Class 9 इतिहास BSEH Solution for chapter 9 भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका notes for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of हमारा भारत IV Book for HBSE.
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HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका / Bhartiya Rashtariya Andolan me haryana ki bhumika notes for Haryana Board of chapter 9 in Hamara bharat IV Solution.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका Class 9 इतिहास Chapter 9 Notes
भारतवर्ष के इतिहास विशेषकर स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 10 मई एक स्मरणीय दिवस है। इस दिन अंग्रेजों को भारतवर्ष से बाहर करने के संग्राम का सूत्रपात हुआ था। भारत में अंग्रेजी कम्पनी के शासन का अंत करने और उससे देश को मुक्ति दिलाने के लिए जो क्रांति हुई उसका आरम्भ हरियाणा के अम्बाला से हुआ था।
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन –
1803 ई. में दौलत राव सिंधिया से सुर्जीअर्जुन गाँव की संधि करके हरियाणा के क्षेत्र को कम्पनी ने अपने अधीन कर लिया । तत्पश्चात् अंग्रेजी कम्पनी ने प्रशासनिक सुविधा के लिए इस क्षेत्र को दो भागों में बांट दिया। इनमें से एक क्षेत्र को रेजीडेण्ट के नियंत्रण में रखा गया तथा डिविजनों में विभाजित किया गया। दूसरा, बचा हुआ क्षेत्र उन सामन्तों एवं सरदारों को दिया गया जिन्होंने आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी।
नई प्रशासनिक व्यवस्था ने हमारी प्रजातंत्रीय एवं स्वावलंबी व्यवस्था को समाप्त कर दिया और यहाँ की जनता का खूब आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक शोषण किया। अब हरियाणा के लोग चाहे वे किसान हों या रियासतों के मालिक सभी अंग्रेजी कम्पनी से असन्तुष्ट हो गए। अतः लोगों ने कम्पनी शासन के विरुद्ध संघर्ष करना शुरू कर दिया। हरियाणा के विभिन्न भागों में सशस्त्र संघर्ष किए। इन संघर्षों को दबाने के लिए सैनिक बल का प्रयोग किया गया। सैकड़ों निर्दोषों की हत्याएँ कर दी गई तथा संघर्षों को दबा दिया गया। जनता पर अब और भी अधिक आर्थिक शोषण का बोझ लाद दिया गया।
राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका –
1. 1857 ई. की महान क्रांति में योगदान – 1803 ई. से 1856 ई. तक अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा सामाजिक व धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप और जानलेवा आर्थिक शोषण के कारण यहाँ की जनता में गहरा असंतोष पैदा हो गया। जिससे इस क्रांति की शुरुआत हुई। इस क्रान्ति में साधारण जनता से लेकर सैनिकों तथा रियासतों के शासकों सहित सभी ने भाग लिया। रेवाड़ी के राव तुलाराम, बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह आदि प्रमुख शासक थे, जिन्होने क्रांति में हरियाणा का नेतृत्व किया। क्रांति की ज्वाला अम्बाला, रेवाड़ी, गुडगाँव, हांसी, रोहनात, रोहतक, हिसार, सिरसा, पानीपत, कुरुक्षेत्र, वल्लभगढ़ आदि स्थानों पर पूरी तरह से धधकती रही। 1857 ई. की क्रान्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने यहाँ दमनचक्र चलाया। हजारों निर्दोष लोगों को जेलों में डालकर उन्हें विभिन्न तरह की यातनाएँ दी गई। बदले की भावना से अनेक गाँवों को जला दिया गया। सम्पत्तियाँ जब्त की गई। हरियाणा वासियों को क्रान्ति में भाग लेने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। जिसके परिणामस्वरूप यहाँ गरीबी एवं अराजकता का वातावरण उत्पन्न हो गया।
1.1 अम्बाला में क्रांति – 1857 ई. की महान क्रांति का आरम्भ हरियाणा से हुआ। मेरठ में यह क्रांति की ज्वाला भड़कने से नौ घंटे पहले अम्बाला में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। विद्रोह करने वाली फौज में प्रमुख रूप से 60वीं व 5वीं देशी पलटनें थी। परन्तु इनके विद्रोह को दबा दिया गया। अम्बाला में विद्रोह की विफलता का कारण शामसिंह नामक एक सैनिक था जिसने अंग्रेजों को इस योजना की खबर पहले ही दे दी थी तथा अंग्रेज अधिकारी पहले से ही तैयार थे। इस तरह हरियाणा में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी थी।
1.2 गुडगाँव एवं बल्लभगढ़ में क्रांति – 13 मई को 300 सैनिक गुड़गाँव पर आक्रमण करने के लिए बढ़ चले। गुड़गाँव के कलैक्टर-मैजिस्ट्रेट फोर्ड ने इन क्रांतिकारियों को रोकने का असफल प्रयास किया। 14 मई को क्रांतिकारियों ने गुड़गाँव के कलैक्टर ऑफिस पर आक्रमण कर दिया। फोर्ड गुड़गाँव छोड़ कर भोंडसी होते हुए मथुरा की तरफ भाग गया। क्रांतिकारियों को वहाँ के खजाने से 780000 रुपये हाथ लगे। गुड़गाँव के पास स्थित बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह ने क्रांति में बढ़-चढ़कर भाग लिया परन्तु धोखे से अंग्रेजों ने सन्धि के बहाने उन्हें गिरफ्तार करके 9 जनवरी, 1858 ई. को फाँसी दे दी।
1.3 हांसी में क्रांति – 1857 ई. में क्रांति के समय हांसी छावनी में अंग्रेजों की हरियाणा लाईट इन्फैन्ट्री की दो कम्पनियां, चौथी इररेग्युलर केवलरी के 900 सवार, दादरी केवलरी के 800 सवार तैनात थे। 15 मई को चौथी इररेग्युलर केवलरी के जवानों ने बगावत का बिगुल बजा दिया। बाकी दिल्ली की ओर चल पड़े। इसके 14 दिन बाद शेष सैनिकों ने भी बगावत कर दी। हांसी क्षेत्र में रांघड़ नौजवान सैनिक थे, जिनमें पुट्ठी गांव के मंगल खान व उसके सहयोगी कैदे खाँ ने सबसे पहले बगावत का बिगुल बजाया। हरियाणा लाईट इन्फैन्ट्री के सूबेदार गुरुबख्श सिंह ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। अंग्रेजों के आवास, दफ्तर जला दिये गए व सम्पत्ति लूट ली गई। परंतु अंग्रेजी फौज को अंग्रेज परस्त देसी रियासत बीकानेर के राजा से 1100 घुड़सवार सैनिक मिलने से स्थिति पलट गई। हांसी के आसपास के गाँवों के क्रांतिकारियों को हांसी लाकर मुख्य बाजार में पत्थर की गिरड़ी के नीचे कुचलवा दिया गया, जिस कारण यह सड़क आज भी लाल सड़क के नाम से जानी जाती है।
1.4 रोहनात में क्रांति – गांव रोहनात हांसी से आठ मील दक्षिण की ओर स्थित है। अंग्रेज सैनिकों ने 800 घुड़सवार व 4 तोपें लेकर तोशाम पर हमला किया और उसके बाद रोहनात गाँव पर अंग्रेजी सेना व बीकानेर के सैनिकों ने जबरदस्त हमला किया, जिसका गाँव के देशभक्त क्रांतिकारियों ने जेली, बल्लम, गंडासों आदि हथियारों से डटकर मुकाबला किया। इसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई। परंतु सितम्बर के आखिरी दिनों में अंग्रेजों की पकड़ मजबूत होने लगी। अंग्रेजों ने तोपों के साथ गाँव रोहनात पर हमला किया। बहुत से हिस्सों को जला दिया गया जिसमें सैंकड़ों क्रांतिकारी शहीद हुए । ‘मंगल खां’ व ‘बिरड़ दास बैरागी’ को तोप से उड़ा दिया गया व ‘रूपा खाती’ को मार डाला गया। अन्य साथियों को हांसी ले जाकर पत्थर की गिरड़ी के नीचे कुचल दिया गया।
1.5 हिसार में क्रांति – हांसी में विद्रोह की ज्वाला सुलगने के तीन घंटे बाद हिसार जिले के मुख्यालय में भी विद्रोह भड़क उठा तब हिसार जिले के जिलाधीश डिप्टी कमिश्नर मि. बेबर्न को उनके परिवार सहित कत्ल कर दिया गया। विद्रोहियों ने हिसार के खजाने से एक लाख सत्तर हजार रुपये अपने कब्जे में ले लिये। इस विद्रोह की आग में हांसी व हिसार में कुल 23 अंग्रेज अफसरों का वध किया गया। गाँव के लोगों ने अपने स्वदेशी हथियारों के साथ हमला किया और किले में 11 अंग्रेज अफसरों को मार डाला।
1.6 सिरसा में क्रांति – 11 मई को यह महान क्रांति दिल्ली से गुड़गांव-झज्जर, रेवाड़ी, रोहतक-महम हांसी-भिवानी-हिसार होते हुए अगले दिन दोपहर को दो बजे सिरसा पहुंची। क्रांति की लहर के वशीभूत हरियाणा लाइट पलटन तथा चौदह नम्बर की टुकड़ी ने सिरसा नगर में विद्रोह का बिगुल बजा दिया। रानियां के भट्ठी नवाब नूर समद खां ने अपने चाचा गुलाम अली खां के साथ 4000 भट्टी सैनिकों को लेकर सिरसा पर कब्जा कर लिया व अपने आपको गवर्नर घोषित कर दिया।
भट्टी नवाब नूर समद खां रानियां का कुल तीन सप्ताह तक सिरसा पर अधिकार रहा। चीफ कमिश्नर सर जॉन लारेंस के आदेश पर 8 जून, 1857 ई. को फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर जनरल वान कोर्टलैंड ने 550 गौरे फौजी व दो तोपों के साथ इस क्षेत्र पर पुनः कब्जा करने के लिए कूच किया। फिरोजपुर से मलोट ओढ़ां के मार्ग पर 17 जून को नवाब नूर समद खां अपने चाचा के साथ 4000 सैनिकों को साथ लेकर वान-कोर्टलैंड का सामना करने आ डटे। आसपास के ग्रामीण भी आ जुटे डट कर मुकाबला हुआ, किन्तु तोपों के सामने हार माननी पड़ी। 530 सैनिक गवांकर नवाब लुधियाना की ओर भाग गया। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें फाँसी दे दी गई।
1.7 रेवाड़ी में क्रांति – राव तुलाराम दूर-दृष्टि रखने वाला एक जनरल था। उसने पटौदी की इस छोटी-सी टक्कर से शावर्स की सेना की ताकत का अंदाजा लगा लिया। शावर्स के रेवाड़ी पहुंचने से पहले ही राव तुलाराम ने 5 अक्टूबर, 1857 ई. को किला खाली कर दिया। कप्तान हडसन राव तुलाराम की मिलिट्री तैयारी से बड़ा ही आश्चर्य चकित हुआ। राव तुलाराम पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने सहायता के लिए विदेश जाने का प्रयास किया परन्तु अफगानिस्तान तक ही पहुंच पाए और काबुल में 23 सितम्बर, 1863 ई. को उनका देहांत हो गया। इनके बलिदान के कारण ही रेवाड़ी को ‘वीरभूमि’ भी कहा जाता है।
1.8 नसीबपुर का युद्ध – यह युद्ध 1857 ई. की क्रांति में हरियाणा का सबसे बड़ा व सबसे महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है। ब्रिगेडियर जनरल शावर्स के आक्रमण के समय रेवाड़ी के राव तुलाराम, उसके चाचा राव किशन सिंह व भाई राव गोपाल देव, झज्जर के जनरल अब्दुस समद खान और भट्टू कलां के मोहम्मद आजम सुरक्षित स्थानों की तरफ चले गये थे।
यहां नसीबपुर में राव तुलाराम की सेना का नेतृत्व राव किशन सिंह कर रहे थे, जिनके साथ उनके छोटे भाई राव रामलाल भी थे। क्रांतिकारी सेना नारनौल शहर के बीच एक मजबूत और विशाल सराय में एकत्रित थी। उनकी संख्या लगभग 5000 थी, जिसमें 4000 पैदल सेना व 1000 घुड़सवार सैनिक थे। उनके पास आधा दर्जन मध्यम श्रेणी की बंदूकें थीं। तोपखाना बहुत कमजोर था इसलिए वे पैदल सेना व घुड़सवार सेना पर ही आश्रित थे।
नसीबपुर में कर्नल जेरार्ड कुछ दूर अपनी सेना के पुनर्गठन के लिए रुका। सेना ने अपना भोजन व सुरापान किया तभी राव किशन सिंह की सेना ने आक्रमण कर दिया। यह सचमुच सेना की एक बड़ी भूल थी। उन्होंने ब्रिटिश सेना के आक्रमण की प्रतीक्षा नहीं की और अपना धैर्य खो दिया। हालांकि जेरार्ड भी मृत्यु को प्राप्त हुआ परंतु साथ-साथ राव किशन सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए। दुश्मन ने उनकी गर्दन पर तलवार से वार किया जिससे उनकी गर्दन कट गई। आज भी कवाली गांव में उनकी याद में जय बाबा राव जी की छतरी बनी हुई है।
2. राष्ट्रीय चेतना का उदय एवं विकास – उन्नीसवीं शताब्दी में हरियाणा में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन शुरू हुए। इन सुधार आंदोलनों से समाज में एक नई जागृति आई जिसमें लोगों की शिक्षा और साहित्य में में रुचि बढ़ने लगी और राष्ट्रीय भावना और अधिक प्रगाढ़ होने लगी। ये सामाजिक-धार्मिक आंदोलन थे- आर्य समाज, सनातन धर्म आंदोलन, सिंह सभा आंदोलन आदि। इन संगठनों के उद्देश्य निम्नलिखित थे :
- अन्धविश्वास एवं आडम्बरों से दूर रहना तथा जाति प्रथा का विरोध करना ।
- शिक्षा एवं प्राचीन संस्कृति का उत्थान करना।
- आपसी प्रेम की भावना का विकास करना।
- विदेशी शोषणकारी हुकूमत का सामना करने की भावना/चेतना उत्पन्न करना।
- राष्ट्रीय चेतना का विकास करना।
इन संगठनों के विचारों से हरियाणा वासियों में स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रीयता तथा लोकतन्त्र जैसे नए विचारों का बौद्धिक आधार तैयार किया गया तथा आत्म-विश्वास की भावना को बल प्रदान किया। इन संगठनों के द्वारा ही भ्रष्ट अंग्रेजी शासन के कारनामों की सही-सही तस्वीर जनता के सामने रखी। देशहित के लिए त्याग तथा बलिदान की भावना पैदा की गई। परिणामस्वरूप हरियाणा के लोग नए उत्साह के साथ संगठित होकर स्वतन्त्रता के आंदोलन में और अधिक सक्रिय हुए और यथासंभव अपना योगदान दिया।
3. उदारवादी एवं राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान – नई चेतना के परिणामस्वरूप हरियाणा में एक नया राष्ट्रवादी वर्ग बनने लगा और यह राष्ट्रवादी वर्ग स्वयं को राष्ट्रीय आंदोलन की धाराओं से जोड़कर देखने लगा। 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना हुई तो लाला मुरलीधर ने अम्बाला में तथा लाला लाजपत राय ने हिसार में कांग्रेस की शाखाएँ स्थापित की। हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों को बड़े स्तर पर उजागर किया। 1905 ई. तक उदारवादियों का अनुसरण करते हुए शान्तिपूर्वक तरीके से कार्य होता रहा। 1905 ई. में जब बंगाल विभाजन किया गया तब इस जन समूह की राष्ट्रवादी लहर ने नया मोड़ ले लिया। पत्र-पत्रिकाओं में सरकार विरोधी संपादकीय लेख लिखे गए। दूसरी ओर सरकार ने घबराकर दमनचक्र चलाया। लाला लाजपत राय को देश निकाला देकर मांडले जेल (म्यांमार) भेज दिया गया। समाचार पत्रों व जलसे-जलूसो पर रोक लगा दी गई। युवकों को जेल में डाल दिया गया। उन्हें कठोर यातनाएँ दी गई मगर अंग्रेजी सरकार नवयुवकों को राष्ट्रवादी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी से नहीं रोक पाई। 1909 ई. में सम्प्रदाय के आधार पर बाँट कर भी अंग्रेज आंदोलन को रोक नहीं पाए।
4. रौलट एक्ट का विरोध – प्रथम विश्व युद्ध (1914 ई. – 1918 ई.) में महात्मा गांधी के प्रोत्साहन से प्रदेशवासियों ने बहुमूल्य योगदान दिए। हजारों की संख्या में हरियाणा के नौजवान ब्रिटिश सरकार की ओर से समुद्र पार भी लड़ने के लिए गए। धन संग्रह करके सहायता की गई लेकिन युद्ध के बाद भारतीय जनता की आँखें तब खुली की खुली रह गई जब 1919 ई. में ‘रौलट एक्ट’ लागू किया गया। हरियाणा की जनता ने इसका खुलकर विरोध किया। विभिन्न शहरों में जनसभाओं का आयोजन करके अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया गया तथा हड़तालें की गई।
5. गांधी जी की गिरफ्तारी – महात्मा गांधी ने हरियाणा के क्षेत्रों का दौरा करने का निश्चय किया, जिससे अंग्रेजी सरकार घबरा गई और 9 अप्रैल, 1919 ई. को गांधी जी को पलवल रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तथा अन्य प्रमुख नेताओं को भी गिरफ्तार करके दमनचक्र चलाया। इसी दौरान 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में शान्तिपूर्वक चल रही सभा पर जरनल डायर द्वारा गोलियाँ चला दी गई और सैंकड़ों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। पूरा देश इस अनहोनी घटना से हिल गया। हरियाणा में भी स्थान-स्थान पर विरोध प्रर्दशन होने लगे। जनता में अंग्रेजों के प्रति घृणा बढ़ गई।
6. असहयोग आंदोलन में हरियाणा का योगदान – 1920 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ। इसमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन को चलाने का निर्णय लिया गया। अतः हरियाणा में लाला लाजपत राय, लाला दुनी चन्द, लाला मुरलीधर, गणपतराय आदि महान राष्ट्रीय नेताओं ने विभिन्न शहरों में जनसभाएँ आयोजित की। असहयोग आंदोलन के अन्तर्गत सरकार को किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का निर्णय लिया गया, जिसके परणामस्वरूप प्रदेश के सैकड़ों लोगों ने उपाधियाँ त्याग दी। विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जाना बन्द कर दिया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी। किसानों द्वारा कर देना बन्द कर दिया गया। विभिन्न शहरों में शराब की दुकानों एवं विदेशी सामान बेचने बाली दुकानों के सामने धरने दिये जाने लगे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई और खादी पहनने की शपथ ली गई। हरियाणा में असहयोग आंदोलन गाँव-गाँव तथा शहर-शहर में बड़ी सफलता से चल रहा था। इससे सरकार घबरा गई और उसने आंदोलनकारियों की धर-पकड़ आरम्भ कर दी। हरियाणा से हजारों की संख्या में आंदोलनकारी गिरफ्तार किये गए। झज्जर के पंडित श्रीराम शर्मा ने भी असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने व्यक्तियों को न केवल एकजुट होने अपितु विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने के लिए भी प्रेरित किया।
7. साइमन कमीशन का विरोध – 1927 ई. में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन की नियुक्ति की गई, जिसके सातों सदस्य अंग्रेज थे। हरियाणा के भिवानी, रोहतक, झज्जर, हिसार, अम्बाला आदि शहरों में प्रभात फेरी निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया गया। लाहौर में लाला लाजपत राय सहित कई वरिष्ठ नेता प्रदेश से विरोध करने के लिए गए। इसी दौरान 1928 ई. को विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा लाठी चार्ज से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इसके विरोध में मार्च 1929 ई. में रोहतक में प्रान्तीय कॉन्फ्रेंस बुलाई गई जिसमें 30 हजार की भीड़ में अंग्रेजों की भरपूर निन्दा की गई।
8. नौजवान भारत सभा एवं हरियाणा – क्रांतिकारी विचारों वाले हरियाणा के नेताओं ने किसान, मजदूर व कारीगर वर्ग को ‘नौजवान भारत सभा’ से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। इस संगठन के निम्नलिखित उद्देश्य थे :
- राष्ट्र प्रेम की भावना का विकास करना।
- साम्प्रदायिकता की भावना को समाप्त करके अनेकता में एकता स्थापित करना।
- प्राकृतिक आपदा में आर्थिक व सामाजिक सहायता करना।
- ग्रामीण क्षेत्र में राष्ट्रवादी जागरुकता पैदा करना।
- स्वदेशी शिक्षा द्वारा राष्ट्रीयता का प्रचार करना।
इस नौजवान सभा ने हरियाणा में विभिन्न शहरों में शाखाएँ स्थापित की। इस सभा के व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों की गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे तथा क्रान्तिकारी नेताओं की हर तरह से सहायता करते थे। इसमें पोस्टर लगाना, हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना आदि प्रमुख कार्य थे लेकिन 1930 ई. में इस संगठन को अंग्रेजों ने अवैध घोषित करके इसके सदस्यों की धर पकड़ शुरू कर दी। अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया गया। धीरे-धीरे यह सभा कमजोर पड़ती गई।
9. हरियाणा में पूर्ण स्वतंत्रता दिवस – 1929 ई. में जब कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का लक्ष्य निर्धारित किया गया तब 26 जनवरी, 1930 ई. को हरियाणा सहित पूरे भारत में ‘स्वाधीनता दिवस’ मनाया गया। प्रदेश के हर नगर तथा गाँव-गाँव में पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, जुलूस निकाले गए, सभाएँ की गई।
10. सविनय अवज्ञा आंदोलन में हरियाणा की भागीदारी – गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 ई. में साबरमती आश्रम से ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ शुरू किया। महात्मा गांधी अपने 78 अनुयायियों के साथ 24 दिन की यात्रा (240 मील) पूरी करते हुए 6 अप्रैल, 1930 ई. को गुजरात के समुद्र तट पर दांडी नामक स्थान पर पहुंचे और नमक बनाकर कानून को तोड़ा। इसी के साथ प्रदेश की जनता में पुनः जोश आ गया। सत्याग्रहियों ने आंदोलन को शानदार ढंग से चलाने के लिए अम्बाला के सूरजभान की अध्यक्षता में 15 अप्रैल, 1930 ई. को झज्जर के गाँव शाहिदपुर में (अत्यधिक खारा पानी होने के कारण) नमक बनाकर आंदोलन की शुरुआत की। महिलाओं द्वारा शराब व विदेशी सामान बेचने वालों की दुकानों पर धरना दिया गया। किसानों द्वारा ‘कर मत दो’ अभियान चलाया गया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। विद्यार्थियों ने जुलूस निकाले तथा नारे लगाए। यहाँ तक कि स्त्रियों और लड़कियों ने भी असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। हरियाणा में आंदोलन ने बहुत जोर पकड़ा, जिससे ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। उस दौरान भी हरियाणा में आंदोलन की लहर कम नहीं हुई लेकिन मार्च 1931 ई. में ‘गांधी-इरविन समझौता” के तहत आंदोलन को स्थगित कर दिया गया। प्रदेश के नेताओं ने 1938 ई. में कांग्रेस के अन्तर्गत मदीना (रोहतक) में प्रान्तीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। आंदोलन की लहर को पुनः उठाने का प्रयास किया। कुछ ही दिनों के बाद जब सुभाष चन्द्र बोस ने हरियाणा का दौरा किया तो यहाँ की जनता में एक नया जोश पैदा हुआ तथा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष ने जोर पकड़ा।
11. भारत छोड़ो आंदोलन में हरियाणा का योगदान – 8 अगस्त, 1942 ई. को गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हड़ताल कर दी जिसमें अत्यधिक संख्या में वृद्ध, बच्चे, जवान, स्त्रियाँ सभी हड़ताल में शामिल हो गए। प्रदेश के विभिन्न रेलवे स्टेशन, डाकघर, तारघर आदि नष्ट कर दिए गए। सरकार के प्रत्येक कार्य में बाधा पहुँचाई गई। प्रदेश के कई शहरों जैसे हिसार, रोहतक, अम्बाला, करनाल आदि में सरकारी भवनों पर तिरंगा झण्डा फहराया गया। कुछ लोगों ने धन संग्रह करके आंदोलनकारियों को बम, हथियार आदि उपलब्ध करवाए। सरकार ने आंदोलनकारियों को दबाने के लिए पुलिस व सेना की सहायता ली। कई शहरों में भीड़ पर गोलियाँ भी चलाई गई। प्रदर्शनकारियों को पकड़कर यातनाएँ दी गई। प्रदेश के प्रमुख नेताओं को जेल में बन्द किया गया। रेवाडी के सत्यनारायण वशिष्ठ 1944 ई. में मात्र 32 वर्ष की आयु में अंग्रेजी सरकार की यातना से शहीद हो गए। प्रैस एवं रेडियो पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया।
हरियाणा वासियों ने बिना शस्त्रों के अंग्रेजी सरकार का सामना किया। भारत के तिरंगे झण्डे को फहराने की चाह में सैकड़ों लोगों ने हँसते-हँसते बलिदान दिया। हरियाणा सहित पूरे भारत में अब अंग्रेजों को अपने साम्राज्य को बनाए रखना असम्भव लगने लगा। क्रान्तिकारी शक्तियों का दमन करना अब आसान काम नहीं रहा। अतः ब्रिटिश सरकार चाहकर भी स्वतंत्रता की वेला को रोक नहीं सकी। परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हो गया।
12. हरियाणा की आजाद हिन्द फौज में भूमिका – 1938 ई. में कांग्रेस का अध्यक्ष रहते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हरियाणा के हिसार जिले के सातरोड़ गांव के अकाल सहायता केन्द्र का दौरा किया तथा सभी देशवासियों से हरियाणा के अकाल पीड़ितों की सहायता की अपील की। नेताजी ने हरियाणा के अन्य क्षेत्रों की भी यात्रा की उनके दौरे से हरियाणा के लोगों के मन में जोश एवं उत्साह का संचार हुआ। सुभाष चन्द्र बोस द्वारा 1943 ई. में आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन करके भारत की स्वतंत्रता के लिए सिंगापुर में सेना का गठन किया गया। हरियाणा से लगभग 398 अधिकारी तथा 2317 सैनिक आजाद हिन्द फौज में भारत की स्वतंत्रता के लिए शामिल हुए। प्रदेश के इन सेनानियों ने असहनीय कष्ट झेलते हुए अंग्रेजो के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया। नागालैण्ड व अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह पर स्वदेशी झण्डा फहराया गया। अतः हरियाणा के वीरों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में अपनी कुर्बानी देने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
13. स्वतन्त्रता आंदोलन में हरियाणा की महिलाओं की भूमिका – हरियाणा की महिलाओं ने भी अग्रिम पंक्ति में रह कर राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान दिया।
अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई, 1908 ई. को हरियाणा के कालका में हुआ था। वे एक सशक्त देशभक्त महिला थी। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे भारत में महिलाओं का नेतृत्व किया। वह ग्वालिया टैंक मैदान (मुम्बई) में पहली महिला रही, जिन्होंने राष्ट्र ध्वज फहराया। वे महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई। 1994 ई. में इन्हें ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। इनका नाम हरियाणा व पूरे भारत वर्ष में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है।
सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 ई. को अम्बाला में हुआ। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में इनका योगदान बहुत सराहनीय रहा। महिला आंदोलनों का नेतृत्व करना, उन्हें लाठी चलाना एवं प्राथमिक चिकित्सा की शिक्षा देना इनका महत्वपूर्ण कार्य था। इसके साथ-साथ उन्होंने सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। आजादी के बाद ये स्वतन्त्र भारत में उतर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। अरुणा आसफ अली तथा सुचेता कृपलानी के अतिरिक्त रोहतक की कस्तूरी बाई, अंबाला की भाग देवी तथा विद्यावती, हिसार की चित्रा देवी, भिवानी की मोहिनी देवी, गुरुग्राम की कमला देवी तथा सोनीपत की लीलावती ने भी विभिन्न राष्ट्रीय गतिविधियों में हिस्सा लिया। इनमें से कुछ तो जेल भी गई।
14. हरियाणा की देशी रियासतों में जन आन्दोलन – हरियाणा में उस समय कई देशी रियासतें थी। इन रियासतों के शासक निरंकुश शासक थे। वे जनता के प्रति किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं रखते थे। इनके द्वारा लगाए गए कर अनुचित होते थे। कृषकों व मज़दूरों से बेगार कारवाई जाती थी। रियासतों की जनता इन शासकों से तंग थी। जब हरियाणा के अन्य क्षेत्रों में जनजागृति आई तो इसका प्रभाव रियासतों की जनता पर भी पड़ा। परिणामस्वरूप यहाँ भी राष्ट्रवादी लोगों ने प्रजा मण्डल आंदोलन शुरू किया। सन 1927 ई. में रियासतों में आंदोलन को सही दिशा से चलाने के लिए ‘आल इण्डिया स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस’ का गठन किया गया। इसमें पं. नेकीराम शर्मा, पं. हरिराम व रामजीलाल आदि प्रमुख व्यक्ति थे। 1946 ई. में प्रजामण्डल ने हरियाणा की सभी रियासतों में आक्रामक आन्दोलन चलाया, जिसके अन्तर्गत किसानों ने कर देने से इंकार कर दिया, शेष वर्गों ने शासन से असहयोग किया तथा जनसमूह ने विरोध प्रदर्शन किया। आर्य समाज तथा सनातन धर्म के कार्यकर्त्ताओं ने रियासतों में विरोधी भावना को और अधिक उग्र किया। इस प्रकार विरोध को देखकर रियासतों के शासक धीरे-धीरे सुधार करने लगे तथा इन रियासतों में लोकतंत्रीय शासन की स्थापना हुई।
चौधरी छोटूराम –
चौधरी छोटू राम हरियाणा के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपना जीवन दरिद्र किसानों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने पंजाब के नेता फजले हुसैन से मिलकर 1923 ई. में ‘यूनियनिस्ट पार्टी’ का गठन किया। इस पार्टी का उद्देश्य किसानों और पिछड़े हुए गरीब लोगों का उद्धार करना था। जहाँ तक स्वतंत्रता की बात थी वह भी कांग्रेस की तरह ही डोमिनियन स्टेटस की ही मांग करते थे। कांग्रेस का विस्तार अभी तक गांवों तक नहीं हुआ था। चौधरी छोटूराम तथा यूनियनिस्ट पार्टी ने दरिद्र किसानों और पिछड़े हुए लोगों के हितों की आवाज उठाई। 1923 ई. के बाद हुए केंद्रीय विधान परिषद तथा पंजाब विधान परिषद के लगभग सभी चुनावों में यूनियनिस्ट पार्टी विजयी रही। चौधरी छोटूराम ने पंजाब सरकार में मंत्री रहते हुए किसानों के हितों के लिए कई कानून पास करवाए तथा किसानों को साहूकारों एवं महाजनों के चंगुल से मुक्त कराने का प्रयास किया। उनके द्वारा पास करवाए गए कानून ‘सुनहरी कानूनो’ के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने ‘जाट गजट’ नामक अखबार का प्रकाशन एवं संपादन किया तथा ‘ठग बाजार की सैर’ तथा ‘बेचारा किसान’ शीर्षक के तहत 17 लेखों की एक श्रृंखला भी लिखी। उन्होंने किसानों में व्याप्त हीन भावना को मिटाकर आत्मविश्वास उत्पन्न किया। जनसाधारण ने उन्हें ‘रहबर-ए-आज़म’ ‘दीनबंधु’ तथा ‘किसानों का मसीहा’ इत्यादि नाम दिए।
हरियाणा एक पूर्ण राज्य के रूप में –
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हरियाणा पंजाब राज्य के साथ जुड़ा हुआ था। इसके आर्थिक व सामाजिक हितों की निरंतर उपेक्षा की जा रही थी जिससे यहाँ के लोगों को अनुभव होने लगा कि पंजाब में रह कर उनका राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विकास नहीं हो सकता। इसके फलस्वरूप अलग प्रान्त के निर्माण के लिए आंदोलन छिड़ गया । 1949 ई. में “सच्चर समिति” तथा 1953 ई. में “राज्य पुनर्गठन आयोग” ने भी इस क्षेत्र के हितों की उपेक्षा की, जिसके कारण यहाँ विरोध प्रदर्शन होने लगे।
अलग प्रान्त की मांग को और अधिक प्रबल बनाने के लिए आर्य समाज, हिन्दू महासभा तथा जनसंघ आदि संगठनों ने इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन किए। पंडित श्रीराम शर्मा की अध्यक्षता में ‘हरियाणा विकास कमेटी’ द्वारा हरियाणा को अलग प्रांत की मांग को पुरजोर तरीके से रखा गया। पंजाब सरकार ने बहुत लोगों को जेलों में बन्द कर दिया लेकिन विरोध बढ़ता देखकर एक अलग प्रान्त की मांग को स्वीकार कर लिया गया। एक विधेयक के अनुसार 1 नवम्बर, 1966 ई. को हरियाणा का एक पूर्ण राज्य के रूप में उदय हुआ।
महत्वपूर्ण तिथियां –
1. सुर्जीअर्जुन गाँव की संधि – 1803 ई.
2. अंबाला में क्रांति का आरंभ – 9 मई, 1857 ई.
3. राजा नाहर सिंह को फाँसी – 9 जनवरी, 1858 ई.
4. राव तुलाराम की मृत्यु – 23 सितंबर, 1863 ई.
5. पलवल स्टेशन से गांधी जी की गिरफ्तारी – 9 अप्रैल, 1919 ई.
6. ऑल इंडिया पीपुल्स कांफ्रेंस का गठन – 1927 ई.
7. लाला लाजपत राय की मृत्यु – 17 नवंबर, 1928 ई.
8. सच्चर समिति का गठन – 1949 ई.
9. राज्य पुनर्गठन आयोग का निर्माण – 1953 ई.
10. हरियाणा की अलग राज्य के रूप में स्थापना – 1 नवंबर, 1966 ई.
हरियाणा के केंद्र :-
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क्रांतिकारियों के नाम :-
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