HBSE Class 10 नैतिक शिक्षा Chapter 15 महात्मा बुद्ध व बोध कथाएँ Explain Solution

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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 15 महात्मा बुद्ध व बोध कथाएँ / Mahatma Budh and Bodh kathaye Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.

महात्मा बुद्ध व बोध कथाएँ Class 10 Naitik Siksha Chapter 15 Explain


जो नित्य एवं स्थायी प्रतीत होता है, वह भी विनाशी है। जहाँ जन्म है, वहाँ मरण भी है। ऐसे महान विचारों को आत्मसात करते हुए महात्मा बुद्ध ने बौद्ध मत की स्थापना की, जो विश्व के प्रमुख सम्प्रदायों में से एक है।

महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में 563 ई. पू. हुआ था। उनकी माता का नाम महामाया था, जो देवदह की राजकुमारी थी। उनके पिता शुद्धोदन शाक्यवंश के क्षत्रिय राजा थे। महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्वार्थ के जन्म के सातवें दिन माता का देहान्त हो जाने के कारण उनका पालन पोषण उनकी विमाता प्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की आयु में यशोधरा से किया गया। उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृतव्यक्ति एवं संन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की ओर मोड़ दिया। मात्र 29 वर्ष की अवस्था में एक रात सिद्धार्थ अपने पुत्र व पत्नी को सोता हुआ छोड़कर गृह त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पड़े। सात दिन व सात रात समाधिस्थ रहने के बाद आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन इन्हें सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। इस घटना को ‘सम्बोधि’ कहा गया। जिस वट वृक्ष के नीचे उनको ज्ञान प्राप्त हुआ था, उसे बोधि वृक्ष’ तथा गया को बोध गया कहा जाता है।

महात्मा बुद्ध ने अपना सर्वप्रथम उपदेश सारनाथ में दिया। बौद्ध मत के उपदेशों का संकलन ‘त्रिपिटक’ के अन्तर्गत किया गया। हिन्दू मत में वेदों का जो स्थान है, बौद्ध मत में वही स्थान त्रिपिटक का है।

महात्मा बुद्ध ने क्रोध को अकुशल धम्म, पाप धम्म कहा है क्योंकि क्रोध के कारण व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की शान्ति भंग होती है। महात्मा बुद्ध कहते हैं, “क्रोध को अक्रोध से, बुराई को अच्छाई से, अनुदारता को उदारता से और असत्य को सत्य से जीतना चाहिए।”

आइए, बोध कथाओं में वर्णित जीवन मूल्यों का अध्ययन करें।

1. आत्मनियन्त्रण की कला

एक लड़का अत्यन्त जिज्ञासु था। उसे जहाँ भी कोई नई चीज़ सीखने को मिलती, वह उसे सीख लेता। उसने तीर बनाने वाले से तीर, नाव बनाने वाले से नाव, मकान बनाने वाले से मकान बनाना और बाँसुरी बजाने वाले से बाँसुरी बजाना सीखा। इस प्रकार वह अनेक कलाओं में तो प्रवीण हो गया लेकिन उसमें अहंकार आ गया। वह अपने परिजनों व मित्रों से कहता, ‘इस दुनिया में मुझ सा प्रतिभा का धनी कोई नहीं है।’

एक बार शहर में गौतम बुद्ध का आगमन हुआ। उन्होंने जब उस लड़के की कला और अहंकार के बारे में सुना तो सोचा किं. इस लड़के को एक ऐसी कला सिखानी चाहिए, जो अब तक सीखी गई कलाओं से बड़ी हो। वे सहज भाव से उसके पास गए।

लड़के ने पूछा, ‘आप कौन है?’ बुद्ध बोले, “मैं अपने शरीर को नियन्त्रण में रखने वाला एक आदमी हूँ।” लड़के ने उन्हें अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा। तब उन्होंने कहा, “जो तीर चलाना जानता है, वह तीर चलाता है, जो मकान बनाना जानता है, वह मकान बनाता है, परन्तु जो ज्ञानी है, वह स्वयं पर शासन करता है।”

लड़के ने पूछा, “वह कैसे?” बुद्ध ने उत्तर दिया, “यदि कोई उसकी प्रशंसा करता है, तो वह अभिमान से फूलकर खुश नहीं हो जाता और यदि उसकी निन्दा करता है, तो भी वह शान्त बना रहता है। ऐसे व्यक्ति ही सदा आनन्द में रहते हैं।” लड़का जान गया कि सबसे बड़ी कला तो स्वयं को वश में रखना है। कथा का सार यह है कि आत्मनियन्त्रण जब संघ जाता है, तो समभाव आता है। यही समभाव अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में हमें प्रसन्न रखता है।

2. कहीं पहुंचना है तो चलना होगा

एक व्यक्ति प्रतिदिन महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुना करता था। उसका यह क्रम एक महीने तक चला लेकिन उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को बार-बार समझाते थे कि लोभ, द्वेष और मोह पाप के मूल हैं, इन्हें त्यागो। परन्तु इन बुराइयों से बचना तो दूर, वह उनमें और रमता गया। महात्मा बुद्ध कहते थे कि क्रोध करने वाले पर जो क्रोध करता है, उसका अधिक अहित होता है लेकिन जो क्रोध का जवाब क्रोध से नहीं देता, वह एक बड़ा युद्ध जीत लेता है। बुद्ध के प्रवचन सुनने के बाद भी उस व्यक्ति का स्वभाव उग्रतर होता जा रहा था। एक दिन वह परेशान होकर बुद्ध के पास गया और उन्हें प्रणाम निवेदन करके अपनी समस्या बताई।

बुद्ध ने कहा, “कहाँ के रहने वाले हो?”

वह व्यक्ति बोला, “आवस्ती का।”

बुद्ध ने पूछा, “राजगृह से श्रावस्ती कितनी दूर है?” उसने बता दिया।

“कैसे जाते हो वहाँ?” बुद्ध ने पूछा। उसने हिसाब लगा कर वह भी बता दिया।

‘ठीक। अब यह बताओ, यहाँ बैठे-बैठे राजगृह पहुँच सकते हो?’

“यह कैसे हो सकता है? वहाँ पहुँचने के लिए तो चलना होगा।”

बुद्ध बड़े प्यार से बोले, “तुमने सही कहा। चलने पर ही मंजिल तक पहुँचा जा सकता है। इसी तरह अच्छी बातों का असर तभी पड़ता है, जब उन पर अमल किया जाए। ज्ञान के अनुसार कर्म न होने पर वह व्यर्थ है।”


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