई. में अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने नासिक के जिला मैजिस्ट्रेट मिस्टर जैकसन की हत्या कर दी क्योंकि उसने वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर को देशभक्ति पूर्ण कविताएं लिखने के कारण आजीवन काले पानी की सजा दी थी। जैकसन की हत्या के केस में 38 दोषियों पर मुकद्दमा चला, जिनमें से 4 को फांसी दी गई।
3. बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन – बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन के जन्मदाता अरविंद घोष, बारिन्द्र घोष तथा विवेकानंद के छोटे भाई भूपेन्द्र नाथ दत्त थे। इन्होंने विभिन्न क्रांतिकारियों को प्रेरित किया तथा वहां ‘अनुशीलन समिति’ नामक संगठन का गठन किया। शीघ्र ही इस समिति की शाखाएं समस्त बंगाल में खोली गई। अनुशीलन समिति के दो सदस्य बम बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए जापान भी गए। क्रांतिकारियों द्वारा प्रकाशित ‘संध्या’, ‘युगांतर’ जैसी पत्रिकाओं व ‘भवानी मंदिर’ जैसी पुस्तकों से क्रांतिकारी आंदोलनों को बल मिला। ‘युगांतर’ पत्रिका में अंग्रेजी शासन को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित छह सूत्री कार्यक्रम दिया गया :
- समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी शासन की आलोचना करना।
- शहीदों की जीवनियों पर आधारित गीत व नाटकों की प्रस्तुति करना।
- जलसे, जुलूस, व हड़तालों से ब्रिटिश शासन को व्यस्त रखना।
- सैनिक शिक्षा, व्यायाम, धार्मिक कार्यक्रम एवं शक्ति पूजा के माध्यम से नवयुवकों को जोड़ना ।
- शस्त्र बनाना, खरीदना व विदेशों से संबंध बनाना।
- आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करना।
बंगाल की क्रांतिकारी संस्थाओं ने इटली की गुप्त क्रांतिकारी संस्थाओं से प्रेरणा ली थी। सन् 1908 ई. में खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी ने मुज्जफरपुर के न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को मारने के उद्देश्य से उसकी बग्गी पर बम फेंका। चाकी ने आत्महत्या कर ली, खुदीराम बोस को मृत्युदंड दिया गया। दोनों पर लोक गीत लिखे गए तथा देश की जनता इन्हें गुनगुनाने लगी। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों का बम बनाने का कारखाना पकड़ लिया तथा कई क्रांतिकारियों पर मुकद्दमा चला था। इस केस को ‘अलीपुर षड्यंत्र केस’ कहा जाता है। बारिन्द्र घोष को काले पानी की सजा हुई। ब्रिटिश सरकार ने दमन का सहारा लिया। क्रांतिकारी बंगाल के युवाओं के आदर्श बन गए।
4. पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन – पंजाब के क्रांतिकारी आंदोलन के नेताओं में सरदार अजीत सिंह, पिंडी दास, अम्बा प्रसाद, लालचंद फलक एवं दीनदयाल बांके प्रमुख थे। उन्होंने किसानों के सहयोग से पंजाब सरकार के ‘कैनाल क्लोनाइजेशन एक्ट’ के विरुद्ध प्रदर्शन किए। सरदार अजीत सिंह ने इस एक्ट के विरुद्ध पंजाब में कई स्थानों पर सभाएं की तथा किसानों को टैक्स देने से मना कर दिया। उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को तीव्रता देने के लिए ‘अंजुमन-ए-मोहीब्तान-ए-वतन’ नामक संस्था का गठन किया। बांके दयाल की कविता ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ तथा अजीत सिंह के धुआंधार भाषणों ने लोगों में उत्साह भर दिया। सरकार ने उनके प्रति कड़ा रवैया अपनाते हुए उन्हें कठोर कारावास की सजा दी। लाला पिंडीदास, लालचंद, ईश्वरदास, अम्बा प्रसाद, भाई परमानंद, बाबू बालमुकंद गुप्त इत्यादि ने सशस्त्र क्रांति द्वारा पंजाब में ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास भी किया लेकिन सफलता नहीं मिली।
सरदार अजीत सिंह पंजाब के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी थे। वे भगतसिंह के चाचा थे। 27 वर्ष की आयु में वे अपना घर छोड़ चुके थे। उन्होंने भारत में औपनिवेशिक सरकार का खुल कर विरोध किया। उन्हें राजनैतिक विद्रोही घोषित किया गया। ईरान, तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, इटली व जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया। उन्हें बहुत-सी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त हो चुका था। 1906 ई. में लाला लाजपत राय के साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था। भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि 15 अगस्त, 1947 ई. की सुबह जब उनके परिवार वालों ने उन्हें उठाया तो वे जय हिंद कह कर दुनिया से चले गये। भारत का इतिहास उनके योगदान को हमेशा स्मरण रखेगा।
5. मद्रास में क्रांतिकारी आंदोलन – दक्षिण भारत में मद्रास के क्षेत्र (वर्तमान चेन्नई) में चिदम्बरम पिल्लै तथा वांची अय्यर जैसे प्रमुख नेताओं ने क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किया। चिदम्बरम पिल्लै को बन्दी बनाने के विरोध में टिनेवली नामक स्थान पर सरकार के विरुद्ध विद्रोह हो गया। लोगों ने ब्रिटिश सरकार की संपत्ति लूट ली। क्रांतिकारियों के निशाने पर नगरपालिका का कार्यालय, पुलिस चौकी तथा रजिस्ट्रार का कार्यालय था। ब्रिटिश सरकार ने कठोर कार्यवाही करके 27 लोगों को मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास की सजा दी।
6.अन्य क्रांतिकारी गतिविधियाँ – भारत की राजधानी दिल्ली में भी क्रांतिकारियों ने 1912 ई. में तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फैंका। कुछ क्रांतिकारी विदेशों में रहकर भी भारत भूमि को स्वतंत्र कराने के लिए प्रयासरत थे।
विदेशों में भारतीय क्रांतिकारी –
इंग्लैंड फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका इत्यादि देशों में बसे भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अपनी मातृभूमि भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए कई प्रयास हुए। कुछ क्रांतिकारियों व उनके प्रयासों का विवरण निम्न प्रकार से है:
1. श्यामजी कृष्ण वर्मा की भूमिका – श्यामजी कृष्ण वर्मा पश्चिमी भारत के काठियावाड़ के निवासी थे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से बैरिस्टर की शिक्षा ग्रहण की। सन् 1905 ई. में वर्मा जी ने ‘भारत स्वशासन समिति’ का गठन किया जिसे प्राय: ‘इंडिया हाउस’ कहा जाता था। उन्होंने एक समाचार पत्र ‘इंडियन सोशलॉजिस्ट’ शुरू किया जिसमें अंग्रेजों के अत्याचारों, भारत के आर्थिक शोषण तथा भारतीयता से संबंधी लेख लिखे जाते थे। उन्होंने भारतीयों के लिए एक-एक हजार रुपये की छह फैलोशिप भी आरम्भ की। जिस कारण से शीघ्र ही इंडिया हाउस भारतीय क्रांतिकारियों का केंद्र बन गया। उनके सहयोगियों में लाला हरदयाल, वीर सावरकर और मदन लाल ढींगरा इत्यादि थे। सन् 1930 ई. में जिनेवा में उनकी मृत्यु हुई।
2. विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका – उनके योगदान को देखते हुए भारतीय जनता ने उन्हें ‘स्वतंत्र्यवीर’ की उपाधि से विभूषित किया। इसलिए उन्हें वीर सावरकर भी कहा जाता है। उनका जन्म 28 मई, 1883 ई. को महाराष्ट्र के भागुर में हुआ। सन् में 1901 ई. में उन्होंने फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लिया जहां वे बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आए। उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘मित्र मेला’ नामक संगठन बनाया तथा सन् 1905 ई. में पूना में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। उन्होंने सन् 1906 ई. में क्रांतिकारियों का एक गुप्त संगठन ‘अभिनव भारत’ बनाकर महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 ई. के सैनिक विद्रोह को ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ कहा। उन्होंने इस नाम से एक पुस्तक भी लिखी जिसे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने प्रकाशन से पूर्व ही ज़ब्त कर लिया। 23 दिसंबर, 1910 ई. को सावरकर को दो जन्मों के आजीवन कारावास का दंड देकर उनकी पैतृक सम्पत्ति को जब्त कर लिया गया। दस वर्ष (4 जुलाई, 1911 ई. से 2 मई, 1921 ई.) तक सावरकर अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहे। मई 1920 ई. में महात्मा गांधी ने भी ‘यंग इंडिया’ पत्रिका में सरकार से उन्हें रिहा करने की अपील की। अंडमान से रिहा होने के बाद भी वो कई वर्ष तक जेल में रहे तथा बाद में उन्हें कई वर्षों तक नजरबंद करके उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगाए गए। सावरकर हिंदुत्व में विश्वास रखते थे तथा विभाजन के सख्त विरोधी थे। उन्होंने विभाजन रोकने के लिए अथक प्रयास किए थे। 26 फरवरी, 1966 ई. को उनका निधन हुआ। आश्चर्यजनक बात यह थी कि उनकी मृत्यु के समय तक भी अंग्रेजी सरकार द्वारा जब्त की गई उनकी संपत्ति नहीं लौटाई गई थी।
सावरकर की प्रमुख रचनाएं –
- द इण्डियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस
- हिंदू राष्ट्रीय दर्शन
- लेटर्स फ्राम अंडमान
- हिंदू पद पादशाही
- एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व
- डेडिकेशन टू मार्टियर्स
सेल्यूलर जेल (काला पानी) – अंडमान की सेल्यूलर जेल की सजा को काले पानी की सजा भी कहा जाता था। इस जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ डाकुओं और हत्यारों से भी अधिक बुरा व्यवहार किया जाता था। कैदियों को अलग-अलग सेल (कक्ष) में रखा जाता था। हल्का-सा भी शक होने पर हथकड़ियाँ पहनाकर हाथ ऊपर करके खड़ा रहने की सजा दी जाती थी। प्रतिदिन 30 पौंड तेल निकलवाने के लिए कोल्हू चलवाया जाता था। कम तेल निकालने वाले की पिटाई की जाती थी। पीने का पानी भी बहुत मुश्किल से मिलता था।
3. मदन लाल ढींगरा की भूमिका – वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर भी बड़े देशभक्त थे। उन्हें सजा दिलवाने में नासिक के डिप्टी कलेक्टर मिस्टर जैक्सन तथा भारत सचिव के मुख्य परामर्शदाता कर्जन वाइली का बड़ा हाथ था। इसलिए 1 जुलाई, 1909 ई. को एक नवयुवक मदनलाल ढींगरा ने लंदन में कर्जन वाइली को गोली मार दी। मदन लाल ढींगरा का जन्म पंजाब के अमृतसर के एक संभ्रांत एवं सुशिक्षित परिवार में 1883 ई. में हुआ। सन् 1906 ई. में वे पढ़ाई करने लंदन गए तथा वीर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। मदन लाल ढींगरा को 17 अगस्त, 1909 ई. को फांसी की सजा दी गई।
4. भीकाजी कामा की भूमिका – भीकाजी कामा एक महान महिला क्रांतिकारी थी। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र इंग्लैड व फ्रांस थे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में हिस्सा लिया तथा स्वयं द्वारा निर्मित राष्ट्रीय ध्वज को फहराया। उन्होंने सम्मेलन में अंग्रेजी शासन के शोषणकारी स्वरूप की जानकारी दी। उन्हें बंदी बनाकर इग्लैंड से निर्वासित कर दिया गया। उसके बाद वह फ्रांस चली गई तथा 1934 ई. में भारत लौटी तथा 1936 ई. में उनका देहांत हो गया।
5. गदर आंदोलन – उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में भारत से कई भारतीय धन कमाने व जीविका के साधन ढूंढते हुए अमेरिका, बर्मा, सिंगापुर, हांगकांग, कनाडा आदि देश जा पहुंचे परंतु भारतीय होने के नाते विदेश में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता था। इसलिए अपने देशवासियों की पीड़ा को करते अनुभव हुए उन्होंने निश्चय किया कि वह यहां विदेश में रहकर अपने भारतवर्ष को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करवाने का प्रयास करेंगे। इसलिए उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन चलाने का निश्चय किया। सर्वप्रथम 21 अप्रैल, 1913 ई. में अमेरिका व कनाडा के भारतीयों को संगठित करके एक ‘हिंदुस्तानी एसोसिएशन’ (हिन्दी पैसेफिक एसोसियेशन) बना ली जिसे गदर पार्टी कहा जाता था । गदर पार्टी के मुख्य नेता सोहन सिंह भकना, लाला हरदयाल, भाई केसर सिंह, पण्डित कांशी राम, भाई परमानन्द, मुहम्मद बरकतुल्ला, करतार सिंह सराभा थे। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत की आजादी के लिए संघर्ष था। इस पार्टी का मुख्यालय अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में युगांतर आश्रम नामक स्थान पर खोला गया। नवंबर 1913 ई. में ‘गदर’ नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला गया जो हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू आदि विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होने लगा। इस समाचार पत्र में ब्रिटिश शासन की वास्तविक तस्वीर भारतीयों के सामने पेश की गई तथा साथ ही नवयुवकों को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया। यह पत्र विश्व के कई देशों में निःशुल्क भेजा जाता था। इस पार्टी के हजारों सदस्य भारत को आजाद करवाने के लिए जहाजों द्वारा भारत पहुंचे। ये लोग पूरे पंजाब में फैल गए और अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध गोपनीय कार्य करने लगे। मार्च 1914 ई. में लाला हरदयाल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया। इसलिए वह अमेरिका छोड़कर स्विट्जरलैंड चले गए। उसके पश्चात् भगवान सिंह, करतार सिंह सराभा, रामचंद्र आदि नेताओं ने अपने प्रयासों से गदर आंदोलन को जारी रखा।
6. कामागाटामारू घटना – गदर पार्टी के सदस्यों ने भारत में सशस्त्र क्रांति लाने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों को जर्मन शस्त्रों के साथ तोसामारु नामक जहाज में भारत भेजा परंतु इसकी सूचना पहले ही भारत में ब्रिटिश सरकार को हो गई । इसलिए भारत पहुंचने पर सभी व्यक्तियों को कैदी बनाकर मृत्युदंड दिया गया। इसी समय कनाडा की सरकार ने भारतीयों पर अनेक अनुचित प्रतिबंध लगा रखे थे। इसलिए इन भारतीयों के सहयोग के लिए सिंगापुर के एक धनी भारतीय बाबा गुरदित्त सिंह ने कामागाटामारू जहाज 350 भारतीयों को लेकर कनाडा के लिए प्रस्थान किया। 23 मई, 1914 ई. को जब यह जहाज कनाडा की बंदरगाह वैंकूवर पहुंचा तो कनाडा की सरकार ने केवल 24 लोगों को ही वहां उतरने की इजाजत दी। जहाज में 340 सिक्खों के साथ-साथ हिंदू व मुसलमान भी थे। सभी को वापिस जहाज में जबरदस्ती बैठा दिया गया। तत्पश्चात् यह जहाज सभी लोगों को लेकर वापिस भारत के लिए रवाना हो गया। भारत में ब्रिटिश सरकार को यह बात पहले ही पता चल चुकी थी। जब यह जहाज कलकत्ता (बजबज घाट) पहुंचा तो यहां भी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नीचे उतरने की इजाजत नहीं दी और यात्रियों को बलपूर्वक पंजाब भेजने का प्रयास किया। कुछ यात्रियों ने बलपूर्वक कलकत्ता में प्रवेश करने की कोशिश की तो सरकार ने उन निर्दोष यात्रियों पर गोली चला दी। यह घटना 27 सितम्बर, 1914 ई. को घटी। इसमें 19 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना ने आजादी की लहर को और तेज कर दिया।
7. सशस्त्र क्रांति की महान योजना ( 1915 ई.) – कामागाटामारू घटना का क्रांतिकारियों पर गहरा प्रभाव पड़ा। विदेशों क्रांतिकारी पंजाब आने लगे तथा गुप्त सभाएं करने लगे। जनवरी 1915 ई. में रास बिहारी बोस भी पंजाब पहुंच चुके थे। उन्होंने एक संगठन का प्रारूप तैयार किया तथा देशभर की सैनिक छावनियों से संपर्क करके 21 फरवरी, 1915 ई. को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई। इस योजना में रास बिहारी बोस के साथ शचीन्द्र नाथ सान्याल, करतार सिंह सराभा इत्यादि शामिल थे। क्रांति की तारीख बदलकर 19 फरवरी भी की गई, लेकिन कृपालसिंह नामक गद्दार ने सारी योजना अंग्रेजों को बता दी। रास बिहारी बोस बचकर निकलने में सफल रहे, किन्तु 42 क्रांतिकारियों को फांसी एवं 200 क्रांतिकारियों को लंबी सजाएं सुनाई गई।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियां :-
1. वीर सावरकर का जन्म – 28 मई, 1883 ई.
2. चार्ल्स रैंड की चापेकर बंधुओं द्वारा हत्या – 22 जून, 1897 ई.
3. मदन लाल ढींगरा ने लंदन में कर्जन वाइली को गोली मारी – 1 जुलाई, 1909 ई.
4. मदन लाल ढींगरा को फांसी – 17 अगस्त, 1909 ई.
5. वीर सावरकर को दो जन्मों के आजीवन कारावास का दंड – 23 दिसंबर, 1910 ई.
6. लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया – 1912 ई.
7. गदर पार्टी की स्थापना – 1913 ई.
8. सशस्त्र क्रांति की योजना – 21 फरवरी, 1915 ई.
9. वीर सावरकर का देहांत – 26 फरवरी, 1966 ई.