HBSE Class 10 नैतिक शिक्षा Chapter 13 राष्ट्रीयता का विकास Explain Solution

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राष्ट्रीयता का विकास Class 10 Naitik Siksha Chapter 13 Explain


राष्ट्रीयता किसी भी देश की आत्मा होती है। इसकी सुदृढ़ता तथा व्यापकता में ही देश की समृद्धि एवं प्रगति निहित है। जो देश आन्तरिक रूप से जितना अधिक सघन और एक है, वह उतना ही सशक्त और प्रभावशाली भी होता है। जिस देश के जन-समुदाय में जितनी अधिक सद्भावना, सहिष्णुता एवं बलिदान की भावना है, वह उतना ही अधिक ऊर्जावान व विकसित होता है।

वैदिक ऋषि ने ऋग्वेद में तत्कालीन जन-समुदाय की राष्ट्रीय भावना को वाणी दी है —

व्यविष्ठे बहुपाच्ये यतेमहि स्वराज्ये (ऋग्वेद – 5/66/6)

अर्थात् हम विविध विशाल एवं बहुपथ, बहुरक्षित स्वराज्य के कल्याणार्थ प्रयत्नशील रहेंगे। इस उक्ति से स्पष्ट है कि प्राचीनतम समाज में भी विविध मतों एवं विचारों को मानते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा एवं कल्याण कार्य के लिए संकल्प था। स्पष्ट है कि राष्ट्रीयता एक मानवीय उपलब्धि मानवीय स्वभाव और सामुदायिक जीवन क्रम है, जो एक निश्चित भू-भाग के लोगों में स्वत उदभूत होती है। यजुर्वेद में भी कहा गया है —

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः । यजुर्वेद – 9 / 23

अर्थात् हमें राष्ट्र हित में जाग्रत रहना चाहिए। हम अपने राष्ट्र में सजग, सावधान होक पुरोहित, नेतृत्वकर्त्ता बनें।

राष्ट्रीय संकट की घड़ी में जब सारा राष्ट्र एक तन एक मन होकर खड़ा हो जाता है, त राष्ट्रीयता का विकास जीवन्त हो उठता है। सच तो यह है कि राष्ट्रीयता ही राष्ट्र की आत्म और शक्ति होती है।

राष्ट्रीयता तथा स्वदेश प्रेम प्रायः समानार्थी हैं। इसका अस्तित्व मानव स्वभाव के मूल में है। वास्तव में राष्ट्रीयता को एक ऐसी शक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो एक निश्चित भू—भाग के जन-समुदाय का शासन की निरंकुशता के विरुद्ध अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने तथा बाह्य आक्रमणों से स्वाधीनता की रक्षा करने के उद्देश्य से एकता के सूत्र में बाँधती है।

राष्ट्रीयता के विकास के लिए अनिवार्य तत्त्व हैं- राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना, भाषा, संस्कृति, धर्म, समुदाय, भूगोल आदि। इन सब तत्त्वों का निर्माण और संरक्षण समर्पित जन-समुदाय द्वारा ही होता है। जब तक राष्ट्र का एक-एक घटक अपने कर्त्तव्य का निष्ठा से पालन नहीं करेगा, तब तक राष्ट्र का निर्माण सम्भव नहीं। यदि एक भी तत्त्व के निर्माण में कमी रही तो राष्ट्र रूपी विशाल भवन की नींव कमजोर रह जाएगी। भारत जैसे बहुभाषी एवं बहुधर्मी देश के लिए यह भी आवश्यक है कि सभी धर्मों और सम्प्रदायों को सम्मान देते हुए राष्ट्र को सर्वोपरि मानें। मूलतः राष्ट्र प्रथम होता है। अन्य विश्वास या मत उसके बाद ही होते हैं। अतः सभी समुदायों में राष्ट्र के प्रति एकनिष्ठ भाव होना चाहिए। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि जिस राष्ट्र को सही दिशा निर्देश करने वाले राष्ट्रनायकों का नेतृत्व सुलभ हो जाता है, वहाँ सामान्य-जन भी उससे प्रेरित होकर राष्ट्रीयता को विकसित करने में लग जाता है। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जिस राष्ट्रीयता का विकास हुआ, उसका नेतृत्व करने वालों में महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, शहीद भगत सिंह, भीमराव अम्बेडकर, सुभाषचन्द्र बोस, वीर सावरकर आदि का नाम लिया जा सकता है।

राष्ट्रीयता के विकास में प्रत्येक व्यक्ति को अपना योगदान एवं बलिदान देना होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि क्षमता और योग्यता के अनुसार इनमें से किसी भी तत्त्व के निर्माण में जुट सकता है। राष्ट्र की भौगोलिक सुरक्षा करने के लिए सैनिक प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं। इसी प्रकार राष्ट्र के भीतर विभिन्न कार्य करने वाले लोग भी राष्ट्रीयता के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं। धर्म नेता सभी धर्मों में सौहार्द, सद्भाव बनाने, भाषाविद भाषाओं के मध्य सामंजस्य बनाने, संस्कृति के निर्माता मिली-जुली संस्कृति विकसित करने में योगदान देकर राष्ट्रीयता का विकास कर सकते हैं। जो जहाँ, जिस क्षेत्र में कार्यरत है, वहाँ राष्ट्रीयता के विकास में योगदान देकर वह देश-प्रेम की भावना प्रदर्शित कर सकता है।

राष्ट्रीयता का सबसे बड़ा गुण है कि वह देशवासियों के हृदय में देश-प्रेम की भावना को जगाती है। जब देश के लोग अपने देश को प्रेम करने लगते हैं, तब निश्चय ही उस देश की राष्ट्रीयता का विकास सभी क्षेत्रों में होता है। वे राष्ट्र के लिए हँसते-हँसते अपना सर्वस्व अर्पित कर देते हैं। उनके मन से संकीर्ण एवं स्वार्थ भावना का लोप हो जाता है। राष्ट्रीयता भ्रातृ-भाव जगाती है। राष्ट्रीय संस्कृति सह-अस्तित्व एवं सहयोग की भावना विकसित करती है। संकीर्णता, स्वार्थता, कट्टरता राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्व हैं। स्वार्थवश व्यक्ति राष्ट्रहित को दाँव पर लगा देता है, जिससे देश आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक रूप से क्रमशः गुलामी की ओर अग्रसर होता है। गुलामी की उन बेड़ियों को तोड़ने के लिए राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करना अत्यन्त आवश्यक है। अतः निजी लाभ-हानि की आकांक्षा से सर्वथा मुक्त होकर राष्ट्रहित में कार्य करना राष्ट्रीयता का विकास है। अपने जातीय, वर्गीय, समुदाय व सम्प्रदाय के हित प्रायः इसकी सीमा रेखा बन जाते हैं। इनसे मुक्त होकर ही राष्ट्रीयता के विकास का विराट स्वप्न साकार कर सकते हैं। इस विषय में कवि चन्द्रसेन विराट की पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं —

भिन्न-भिन्न भाषाएँ भूषा यद्यपि धर्म अनेक
किन्तु सभी भारतवासी हैं और हृदय से एक
तुझ पर बलि है हृदय हृदय का स्पन्दन मेरे देश
वन्दन मेरे देश- तेरा वन्दन मेरे देश

राष्ट्रीयता की भावना हमें तमाम संकीर्णताओं, स्वार्थो से ऊपर उठाकर व्यापक जनहित, राष्ट्रहित में कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। मानव को मानव से मिलाती है। राष्ट्रीयता का विकास विश्व मानवता के निर्माण की आधारभूमि है। मशहूर शायर इकबाल की पंक्तियों द्रष्टव्य हैं

खाक-ए-वतन का मुझको हर ज़र्रा देवता है।

अर्थात् मातृ-भूमि की धूलि का कण-कण मेरे लिए देवता के समान है।


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