Class 9 इतिहास BSEH Solution for chapter 5 भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन Important Question Answer for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of हमारा भारत IV Book for HBSE.
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HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन / Bhartiya Krantikari Andolan Important Question Answer for Haryana Board of chapter 5 in Hamara bharat IV Solution.
भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन Class 9 इतिहास Chapter 5 Important Question Answer
प्रश्न 1. काकोरी की घटना पर विस्तार से चर्चा करें। इसका परिणाम क्या रहा?
उत्तर – सबसे पहले उत्तर भारत के क्रांतिकारियों ने संगठित होना आरम्भ कर दिया। इनके नेता राम प्रसाद बिस्मिल, योगेश चंद्र चटर्जी, शचींद्रनाथ सान्याल व सुरेश चंद्र भट्टाचार्य थे। अक्टूबर 1924 ई. में इन क्रांतिकारियों का कानपुर में एक सम्मेलन हुआ जिसमें हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ का गठन किया गया। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र ‘संयुक्त राज्य भारत’ की स्थापना करना था। संघर्ष छेड़ने, प्रचार करने, युवाओं को अपने दल में मिलाने, प्रशिक्षित करने और हथियार जुटाने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य के लिए इस संगठन के 10 व्यक्तियों ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में शाहजहाँपुर में एक बैठक की और अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 ई. को लखनऊ जिले के गांव काकोरी के रेलवे स्टेशन से छूटी 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींच कर रोक लिया व अंग्रेजी सरकार का खजाना लूट लिया। सरकार इस घटना से बहुत कुपित हुई व भारी संख्या में युवकों को गिरफ्तार किया गया। उन पर मुकद्दमा चलाया गया। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेंद्र लाहड़ी व अशफाकुल्लाह खाँ को फाँसी की सजा दी गई। चार को आजीवन कारावास देकर अंडमान भेज दिया। 17 अन्य लोगों को लंबी सजाएं सुनाई गई। चंद्रशेखर आजाद अंत समय तक पकड़े नहीं जा सके।
प्रश्न 2. शाही नौसेना के आंदोलन पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसका महत्व बताइये।
उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने ‘आजाद हिंद फौज’ के कुछ अफसरों के विरुद्ध ब्रिटिश शासन की वफादारी की शपथ तोड़ने और विश्वासघात करने के आरोप में मुकद्दमा चलाने की घोषणा की तो राष्ट्रवादी विरोध की लहर सारे देश में फैल गई। सारे देश में विशाल प्रदर्शन हुए। ‘आजाद हिंद फौज’ के आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय आंदोलन पर तथा सेना पर भी पड़ा। सन् 1946 ई. में सेना में अशांति फैलने लगी थी। इस आंदोलन की स्वतः स्फूर्त शुरुआत 18 फरवरी, 1946 ई. को नौसेना के सिगनल्स प्रशिक्षण पोत ‘आई. एन. एस. तलवार’ से हुई। नाविकों द्वारा खराब खाने की शिकायत करने पर अंग्रेज कमान अफसरों ने नस्ली अपमान और प्रतिशोध का रवैया अपनाया। वे सीधे तौर पर भारतीय सैनिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार करते थे। ब्रिटिश अधिकारियों का जवाब था “भिखारियों को चुनने की छूट नहीं हो सकती।” नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी। हड़ताल अगले दिन कैसल, फोर्ट बैरकों और बम्बई बन्दरगाह के 22 जहाजों तक फैल गई । यद्यपि यह बम्बई में आरम्भ हुआ परन्तु कराची से लेकर कलकत्ता तक पूरे ब्रिटिश भारत में इसे भरपूर समर्थन मिला। क्रांतिकारी नाविकों ने जहाज पर से यूनियन जैक के झण्डों को हटाकर वहां पर तिरंगा फहरा दिया। कुल मिलाकर 78 जलयानों, 20 स्थलीय ठिकानों एवं 20,000 नाविकों ने इसमें भाग लिया। जनवरी 1946 ई. में वायुसैनिकों ने भी बम्बई में हड़ताल शुरू कर दी। उनकी मांगें थी कि हवाई सेना में अंग्रेजों और भारतीयों में भेदभाव दूर किया जाए। इनके नारे थे ‘जय हिंद’, ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’, ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो।’ वास्तव में अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय आजाद हिंद फौज के संघर्ष तथा नौसेना के आंदोलन के पश्चात सेना में उत्पन्न हुए आक्रोश के कारण ही लिया।
प्रश्न 3. लाहौर षड्यंत्र केस क्या है? इसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर – भगत सिंह ने 1929 ई. को “सार्वजनिक सभा” एवं “औद्योगिक विवाद बिल” पर जब बहस हो रही थी तो दर्शक गैलरी से भगत सिंह ने दो बम गिरा दिए जिससे वहां हड़कंप मच गया। भगत सिंह ने भागने का कोई प्रयास नहीं किया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जज ने 12 जून, 1929 ई. को भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुना दी। इसी बीच पुलिस को क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित बम फैक्ट्रियों का सुराग मिल गया। अतः पुलिस ने दिल्ली, सहारनपुर एवं लाहौर की बम फैक्ट्रियों पर धावा बोल दिया। अनेक क्रांतिकारी पकड़े गए। जय गोपाल के सरकारी गवाह बनने से सांडर्स हत्याकांड में भगत सिंह की संलिप्तता का केस आरम्भ हुआ। इसे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ कहते हैं। इसके बाद उन्हें लाहौर की अदालत में पेश करके उनके विरुद्ध मुकद्दमा चलाया गया। मुकद्दमे के दौरान इन क्रांतिकारियों ने कोर्ट को क्रांतिकारी दल की नीतियों, उद्देश्यों तथा कार्यक्रम के बारे में बताया। समाचार पत्रों के माध्यम से ये सब खबरें लोगों तक पहुंचने लगी। उन्होंने लगातार बयान देने शुरू किए, जिससे जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ी। जो अब तक क्रांतिकारियों की निंदा करते थे, अब वे प्रशंसा करने लगे।