पर्यावरण संरक्षण Class 9 नैतिक शिक्षा Chapter 14 Explain HBSE Solution

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पर्यावरण संरक्षण Class 9 Naitik Siksha Chapter 14 Explain


‘पर्यावरण’ शब्द परि+आवरण से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- परि (चारों तरफ) आवरण (घेरा)। जो कुछ हमें चारों तरफ से घेरे हुए है, वह सब पर्यावरण है। मिट्टी, जल, वायु, मृदा, प्राणी आदि सभी पर्यावरण के घटक अंग हैं। इनमें परस्पर होने वाली भौतिक-जैविक प्रक्रियाएँ भी पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं। विभिन्न तत्त्वों की आनुपातिक भिन्नता के कारण अलग-अलग स्थानों के पर्यावरण में पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है। किसी स्थान विशेष के पर्यावरण निर्माण में मानव अन्तिम महत्त्वपूर्ण व क्रियाशील घटक है।

सबसे बुद्धिमान प्राणी होने से मानव ने पर्यावरण का दोहन सबसे अधिक किया है। उसने नवीन तकनीक पर आधारित कलपुर्जों तथा मशीनों के आविष्कार से कृषि, उद्योग तथा व्यवसाय के क्षेत्र में अपूर्व बदलाव लाकर विकास की नई परिभाषा गढ़ ली है। ऐसा विकास, जिसमें उसने वर्तमान पीढ़ी की खुशहाली के लिए अगली पीढ़ी के विनाश की नींव रख दी है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने प्राणी मात्र के लिए संकट खड़ा कर दिया है। जल, थल और नभ कोई भी उससे अछूता नहीं है। सब कुछ उपभोग कर लेने की मानव-प्र व-प्रवृत्ति एक नए प्रकार के पर्यावरण की रचना कर रही है, जिसमें जाने अनजाने सब कुछ दूषित हो रहा है।

पर्यावरण में अवांछित तत्त्वों की वृद्धि ने मिट्टी, जल, वायु आदि को प्रदूषित कर दिया है।

जल प्रदुषण —

मानव ने नदियों से नहरें निकालकर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया और अन्न के भण्डार भर लिए। वह विद्युत उत्पादन कर अनेक कार्य सिद्ध कर रहा है लेकिन अफसोस यह कि वह जल के सीमित प्रयोग की बात भूल गया। इसलिए आज हमें जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। जल के साथ-साथ जंगल, जमीन, समुद्र, तटीय संसाधन एवं जैव विविधता सब दबाव की परिधि में आ चुके हैं। पर्यावरण पर विकास का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। औद्योगिक अपशिष्ट तथा नगरों में बसे मानव द्वारा विसर्जित मल-मूत्र जल को प्रदूषित करता है। प्रदूषित जल हैजा, टायफाइड, मलेरिया, पीलिया और चर्म रोग आदि का कारण बनता है। नदियाँ आज़ इतनी दूषित हो गई हैं कि गंगा स्वच्छता अभियान जैसे कार्यक्रम चलाने पड़ रहे हैं। इस सम्बन्ध में कवि डॉ. ध्रुवेन्द्र भदौरिया लिखते हैं-

गन्दगी का भार ढोकर, रो रही पावन नदी है।
जो सुधा की वाहिका थी, आज मैले से लदी है।

जल जीवन की अनिवार्यता है। जल की शुद्धि के लिए हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत कुछ लिखा गया है। मनुस्मृति में कहा गया है कि पानी में मल-मूत्र, थूक- खून, जहरीले पदार्थ या अन्य दूषित पदार्थ न जाएँ। अब प्रश्न उठता है, जल के संरक्षण का इसका संरक्षण कैसे करें? कौन करे? धन कौन जुटाए आदि? इस विषय में, आदर्श रूप में, मैगसेसे पुरस्कार से पुरस्कृत राजेन्द्र सिंह का उदाहरण ले सकते हैं, जिन्होंने ग्रामीण समुदाय के सहयोग से राजस्थान के अलवर जिले की धरती को पुनः हरा-भरा बनाने में सफलता हासिल की। उन्होंने सूख चुके जोहड़ों की पुनः खुदाई करवाई। उनमें वर्षा का पानी संगृहीत होने लगा और धीरे- धीरे भूजल स्तर बढ़ा। लोगों ने श्रमदान, धनदान दिया और खोई हुई खुशियाँ पुनः प्राप्त कीं। आवश्यकता है कि सब जगह इस प्रकार के साँझे प्रयत्न से जल का संग्रहण किया जाए। वर्षा जल के संरक्षण में आम लोगों की सहभागिता से जल संकट दूर हो सकता है। हमारा दायित्व है कि-

  • तालाबों, जोहड़ों आदि में कपड़े न धोएँ ।
  • आवश्यकतानुसार ही पानी का प्रयोग करें।
  • नहाने के लिए बालटी, मग का प्रयोग करें।
  • प्रयोग किए गए अशुद्ध पानी को शुद्ध करने की व्यवस्था करें।
  • वाहनों को नलिका की सहायता से न धोएँ ।
  • औद्योगिक अपशिष्ट नदियों में न डाले जाएँ, इसके लिए कड़े कानून हों और उनका ईमानदारी से पालन हो

वायु प्रदुषण —

सड़कों पर बढ़ती वाहनों की संख्या, उनसे निकलते धुएँ, चिमनियों के धुएँ ने वायु को इतना प्रदूषित कर दिया है कि ठीक से साँस लेना मुश्किल हो रहा है। दमा, अस्थमा आदि के रोगियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। वातानुकूलित वाहनों के अधिक प्रयोग आदि से ओजोन परत क्षीण हो रही है, जिससे कई तरह की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। सरकार ने ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (ए.क्यू.आई.) जारी किया है। इसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने घर पर ही अपने शहर की वायु की गुणवत्ता की जाँच कर सकता है।

वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए-

  • वाहनों का सीमित प्रयोग करें।
  • यदि एक ही संस्थान में आस-पास के कई कर्मचारी जाते हैं तो वे अलग-अलग गाड़ियों में जाने की अपेक्षा एक गाड़ी से जाएँ। ऐसा करने से पैट्रोल की बचत होगी और प्रदूषण पर भी रोक लगेगी।
  • यातायात के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग करें।
  • सप्ताह में दो-तीन दिन साइकिल का प्रयोग करें।
  • छोटी दूरियाँ पैदल तय करें।
  • कारखानों की चिमनियाँ ऊँची व प्रदूषण नियन्त्रक बोर्ड के नियमानुसार होनी चाहिए।
  • खेतों में पराली न जलाएँ ।
  • अधिक से अधिक संख्या में पौधे लगाएँ व उनके बड़े होने तक देखभाल करें। नीम, बरगद, इमली, चीड़, अशोक आदि वृक्षों में शोर के अवशोषण की अद्भुत क्षमता है। इसलिए इनके रोपण को बढ़ावा दिया जाए।

ध्वनि प्रदूषण—

वातावरण में एक निश्चित सीमा से अधिक स्तर का तरह-तरह का शोर ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है। इसमें शामिल है- वाहनों के हार्न की आवाजें, लाउडस्पीकर पर तेजी से बजता गीत संगीत, तेज आवाज में चल रहे रेडियो, टी.वी. टेप रिकार्डर आदि। इससे हमारी एकाग्रता नष्ट होती है, नींद में कमी आती है, स्मरण शक्ति व श्रवण शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय –

  • टी.वी., रेडियो, टेप रिकार्डर आदि की आवाज कम रखें।
  • लाउडस्पीकर लगाने के लिए सरकारी अनुमति की व्यवस्था हो ।
  • आतिशबाजी छोड़ने से परहेज करें।

मृदा प्रदूषण :

खेतों में कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों व उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। माना कि इन सब के प्रयोग से उत्पादन में तो वृद्धि हो जाती है परन्तु इनके माध्यम से मिट्टी से अनाज, फलों-सब्जियों में पहुँचने वाले रसायन हमारे स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। यहाँ तक कि ये रसायन पक्षियों के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं।

मृदा प्रदूषण से बचाव के उपाय :

  • कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों व उर्वरकों का सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का कम से कम प्रयोग करें क्योंकि प्लास्टिक जल्दी से गलता नहीं है।

सचमुच, पर्यावरण एक विषय नहीं, एक दृष्टि है- जीव-जगत को देखने की दृष्टि, मानव समाज को देखने-परखने की दृष्टि यह दृष्टि स्वस्थ रहे, पर्यावरण शिक्षा की मूल चिन्ता यही है। मनुष्य न तो पर्यावरण का दास है, न स्वामी । पर्यावरण के प्रति स्वस्थ सोच अपनाकर ही मनुष्य इसका समुचित उपयोग कर सकता है। संसाधनों के प्रति आत्मीयता स्थापित हो, यह हमारी सोच का हिस्सा बने वेद में भी कहा गया है कि माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात् भूमि हमारी माता है और हम पृथ्वी के पुत्र हैं। जिस माता के अन्न-रस से हम प्राण पाते हैं, उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले हम मानव हैं तो इसको सँवारने, सुरक्षित रखने का दायित्व भी हमारा ही है। ऐसा करने से ही मानव और पर्यावरण की समुचित सुरक्षा हो सकेगी। हमारी एक साझी सोच हो- संसाधन सलामत रहें।


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