NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 नेताजी का चश्मा पाठ का सार for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board, Up Board, RBSE and Some other state Boards. We also Provides पाठ का सार और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर for score Higher in Exams.
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NCERT Solution of Class 10th Hindi Kshitij bhag 2/ क्षितिज भाग 2 Netaji Ka Chasma / नेताजी का चश्मा Summary / पाठ का सार Solution.
नेताजी का चश्मा Class 10 Hindi पाठ का सार ( Summary )
‘नेता जी का चश्मा’ पाठ के लेखक ‘स्वयंप्रकाश’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने उन गुमनाम देश के नागरिकों के योगदान के महत्त्व का वर्णन किया है, जिन्होंने देश के निर्माण में अपने-अपने ढंग से योगदान दिया है। कैप्टन चश्मे वाले की देश भक्ति भी उसके कस्बे तक ही सीमित थी।
हालदार साहब कंपनी के काम से एक कस्बे में से पंद्रह दिन बाद गुज़रा करते थे। कस्बा सामान्य कस्बों जैसा था जिसमें कुछ पक्के और कुछ कच्चे घर थे। लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल था। एक नगरपालिका थी। नगरपालिका समय-समय पर कस्बे के विकास के लिए कार्य करती थी। एक बार नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगवाने की सोची । नगरपालिका ने मूर्ति बनाने का कार्य कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल को दे दिया। मोतीलाल जी ने एक महीने में संगमरमर पत्थर से नेता जी की छाती तक की मूर्ति तैयार कर दी। वह मूर्ति 1. नगरपालिका ने चौराहे पर लगा दी। नेता जी की मूर्ति को देखकर लोगों में देश के लिए कुछ करने का उत्साह पैदा होता था। इस तरह नगरपालिका का लोगों में देश भावना जागृत करने का यह प्रयास सफल तथा सराहनीय था। मूर्ति देखने वालों को मूति में एक कमी लगती थी। मूर्ति का चश्मा पत्थर का नहीं था वह असली था। शायद मूर्ति बनाने वाला नेता जी का चश्मा बनाना भूल गया इसलिए मूर्ति पर असली चश्मा लगवा दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार कस्बे से गुजरे तो उन्हें लोगों का यह प्रयास अच्छा लगा। उन्हें लगा कि लोगों में अपने नेताओं के प्रति आदर-सम्मान है। अगले दो-तीन बार हालदार साहब को वहाँ से गुजरने पर हर बार मूर्ति पर अलग चश्मा लगा मिलता था। यह देखकर हालदार आश्चर्यचकित थे। उन्होंने अपनी जिज्ञासा कम करने के लिए चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि हर बार मूर्ति का चश्मा कैसे बदल जाता है। पान वाले ने बताया कि नेता जी का चश्मा कैप्टन बदल देता है। जब किसी ग्राहक को नेता जी की मूर्ति पर लगा चश्मा चाहिए तो कैप्टन मूर्ति से चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता और मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता। कैप्टन को नेता जी के चश्मे के बिना मूर्ति बुरी लगती थी उसे चश्मे के बिना नेता जी का व्यक्तित्व अधूरा प्रतीत होता था इसलिए वह अपने पास से एक चश्मा नेता जी की मूर्ति को लगा देता था। पानवाले ने हालदार साहब को यह भी बताया कि मूर्तिकार मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था। हालदार साहब को पान वाले की यह बात बहुत बुरी लगी थी।
हालदार साहब कैप्टन चश्मे वाले से बहुत प्रभावित हुए थे जिसने अपनी देश भक्ति से मूर्ति के अधूरेपन को पूरा किया था। उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा कि क्या वह नेता जी की फ़ौज का कोई सिपाही था। इस पर पानवाला मुस्करा पड़ा और बोला कि वह एक लंगड़ा है। वह फ़ौज में कैसे जा सकता है। पानवाला हालदार साहब को कैप्टन दिखाता है। कैप्टन एक पतला सा बूढ़ा था। उसके पास एक संदूकची थी और एक बांस था जिस पर तरह-तरह के चश्मे टंगे थे। वह एक फेरी लगाने वाला था। जिस ढंग से पानवाले ने कैप्टन का परिचय दिया वह ढंग हालदार साहब को बहुत बुरा लगा था। हालदार साहब कैप्टन के विषय में बहुत कुछ जानना चाहते थे परंतु पानवाला और कुछ बताने को तैयार नहीं था। हालदार साहब अगले दो साल तक कस्बे से गुजरते रहे और नेता जी की मूर्ति के बदलते चश्मे देखते रहे थे। एक बार हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें नेता जी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया था उस दिन अधिकांश बाज़ार बंद था। अगली बार फिर हालदार साहब वहाँ से गुजरे तो उन्हें नेता जी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। हालदार साहब ने पानवाले से पूछा कि नेता जी का चश्मा कहाँ गया। पानवाले ने उदास होकर बताया कि चश्मे वाला कैप्टन मर गया। हालदार साहब यह सुनकर चले गए। कैप्टन के मरने के बाद हालदार साहब यह सोचने लगे कि उस देश का भविष्य क्या होगा, जिसकी जनता देश का निर्माण करने वालों पर हँसती है हालदार पंद्रह दिन बाद फिर उस कस्बे से गुज़रे। उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि वे चौराहे पर रुक कर मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं। वे बिना चश्मे के नेता जी की मूर्ति नहीं देख सकते थे। परंतु जैसे ही वे नेता जी की मूर्ति के सामने से गुजरे, यह देखकर हैरान हो गए कि मूर्ति पर किसी बच्चे द्वारा बनाया सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। यह देखकर हालदार भावुक हो गए। उन्होंने बच्चों की भावना का सम्मान करने के लिए मूर्ति के सामने अटेंशन खड़े होकर उनकी भावनाओं तथा नेता जी को प्रणाम किया।