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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 2 स्वास्थ्य और योग / Swasthya aur Yog Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.
स्वास्थ्य और योग Class 10 Naitik Siksha Chapter 2 Explain
आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में स्वयं को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। अतः योगाभ्यास हर किसी की ज़रूरत है। कामकाजी लोग तथा विद्यार्थीगण कुछ देर योग करके, काम के दबाव के बावजूद, स्वयं को तरोताजा महसूस कर सकते हैं।
योग का अर्थ है जोड़ना। योग शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने का काम करता है। योग हमें चिन्ता एवं तनाव से मुक्त करता है। तनाव के कारण कमजोरी, क्रोध, ईर्ष्या और अन्य नकारात्मक भावनाएँ आती हैं। ध्यान-प्रक्रिया और साधारण व्यायाम से हम तनावमुक्त होते हैं तो तन और मन स्वस्थ रहते हैं। साथ ही प्रसन्न रहने की वृत्ति का निर्माण होता है। जब कोई स्वस्थ और प्रसन्न होता है तो वह हिंसक नहीं होता। योग ज्ञान के सागर के समान विशाल है। इसका अभ्यास व्यक्ति को दुःख से बाहर निकालता है और उसकी सहनशक्ति को बढ़ाता है।
प्रायः यह समझा जाता है कि दो चार आसन और प्राणायाम करना ही योग है। लेकिन बात ऐसी नहीं है। वास्तव में यह सुपरिभाषित दर्शन तथा समग्रता पर आधारित लक्ष्य का विषय है। योग मानव को महान बनाने का कार्य करता है। अतः समस्त मानवता के लाभ के लिए है।
ईसाई मत में उपवास को महत्त्व देना, इन्द्रियों का दास न बनना, ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना तथा सत्कर्म करते हुए ईश्वर में विलीन हो जाना ही योग है।
इस्लाम में नमाज, आसन एवं ध्यान पर आधारित प्रार्थना पद्धति है। पाँच वक्त का नमाजी प्रायः रोगमुक्त रहता है।
कबीर का पूरा साहित्य ही योग पर आधारित है। यह जन सामान्य को योग अपनाने के लिए प्रेरित करता है। अब्दुल रहीम खानखाना के निम्नलिखित दोहे में योग और प्राकृतिक चिकित्सा के लाभों की व्याख्या ही तो निहित है।
रहिमन बहु भैषज करत, व्याधि न छाडत साथ।
खग-मृग बसत अरोग वन, हरि अनाथ के नाथ।।
यहाँ बतलाया गया है कि वन यानी प्राकृतिक वातावरण तथा हरि अर्थात् प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव में जो भी रहता है, वह सदैव नीरोग रहता है। अन्यथा अनेक प्रकार की औषधियाँ लेने व विभिन्न प्रकार की चिकित्सा कराने पर भी बीमारियों साथ नहीं छोड़ती हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार योगः कर्मसु कौशलम् अर्थात् कर्म करने की एक प्रकार की विशेष युक्ति को योग कहते हैं।
कहा जा सकता है कि योग सम्पूर्ण मानवता की धरोहर है, जिसका सम्बन्ध किसी विशेष धर्म अथवा सम्प्रदाय से न होकर अखिल विश्व समुदाय से है। मनुष्य के कष्टों का निवारण एवं कल्याण जीवन में योग पद्धति को अपनाने से सम्भव है। स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता :
योग का प्रयोग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभों के लिए हमेशा से होता रहा है। आज के चिकित्सा शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि योग मानव के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए वरदान है।
जिम आदि से शरीर के किसी खास अंग का व्यायाम होता है, जबकि योग से शरीर के समस्त अंगों-प्रत्यंगों, ग्रन्थियों का व्यायाम होता है। इससे प्रत्येक अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से कार्य करने लगता है। योगाभ्यास से रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। बुढ़ापे में भी जवान बने रह सकते हैं। त्वचा पर चमक आती है तथा शरीर स्वस्थ, नीरोग और बलवान बनता है।
शारीरिक व मानसिक चिकित्सा की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से योग एक है। दमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया या जोड़ों का दर्द, पाचन तन्त्र की गड़बड़ी आदि रोगों की चिकित्सा के लिए योग एक वैकल्पिक प्रणाली के रूप में सफलता प्राप्त कर चुका है, जबकि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली वहाँ विफल हो चुकी थी।
तनाव और कोलाहलपूर्ण सामाजिक जीवन में अधिकतर लोगों के लिए योग, स्वास्थ्य रक्षा एवं मंगल का एक साधन है। रात-दिन मोबाइल फोन की घनघनाती घण्टियों और चौबीस घण्टों की व्यावसायिक आपाधापी के बीच योग राहत पहुँचाता है और कर्म में कुशलता लाता है।
21 वीं सदी के शुरू में योग के प्रचार-प्रसार को जो आधुनिक रंग दिया गया, उसके नतीजे व्यापक स्तर पर आने लगे हैं। योग के प्रति भारत ही नहीं, विदेशों में भी रुझान बढ़ा है। आज दुनिया भर के देशों में योग का पाठ पढ़ा जा रहा है। हर ओर योगासन की चर्चा है। पश्चिमी जगत आधुनिक जीवन शैली और रिश्तों में हो रहे बिखराव के कारण तनाव और चिन्ता से ग्रस्त रहने लगा है। जीवनशैली को आलीशान बनाने के बाद भी जब वह अवसाद से घिरा रहा तो शान्ति की तलाश के दौरान योग को वह अन्तिम विकल्प के रूप में आजमाने लगा है।
प्रसिद्ध योगगुरु बी. के. एस. आयंगर ने अपने विशेष ‘आयंगर योग से देश-विदेश में योग का प्रसार किया। उन्होंने योग दर्शन की पुस्तकें लाइट ऑन योग, लाइट ऑन प्राणायाम और ‘लाइट ऑन द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि भी लिखीं। स्वामी कुवलयानन्द हठयोगी टी. कृष्णाचार्य, श्री अरविन्दो चिदानन्द सरस्वती, सत्यानन्द सरस्वती, महर्षि महेश योगी और श्री कृष्ण पट्टाभि तथा बाबा रामदेव आदि की भारत को विश्व योगगुरु बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्ष 2014 में भारतीय प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया।
योगासन के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए:
- आसन करने का स्थान खुला हो और भूमि समतल हो।
- योगासन करते समय ढीले वस्त्र पहनने चाहिए।
- जमीन पर दरी आदि बिछाकर योग करें।
- आसन सम्बन्धी क्रियाएँ धीरे-धीरे की जाएँ। एक दिन में अधिक आसन नहीं करने चाहिए।
- मोबाइल की लीड लगाकर, टी.वी. देखते हुए या संगीत सुनते हुए आसन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे श्वासों से ध्यान हटता है।
- योग के दौरान यदि शरीर के किसी हिस्से में दर्द महसूस होता हो तो आसन रोक देना चाहिए।
- सन्तुलित, सात्त्विक व समुचित मात्रा में भोजन लेना चाहिए।
- आसन के तुरन्त बाद पानी नहीं पीना चाहिए।
- योगासन करने वालों को बीडी, सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि के सेवन से बचना चाहिए।