HBSE Class 10 नैतिक शिक्षा Chapter 7 बर्डमैन ऑफ इंडिया : सालिम अली Explain Solution

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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 7 बर्डमैन ऑफ इंडिया : सालिम अली / Birdman of India Salim Ali Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.

बर्डमैन ऑफ इंडिया : सालिम अली Class 10 Naitik Siksha Chapter 7 Explain


आहा सालिम हमारे हीरो हैं हृदयवान 
निर्मल सलिल त्रिवेणी है जिनका ज्ञान 
चिकुर का है भय उनको, वह फिन बया का बान्धव 
सचमुच में हैं सालिम उल्लेखनीय मानव — डिल्लन रिप्ली (सम्पादक : ए बण्डल ऑफ फैदर्स)

दुनिया में ऐसे कम ही लोग हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं और मनुष्य श्रेणी से अलग जीवों के बारे में सोचने वाले तो विरले ही हैं। ऐसा ही एक विरला व्यक्तित्व था- मशहूर प्रकृतिवादी सालिम अली का, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी पक्षियों के लिए लगा दी। कहते हैं कि सालिम अली परिन्दों की जुबान समझते थे और इसी कारण उन्हें “बर्डमैन ऑफ इण्डिया’ कहा गया।

उनका पूरा नाम सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली था, जिनका जन्म 12 नवम्बर 1896 को मुम्बई में एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में हुआ। ये पाँच भाइयों व चार बहनों के अनाथ परिवार के सबसे छोटे सदस्य थे। इनके जन्म के एक वर्ष बाद पिता मोइजुद्दीन की और तीन वर्ष बाद माता जीनत उन-निसा की मृत्यु हो गई। इनकी परवरिश इनके मामा अमीरुद्दीन तैयब तथा निस्सन्तान मामी हामिदा बेगम की देखरेख में खेतवाड़ी, मुम्बई में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुई। सालिम का बचपन चिड़ियों के बीच ही गुजरा।

सालिम अपनी प्राथमिक शिक्षा के लिए अपनी दो बहनों के साथ गिरिगाँव में स्थापित जनाना बाइबिल मेडिकल मिशन गर्ल्स हाई स्कूल में दाखिल हुए और बाद में मुम्बई के सेण्ट जेवियर स्कूल में प्रवेश लिया। इन्होंने 1913 में मुम्बई विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। सालिम अली की रुचि बचपन से ही प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में घूमने की रही। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी तरह से नहीं कर पाए। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया गया। यह क्षेत्र चारों ओर से जंगलों से घिरा था। यहाँ सालिम को अपने प्रकृतिवादी कौशल को निखारने का अवसर मिला। कुछ साल के बाद 1917 में भारत लौटने के बाद इन्होंने औपचारिक पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। सालिम अली ने पक्षी शास्त्र विषय में प्रशिक्षण लिया और मुम्बई के नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के म्यूजियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गए। दिसम्बर 1918 में तेहमिना अली से इनका विवाह हुआ। सालिम अली को प्रारम्भिक सर्वेक्षणों में पत्नी का साथ और समर्थन दोनों प्राप्त हुए।

अपनी आत्मकथा ‘द फॉल ऑफ ए स्पैरो में अली ने पीले गर्दन वाली गौरैया की घटना को अपने जीवन का परिवर्तन-क्षण माना है क्योंकि उन्हें पक्षी विज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा वहीं से मिली थी। उस समय एक भारतीय के लिए यह कैरियर सम्बन्धी असामान्य चुनाव था।

पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के अध्ययन के लिए वे भारत के कई क्षेत्रों के जंगलों में घूमे। कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में उन्होंने बया की एक ऐसी प्रजाति ढूँढ़ निकाली, जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। सालिम अली ने पक्षियों को इतना निकट से पहचाना कि वे पक्षियों के साथ उनकी भाषा में बात भी कर लेते थे। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत को सालिम अली अच्छी तरह पहचानते थे। अपने अध्ययन के आधार पर उन्होंने ही बताया था कि साइबेरियन सारस माँसाहारी नहीं होते, वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। पक्षियों के प्रति सालिम अली का व्यवहार मित्रतापूर्ण था। उनके पास बिना कष्ट पहुँचाए चिडियों को पकड़ने के 100 से ज्यादा तरीके थे। बिना कष्ट पहुँचाए चिडियों को पकड़ने की प्रसिद्ध ‘गॉग एंड फायर’ व ‘डेक्कन विधि सालिम अली की ही खोज है।

सन 1980 में सालिम अली ने एक बी. एन. एच.एस परियोजना का भी निर्देशन किया, जिसका उद्देश्य भारतीय हवाई अड्डों पर पक्षियों के टकराने की घटनाओं को कम करना था। उन्होंने भारत के उन पक्षी प्रेमियों, जो “न्यूजलेटर फॉर बर्ड वाचर्स से सम्बन्धित थे, के माध्यम से भी प्रारम्भिक नागरिक विज्ञान परियोजनाओं पर काम करने का प्रयास किया। सालिम अली ने भरतपुर पक्षी अभयारण्य के नाम और निर्णय को प्रभावित किया, जिससे साइलेंट वैली नेशनल पार्क का बचाव हुआ। डॉ. अली का स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पक्षी संरक्षण सम्बन्धी मुद्दों पर काफी प्रभाव था। सालिम अली ने कई पत्रिकाओं के लिए लेख लिखे, जिनमें मुख्य रूप से ‘जर्नल ऑफ द बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के लिए लिखा। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को ‘पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। उनकी ‘द बुक ऑफ इण्डियन बर्ड्स पुस्तक की 1941 में प्रकाशित होने के बाद रिकार्ड बिक्री हुई। यह पुस्तक परिन्दों के बारे में जानकारियों का महासमुद्र थी। उन्होंने एक अन्य पुस्तक “ए हैण्डबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इण्डिया एण्ड पाकिस्तान लिखी, जिसमें अनेक प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, उनकी प्रवासी आदतों सम्बन्धी जानकारियाँ दी गई हैं।

सालिम अली को देश-विदेश के प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। पक्षियों पर किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से 1958 में पद्म भूषण व 1976 में पद्म विभूषण सम्मानों से सम्मानित किया गया। वन्य जीव संरक्षण के लिए उन्हें अनेक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुए।

लम्बे समय से कैंसर से जूझते हुए 91 वर्ष की अवस्था में सालिम अली का 27 जुलाई 1987 को निधन हुआ। सालिम अली भारत में एक पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र की स्थापना करना चाहते थे। इनकी चाहत को ध्यान में रखते हुए इनके नाम पर ‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी और पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय द्वारा कोयम्बटूर के निकट अनाइकट्टी नामक स्थान पर सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र स्थापित किया गया है। 1

सालिम अली के विषय में कहा जा सकता है कि वे प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ एक हँसती-खेलती. रहस्य भरी दुनिया पसरी थी। उन्होंने यह दुनिया बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी। वर्तमान समय में जब अनेकानेक पक्षी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, उनकी जीवनदृष्टि हमारे लिए प्रेरणा का आधार बन सकती है।


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