NCERT Class 10 Hindi Kanyadan-RituRaj Lekhak Jivan Parichay ( ऋतुराज लेखक जीवन परिचय ) of Kshitij Bhag 2 / क्षितिज भाग 2 Specially Designed for Write in Exams of CBSE, HBSE, Up Board, Mp Board, Rbse.
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NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 Kavita Kanyadan Lekhak RituRaj / कन्यादान – ऋतुराज लेखक जीवन परिचय / Lekhak Jivan Parichay for Exams.
कन्यादान – ऋतुराज लेखक जीवन परिचय
1.सामान्य जीवन परिचय –
ऋतुराज हिंदी साहित्य के एक जनवादी कवि कहे जा सकते हैं। उनका जन्म सन् 1940 ई. में राजस्थान के भरतपुर जनपद में हुआ। वहीं से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने चालीस साल तक अध्यापन का कार्य किया। सेवानिवृत्त होने के पश्चात् अब वे जयपुर में ही रहते हैं। कविवर ऋतुराज को सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों द्वारा ऋतुराज को सम्मानित किया जा चुका है।
2. साहित्यिक रचनाएँ-
ऋतुराज के अभी तक आठ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं इनमें से कुछ प्रमुख हैं। एक मरणधर्मा और अन्य, पुल और पानी, सुरत-निरत, लीला मुखारविंद।
3. साहित्यिक विशेषताएँ-
यूं तो ऋतुराज ने अपनी कविताओं में लोकजीवन तथा परिवेश से संबंधित समस्याओं को उठाया है लेकिन वे मूलतः उपेक्षितों, पीड़ितों तथा शोषितों के कवि माने जाते हैं। कवि ने समाज के असहाय तथा अभावग्रस्त लोगों की व्यथा को वाणी प्रदान की है। इस दृष्टि से वे कल्पना लोक के कवि न होकर यथार्थ जीवन के कवि कहे जा सकते हैं। उन्होंने नारी जीवन की लाचारी तथा उसकी शोषित स्थिति का यथार्थ वर्णन किया है। उनकी काव्य कृतियों में दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ चित्रण है। उन्होंने शोषण से बचने के सुझाव भी दिए हैं। इस दृष्टि से कन्यादान एक उल्लेखनीय कविता कही जा सकती है।
4. भाषा-शैली-
कवि ऋतुराज ने सहज, सरल व भावानुकूल हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा प्रायः लोक जीवन से संबद्ध है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम्, तद्भव तथा देशज, विदेशज शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। ऋतुराज ने भावानुकूल शब्दों का प्रयोग किया है। वे गंभीर भाव को सहज, सरल शब्दों में प्रयोग करते हैं। अलंकारों के प्रति कवि को मोह नहीं है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा, व्यंजना तीनों शब्द शक्तियों का सफल प्रयोग किया है। उनकी काव्य-रचनाओं में श्रृंगार तथा वरुण रसों का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।