HBSE Class 10 नैतिक शिक्षा Chapter 17 नियम-अनुशासन : सभ्य जीवन का आधार Explain Solution

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नियम-अनुशासन : सभ्य जीवन का आधार Class 10 Naitik Siksha Chapter 17 Explain


एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः। 
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ।। (गीता 3 / 16 )

अर्थ : हे पार्थ! जो मनुष्य इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्टिचक्र के अनुसार नहीं चलता, वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करने वाला अघायु (पापमय जीवन बिताने वाला) मनुष्य संसार में व्यर्थ ही जीता है।

भावानुवाद : चक्र सृष्टि का नियमों में चल रहा, जो अनुसार इसके नहीं वर्तता । 
रमण करता है इन्द्रियों में ही जो जीता व्यर्थ में ही पापी है वो।।

श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक नियम-संयम और अनुशासनपूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा है। नियम अनुशासन तोड़कर जीने की हानियाँ यहाँ व्यक्त की गई हैं।

भगवद्गीता एक ऐसा अनूठा ग्रन्थ है, जिसके प्रत्येक श्लोक में प्रेरणा लेने के लिए बहुत कुछ है। इस श्लोक का पहले संक्षिप्त भाव समझें-सृष्टि का चक्र नियमों में चल रहा है, जो नियमों के अनुसार नहीं चलता, वह केवल इन्द्रिय सुखों में ही रमण करने वाला, वहीं तक सीमित रहता हुआ, जीवन व्यर्थ कर लेता है। मात्र इतना पढ़कर बच्चो! आपको लग सकता है कि अभी तो हमारी छोटी आयु है व पढ़ाई के दिन हैं। अभी से हमें इस चक्र को समझने की क्या आवश्यकता ?

बहुत बड़ी आवश्यकता है। बाल्यकाल से ही आवश्यक है कि जीवन नियम-अनुशासन में हो । प्रकृति परमात्मा ने जिस यज्ञ भाव से सृष्टि बनाई और यह चल रही है, उसी यज्ञ भाव से मनुष्य इसे मानकर इसका प्रयोग करता तो कठिनाई नहीं होती। शरीर का संचालन परमात्मा की शक्ति से है, शरीर को नियम संयम में रखो तो ही अच्छा, नहीं तो कठिनाइयाँ होंगी ही। ऐसा देखा भी जा रहा है।

शरीर या प्रकृति की व्यवस्था – विकृतियाँ परमात्मा ने बनाई, नियम संयम में न चलने से ही समस्याएँ हैं। यह श्लोक यही समझाना चाहता है कि कहीं भी हों, नियम और अनुशासन में रहें। घर परिवार की व्यवस्था तभी अच्छे ढंग से चल सकती है, जब परिवार में नियम अनुशासन हो। कोई भी कार्यालय तभी ठीक से चल सकता है, जब वहाँ काम करने वाले नियमों का पालन करें ।

इस श्लोक को प्रत्येक क्षेत्र में देखो! प्रकृति में सूर्य निरन्तर समय पर उगता व छिपता है। इसी प्रकार तुम स्वास्थ्य के नियमों का पालन करोगे, शरीर को नियम संयम में रखोगे तो ही शरीर की व्यवस्था ठीक चलेगी। सड़क पर बाईं ओर चलो-यह नियम है; अथवा इससे सम्बन्धित और भी ट्रैफिक नियम जैसे गति नियन्त्रण, लाल बत्ती है तो रुकना, दोपहिया वाहन चला रहे हैं तो हैलमेट लगाना या कार चलाते हुए बैल्ट लगाना, चौराहे पर देखकर आगे बढ़ना आदि-आदि ! कोई कहे, मुझे क्या? मैं जैसे चलूँ, जहाँ चलूँ-अ -आप समझ सकते हैं कि ऐसी भूल कितने घातक परिणाम ला सकती है अथवा सीधे शब्दों में दुर्घटनाओं को स्वयं का निमन्त्रण और जीवन को निरर्थक गँवाने की स्थिति बना सकती है। कोई कहे मुझे जानकारी ही नहीं, यह भी अनुचित है। नियम-कानून से अनभिज्ञता कोई बहाना नहीं (Ignorance of Law is no excuse)

घर में हैं या विद्यालय में अथवा किसी कार्यालय में, वहाँ के नियमों के अनुसार रहेंगे तो ही व्यवस्था ठीक चलेगी। हर व्यक्ति यदि अपने मनमाने ढंग से व्यवहार आचरण करने लगे तो सोचो परिणाम क्या होगा? आपसी विद्वेष व क्लेश बढ़ेंगे; व्यवस्था में कठिनाइयाँ आएँगी ही

भारत की युवा ऊर्जा! आओ, श्रीमद्भगवद्गीता की इस प्रेरणा को व्यापक अर्थ में समझें और स्वीकार करें! हर क्षेत्र में नियम पालन को अपना स्वभाव बनाएँ। विद्यालय में हैं या कार्यालय में; वाहन चला रहे हैं या कुछ और कर रहे हैं- नियमों का पालन अपने आप में आपको महानता की ओर ले जाता है; जबकि नियमों का उल्लंघन अपने आगे ही प्रश्न चिह्न खड़े करता है। नियम—अनुशासन अच्छे, सभ्य, मर्यादित जीवन का प्रथम सोपान है। बच्चो। क्या आप असभ्य कहलाना चाहोगे? यदि नहीं तो आओ श्रीमद्भगवद्गीता की इस प्रेरणा के अनुसार ही जीवन यात्रा में आगे बढ़ें और महानता के शिखर छूने में तत्पर हो जाएँ। अपने जीवन में गीता को जीएँ। इसीलिए तो यह आह्वान है कि गीता पढ़ो, हर क्षेत्र में आगे बढ़ो।


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