प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएं Class 10 इतिहास Chapter 2 Notes – भारत एवं विश्व HBSE Solution

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प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएं Class 10 इतिहास Chapter 2 Notes



मिस्र की सभ्यता


यह सब बेता लगभग 7000 वर्ष पहले शुरू हुई। 4000 ई. पू. दो राज्यों ( उत्तर मिस्र और दक्षिण मिस्र ) के संगठित होने से मिस्र की सभ्यता का विकास तेज हो गया। उत्तर मिस्र की राजधानी ‘बूटो’ व राजचिह्न ‘मधुमक्खी’ था। दक्षिण मिस्र की राजधानी ‘तैखेबे’ व राजचिह्न ‘पपाइरस का गुच्छा’ था।

मेना या मिनिस नामक राजा ने 3400 ई.पू. में दोनों राज्यों को अपने अधीन किया।  उसने ‘मेम्फिस’ को मिस्र की राजधानी बनाया और मिस्र के प्रथम राजवंश की स्थापना की।

मिस्र के इतिहास को जानने के साधन —

  1. साहित्यिक साधन – हेरोडोटस, डायोड्स, मेनेथो
  2. पुरातात्विक साधन – पिरामिड, समाधियां, भित्ति चित्र, मंदिर, रोसेटो अभिलेख
  3. आधुनिक साधन – एडोल्डफ इरमान व जे. एस. ब्रस्टेड की पुस्तकें।

राजनीति —

मिस्र का राजा ‘फराओ’ कहलाता था। फराओ को न्याय और ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था।

मिस्र के राजनीतिक इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है:-

  1. प्राचीन काल या पिरामिड युग ( 3400 ई.पू. -2160 ई.पू. )
  2. मध्यकाल या सामंतवादी युग ( 2160 ई.पू. – 1580 ई.पू. )
  3. नवीनकाल या साम्राज्यवादी युग ( 1580 ई.पू. – 650 ई.पू. )

पिरामिड युग – इस युग में 6 राजवंशों ने शासन किया। जिनमें प्रमुख शासक नरमेर, अट्टा, जोसर, इमहोटेप, खुफू, यूसरेकाफ, खाफ्रे आदि है। इन शासकों ने त्रिभुजाकार समाधियो का निर्माण करवाया जिसे पिरामिडों का नाम दिया गया। मिस्र में पिरामिड को बनाने का श्रेय ‘इमहोटेप’ को जाता है।

मिस्र के शासक सूर्य देवता को अपना इष्ट देवता मानते थे इसीलिए उन्होंने सूर्य को प्रसन्न करने के लिए विशाल पिरान्नलो का निर्माण करवाया।

सामंतवादी युग – इस युग में पांच प्रमुख राजवंशों ने शासन किया। जिनमें इंटे, मेतुहोतेप, अमनहोतेप, सेनवो, सरेत आदि प्रमुख शासक हैं। इस युग में राज्य की शक्तियां सामंतों के हाथों में आ गई जिसके कारण बहुत तेजी से विकास हुआ। इस समय मकबरा का निर्माण हुआ और व्यापार तथा कृषि का भी विकास हुआ। यह सामंत आपस में लड़ते रहते थे और चारों तरफ अशांति और अराजकता फैली हुई थी। इसका फायदा उठाते हुए सीरिया के हिक्सास लोगों ने मिस्र पर अधिकार कर लिया और उनका शोषण करने लगे। अंत में थीब्स के सामंत अमोसिस ने हिक्सास लोगों को मिस्र से मार भगाया और खुद शासन करने लगा।

साम्राज्यवादी युग – इस युग में अट्ठारहवें राजवंश के शासक अमेंनहोटेप द्वारा सामंतों की शक्तियों को समाप्त कर दिया गया। इस काल में जनता सुखी और समृद्ध थी। इस काल के प्रमुख शासक अमेनहोटेप द्वितीय, अहमोज प्रथम, थुटमोस प्रथम, अमेनहोटेप तृतीय, हातशोपसुत आदि थे। मिस्र में लगभग 31 राजवंशों ने 3100 वर्षों तक शासन किया और अंत में 332 ई.पू. में यूनान के शासक सिकंदर ने मिस्र पर अधिकार कर लिया।

प्रशासनिक व्यवस्था —

फराओ ( राजा ) – राजा निरंकुश तथा सुरक्षा कार्य शासक था शासन की समस्त शक्तियां उसके हाथों में थी और लोग उसको देवता मानते थे।

वजीर – वजीर शासन संचालन के कार्य में फराओं की सहायता करता था उसका मुख्य कार्य लगान वसूल करना एवं आय-व्यय का हिसाब रखना था।

सैन्य संगठन – मिस्र के फराओं के पास कोई स्थाई सेना नहीं होती थी। बारवी राजवंश के समय फराओ ने स्थाई सेना की व्यवस्था की।

परिषद – फराओ के दरबार में वृद्ध दरबारियों की अलग परिषद थी, जिसे सारू कहते थे जो राजाओं को परामर्श दिया करते थे।

प्रांतीय शासन – फराओ ने शासन की सुविधा के लिए साम्राज्य को कई प्रांतों में बांटा हुआ था प्रत्येक प्रांत को नोम तथा उसके शासक को नोमार्क कहते थे।

स्थानीय शासन – स्थानीय शासन प्रबंध सामंतों के हाथों में था। नगरों में एक प्रशासनिक अधिकारी भी होता था जो शांति बनाए रखने और कर वसूलने का काम करता था।

न्याय व्यवस्था – फराओ मुख्य न्यायाधीश होता था। मुकदमा लिखित रूप में चला जाता था और फराओ मुकदमे का फैसला तीन दिन में ही कर देता था। अपराधी को कठोर सजा दी जाती थी।

अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य —

कृषि – मिस्र एक कृषि प्रधान देश था। यहां पर मुख्य रूप से गेहूं, जौ, कपास, सण, और फलों में अंगूर, अंजीर एवं खजूर थे।

पशुपालन – मिस्र के लोग गाय, भेड़, गधा, बछड़ा, बंदर और मुर्गी जैसे पशुओं को पालते थे।

उद्योग धंधे – उस समय के लोग पत्थर काटने, गहने एवं बर्तन बनाने, तांबे तथा कांसे के हथियार बनाने एवं लकड़ी का फर्नीचर बनाने में कुशल थे। लोग नाव एवं जहाजों के निर्माण में भी निपुण थे। उस समय पेपिरस नामक घास के पौधे से कागज बनाया जाता था।

वाणिज्य और व्यापार – मिस्र में व्यापार नील नदी के द्वारा होता था। मिस्र, भारत और अरब से मसाले, रंग, तेल, पाउडर और चंदन मंगवाता था।

संस्कृति एवं धर्म – मिस्र वासी बहूदेववादी थे और वे प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करते थे। मिस्र में कुल मिलाकर 3000 देवता थे। मिस्र का सबसे बड़ा देवता सूर्य था। जिसे रे, रा, होरस, एमन आदि कई नामों से पुकारा जाता था। उसके बाद नील नदी के देवता ( ओसिरिस ), आकाश का देवता ( नूत ), चंद्रमा देवता ( सिन ) की भी पूजा करते थे।

फराओ एवं सामंतों के मरने के पश्चात उन्हें मकबरा में एक रासायनिक लेप लगाकर कब्र में रख देते थे जिससे मृत शरीर खराब नहीं होता था। इसे मम्मी कहा जाता था और इन मकबरो को पिरामिड कहते थे।

मिस्र की सभ्यता की संसार को देन :-

  1. मिस्र ने विश्व को 365 दिन का 1 वर्ष तथा कैलेंडर दिया।
  2. सूर्य घड़ी व जल घड़ी का आविष्कार किया।
  3. एचडी विज्ञान के क्षेत्र में अनेक खोजे की। उन्होंने ऐसा रासायनिक लेप तैयार किया जिससे मृतक शरीर को शताब्दियों तक सुरक्षित रखा जा सकता था।
  4. मिस्र की एक सूची में विभिन्न बीमारियों से संबंधित 600 दवाइयों के नाम मिले हैं।
  5. एकेश्वरवाद के सिद्धांत का प्रचलन किया।

मेसोपोटामिया की सभ्यता


फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित आधुनिक ईराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया कहते थे। मेसोपोटामिया यूनानी भाषा का शब्द है। यह दो शब्दों ‘मेसो’ और ‘पोटम’ से मिलकर बना है। ‘मेसो’ का अर्थ मध्य तथा ‘पोटम’ का अर्थ नदी होता है इस प्रकार मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ दो नदियों के बीच का भाग होता है।

मेसोपोटामिया क्षेत्र में विकसित होने वाली सभ्यताएं सुमेरियन, बेबीलोनियन और असीरियन थी। इन सभ्यताओं के बारे में माना जाता है कि सुमेरिया ने सभ्यता को जन्म दिया, बेबीलोन ने उसे चरम सीमा पर पहुंचाया और असीरिया ने इसे ग्रहण करके प्रगति की।

मेसोपोटामिया की सभ्यताओं को जानने के साधन —

  1. बेहिस्तून अभिलेख
  2. रोसेटा अभिलेख
  3. सूसा अभिलेख
  4. धार्मिक साहित्य
  5. उर, एरिडु, लगाश, निप्पुर आदि नगरों की खुदाई से मिलने वाली सामग्री
  6. मिट्टी की पट्टी गांव पर खुदे लेख, जिगुरात
  7. हम्मूराबी की संहिता

सुमेरिया की सभ्यता – 4700 ई.पू. फारस की सुमेरियन जाति के लोगों ने मेसोपोटामिया पर आक्रमण किया और अपना अधिकार कर लिया। सुमेरिया में उस समय उर, निपुर, लगाश, उरुक आदि नगर राज्य थे। प्रत्येक नगर का अपना देवता था। नगर राजू के स्वतंत्र शासकों को पटेसी कहते थे। पटेसी का मुख्य कार्य भूमि कर वसूल करना, बाहरी आक्रमण से नगर की रक्षा करना और जनता के मुकदमों का निर्णय देना था। इस सभ्यता के लोगों ने एक लिपि का आविष्कार किया जिसे ‘किलाक्षर लिपि’ कहा जाता है।

सुमेर के नगरों में पिरामिड के आकार में बनाए जाने वाले ऊंचे मंदिरों को जिगुरात कहा जाता है।

बेबीलोनिया की सभ्यता — मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में हेमराइट नदी के किनारे बेबीलोनिया की सभ्यता का विकास हुआ। 2200 ई.पू. में सेमेटिक लोगों की एक शाखा एमराइट ने सुमेर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। लगभग 100 वर्षों के निरंतर युद्ध के पश्चात इस जाति के महान राजा हम्मूराबी ने मेसोपोटामिया पर अधिकार करके उसे राजनीतिक एकता में बांधा और बेबीलोन को अपनी राजधानी बनाया। उसने अपने साम्राज्य की प्रगति को चरम सीमा तक पहुंचा दिया ( सामी भाषा बोलने वाली जाति को सेमेटिक कहते हैं।)

असीरिया की सभ्यता — सेमेटिक लोगों ने दजला नदी के ऊपरी तट पर अधिकार करके अशुर नगर बसाया। यहां का प्रथम शक्तिशाली राजा तिगलथ पिलेसर प्रथम था। अशुर बनिपाल असीरिया का अंतिम प्रतापी और प्रसिद्ध शासक था। उसने अपने समय में व्यापार शिक्षा और कला में असाधारण उन्नति की और अपनी राजधानी में भव्य महलों और मंदिरों का निर्माण करवाया। असीरिया का प्रत्येक राजा पुराने महल को त्यागकर अपने लिए नए महल का निर्माण करवाता था।

प्रशासनिक व्यवस्था – इस सभ्यता में शासक निरंकुश होते थे तथा साम्राज्य में उनका पूर्ण नियंत्रण होता था। वे दैविक सिद्धांत के आधार पर शासन करते थे। वे सर्वोच्च सेनापति, न्यायाधीश व सर्वोच्च पदाधिकारी होते थे। वे शासन के संचालन के लिए साम्राज्य को कई प्रांतों में बांट देते थे और प्रांत के गवर्नर का चयन स्वयं करते थे। गवर्नर अपने प्रांत से कर इकट्ठा करना, शांति बनाए रखना और युद्ध में शासक का सहयोग करने का काम करता था।

सामाजिक जीवन – उस समय का समाज तीन वर्गों उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग में बटा हुआ था। उच्च वर्ग में राजा, उच्च पदाधिकारी व पुरोहित होते थे। मध्यम वर्ग में सामंत और व्यापारी व निम्न वर्ग में दास तथा किसान शामिल थे।

धार्मिक जीवन – मेसोपोटामिया के लोग बहुदेववादी थे। वे खेत, नदियों, पहाड़ों की पूजा करते थे। उनके प्रमुख देवता अनु ( आकाश का देवता ), की ( पृथ्वी ), सिन ( चंद्रमा ), तम्मुज ( वनस्पति और कृषि का देवता ), ईश्तर ( प्रेम की देवी ), नरगल ( प्लेग का देवता ) आदि थे। इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि भी दी जाती थी।

आर्थिक जीवन – इस सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। इसमें गेहूं, जौ, जैतून, कपास व अंगूर की खेती थी। उस समय के लोग उद्योग एवं व्यापार में भी उन्नत थे। व्यापार सोना चांदी और तांबे के टुकड़ों से होता था। यहां पशुओं में ऊंट और बकरी विशेष थी। यहां लकड़ी की सुंदर नक्काशी के साथ साथ सोना, चांदी व कीमती पत्थर पर भी नक्कासी की जाती थी।


यूनानी सभ्यता


यूरोप के दक्षिण पूर्व में स्थित यूनान एक प्रायद्वीप है। यह तीन तरफ से समुंद से घिरा है। जिसमें 502 टापू हैं। यूनानी सभ्यता का उदय लगभग 4000 ई.पू. मे हुआ जिसे क्रीट की सभ्यता कहा गया। क्रीट की सभ्यता के पतन के पश्चात माइसिन नामक नगर में माइसिनियन सभ्यता का उदय हुआ। जो 1200 ई.पू. तक आते-आते समाप्त हो गई। 1200 ई.पू. मैं आर्यन कबीलों ने यूनान पर अधिकार करके नगर राज्यों में विकसित सभ्यताओं को जन्म दिया। इन नगर राज्यों को ‘पोलिस’ भी कहते थे।

इस सभ्यता के राजनीतिक इतिहास को तीन भागों में बांट सकते हैं:-

  1. अंधकार युग या होमर युग ( 1200 ई.पू. से 800‌ ई.पू. )
  2. लोह युग या नगर राज्य युग ( 800 ई.पू. से 500 ई.पू. )
  3. हैलेनिस्टिक युग ( 500 ई.पू से 200 ई.पू. )

यूनान की सभ्यता को जानने के साधन –

  1. होमर द्वारा रचित महाकाव्य इलियड व ओडिसी।
  2. हेरोडोटस की रचना हिस्टोरिका।
  3. एथेंस, कोरिंथ, स्पार्टा, थीब्स आदि नगरों की खुदाई से मिलने वाली सामग्री।
  4. थ्यूसीडाइडीज की रचना पेलोपोनेशियन युद्ध
  5. प्लेटो एवं अरस्तु की रचनाएं।

प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था – इस सभ्यता में राजवंशों के शासकों ने शासन किया। राजा निरंकुश होते थे और प्रजा राजा को ईश्वरतुल्य मानती थी। राजा ‘ब्यूल’ नामक परिषद के परामर्श से शासन का संचालन करता था।

सिकंदर का समय विश्व इतिहास में हेलेनिस्टिक युग के नाम से प्रसिद्ध है। सिकंदर ने 336 ई.पू. में अपने पिता फिलिप का वध कर दिया और मुखदूनिया ( मेसिडोनिया ) का शासक बन गया। उसने यूनान में हुए विद्रोह को कुचल दिया और समस्त यूनान पर अपना अधिकार कर लिया।

उस समय के यूनान में 150 नगर थे जिसमें तीन प्रकार के नागरिक होते थे-

  1. स्वतंत्र नागरिक
  2. विदेशी नागरिक
  3. दास

सामाजिक व्यवस्था – उस समय के समाज को 4 वर्गों में बांटा गया था।

  1. कुलीन वर्ग – यह वर्ग विशाल भू संपत्ति का स्वामी था और इसके पास बहुत बड़ी संख्या में दास होते थे। यह वर्ग युद्ध के समय नेतृत्व करता था।
  2. मध्य वर्ग – इस वर्ग में साधारण नागरिक शामिल थे जिन्हें फ्रीमैन अथवा परोआसी कहा जाता था। यह वर्ग व्यापार एवं वाणिज्य में भूमिका निभाता था।
  3. श्रमिक वर्ग – इस वर्ग में मजदूर शामिल थे। जिन्हें थीट्स कहा जाता था।
  4. दास वर्ग – इस वर्ग में दास शामिल थे जिन्हें हटोल कहा जाता था।

आर्थिक एवं वाणिज्यिक व्यवस्था – यूनान का व्यापार दूर-दूर तक होता था। यूनानी लोगों के उद्योग मिट्टी में धातु के बर्तन बनाना, अस्त्र-शस्त्र बनाना, फर्नीचर बनाना, जैतून से तेल बनाना और अंगूर से शराब बनाना आदि प्रमुख थे। इस सभ्यता में कृषि पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। यूनान के पहाड़ों में सोना, चांदी और लोहा निकलता था।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन – यूनान के लोग बहुदेववादी थे। यह लोग प्राकृतिक शक्तियों एवं जानवरों की पूजा करते थे और उनका विश्वास भूत प्रेत में भी था। इनके मुख्य देवता जियस ( आकाश का देवता ), अपोलो ( सूर्य ), हर्मस ( व्यापार का देवता ), पोसीडोन ( समुंद्र का देवता ), मार्स ( युद्ध का देवता ), डेमीटर ( अन्न की देवी ) आदि थे। इन लोगों के मनोरंजन के साधनों में नाचना, गाना और पशुओं की लड़ाई करवाना शामिल था।


रोमन सभ्यता


1000 ई.पू. रोम एक छोटा सा गांव था जो मध्य इटली में टाइबर नदी के किनारे सात पहाड़ियों पर बसा हुआ था। इसे सात पहाड़ियों का नगर भी कहा जाता था। आठवीं सदी ई.पू. में यह एक विशाल साम्राज्य बना। एट्रुस्कन जाति ने रोम की सभ्यता का विकास किया। इटली शवासियों ने वर्णमाला, कला, युद्ध तथा अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी इसी जाति से सीखा। 500 ई.पू. में रोम के लैट्रिन आर्यों ने अट्रुस्कन जाति को हरा दिया। रोमुलस रोम का प्रथम सम्राट बना।

रोमन सभ्यता का राजनीतिक इतिहास चार भागों में बांटा जा सकता है:-

  1. राजतंत्र काल ( 753 ई.पू. से 509 ई.पू. )
  2. गणतंत्र काल ( 509 ई.पू. से 133 ई.पू. )
  3. सैनिक अधिनायकों का काल ( 133 ई.पू. से 27 ई.पू )
  4. साम्राज्यवादी काल ( 27 ई.पू. से 476 ई. )

राजतंत्र काल – इस काल में राजा राज्य का अध्यक्ष होता था उसके अधिकार असीमित थे। इस समय समाज दो वर्गों में विभक्त था पेट्रीशियन वर्ग एवं प्लेबियन वर्ग। पेट्रिशियन वर्ग में लाइट इन लोग थे जो रूम के वास्तविक निवासी थे। इस वर्ग में रूम के उच्च एवं कुलीन परिवार के व्यक्ति आते थे। दूसरे वर्ग, प्लेबियन में स्वतंत्र दास भूमिहीन और गरीब व्यक्ति आते थे।

अगस्तस का युग 31 ई.पू. से 14 ई.पू रोम का स्वर्ण युग कहलाता है।

रोम की सभ्यता को जानने के साधन —

  1. 12 पट्टिकाओं पर लिखे लेख – ट्वेल्व टेबल्स।
  2. रोम के पुरोहितों द्वारा लकड़ी की तख्तियां पर लिखे लेख – एनल्स पोंटीफिकम।
  3. लिवि की रचनाएं – पालिबियस व डिओडोरस के लेख।

प्रशासनिक व्यवस्था – रोम की शासन व्यवस्था जनता द्वारा चुनी हुई सीनेट के हाथों में केंद्रित थी। सीनेट के सदस्यों की संख्या 300 थी परंतु यह सभी सदस्य पेट्रिशियन वर्ग के होते थे। सीनेट द्वारा दो न्यायाधीश नियुक्त किए जाते थे जिन्हें ‘कौंसल’ कहते थे जिनका कार्यकाल एक वर्ष का होता था। इसके अतिरिक्त प्रशासन में सहायता देने के लिए तीन पदाधिकारी भी होते थे – सेन्सर्स ( कर वसूल करने वाले अधिकारी ), एल्डीज ( शांति व्यवस्था बनाए रखने वाले ) और प्रोटोर ( न्यायाधीश )। गवर्नरों को वेतन ना मिलने के कारण वे जनता से मनमाना कर वसूल करते थे।

आर्थिक व्यवस्था – रोमन लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था। वे गेहूं, जौ, बाजरा, अंगूर, जैतून, सेब जैसी फसलें उगाते थे। यहां पर लोग वस्त्र उद्योग बर्तन उद्योग सोना चांदी के आभूषण बनाने के कार्य भी करते थे। ये लोग भारत से मलमल, अफ्रीका से धातु, चीन से रेशम, यूनान से लोहे का व्यापार भी करते थे।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था – रोम में परिवार संयुक्त होते थे। परिवार के सदस्यों को उनके मुखिया की आज्ञा का पालन करना पड़ता था। वे लोग देवताओं के अपेक्षा आत्माओं पर अधिक यकीन करते थे। उनके प्रमुख देवता जुपिटर (शांति का देवता), मार्स (युद्ध का देवता), वीनस (प्रेम की देवी), वेस्टा (अग्नि देवता), अपोलो (संगीत व कला का देवता) आदि थे।


चीन की सभ्यता


चीन की सभ्यता का विकास लगभग 3000 ई.पू. के आसपास माना जाता है। इस सभ्यता का उदय  सिक्यांग, ह्वांग ह्वो तथा वांग ह्वो, नदियों के आसपास हुआ। फू-सी चीन का पहला सम्राट था। उसने चीनियों को घर बनाना शिकार करना जानवर पालना आदि कार्य सिखाएं। चीन के दूसरे सम्राट शेन-नुंग ने चीनियों को खेती करना सिखाया। चीन के तीसरे सम्राट हुआंग टी ने चीन को संयुक्त बनाया और साम्राज्य को उन्नति के शिखर तक पहुंचाया।

चीन की सभ्यता को जानने के साधन —

  1. पौराणिक कथाएं
  2. कन्फ्यूशियस द्वारा रचित भूचिंग व भीचिंग ( काव्य संग्रह )।
  3. पुरापाषाण अवशेष
  4. अस्थि अभिलेख
  5. मृदभाण्ड, ध्वनिबोधक चित्र

1. शासन व्यवस्था – चीन में राजा को ‘वांग’ कहा जाता था। वह सबसे बड़ा न्यायधीश और पुरोहित होता था। जनता उसे अपना पिता समझती थी और उसे ईश्वर पुत्र कहकर उसकी पूजा करती थी।

मंत्री परिषद – वांग ने शासन कार्य के लिए मंत्री परिषद का गठन किया जिसमें चार मंत्री होते थे जो राजा को परामर्श देते थे। इसके अतिरिक्त छह सदस्यों की परिषद भी होती थी। जैसे- लोक सेवा समिति, माल व वित्त समिति, संस्कार व उत्सव समिति, युद्ध व रक्षा समिति, दंड व न्याय समिति तथा सार्वजनिक हित समिति।

प्रांतीय शासन व्यवस्था – दो या तीन ‘हिन’ ( गांवों का समूह ) का एक ‘फू’ बनता था जो प्रांत के समान होता था। इनकी शासन व्यवस्था एक न्यायाधीश और एक राज्यपाल चलाता था।

2. आर्थिक दशा – चीन के लोग कृषि और पशुपालन का कार्य करते थे। यहां बाजरा, चावल, गेहूं तथा फलों की खेती होती थी। उपजाऊ भूमि पर नौ परिवार मिलकर सामूहिक रूप से खेती करते थे जिसे चिंगतियेन प्रणाली कहा जाता था।

उद्योग धंधे – चीन के लोगों का मुख्य व्यवसाय रेशम उद्योग था। कुछ लोग मछली पकड़ने का व्यवसाय भी करते थे। चीन के लोग अपने व्यवसाय बदलने को पाप समझते थे।

व्यापार एवं वाणिज्य – चीन का व्यापार के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ। सम्राट शी हुआंग टी ने व्यापार के लिए सड़कों का जाल बिछा दिया। यहां व्यापारियों के संघ बने हुए थे जो विदेशों से उन, तंबाकू, शीशा, कीमती पत्थर मंगवाते थे तथा चीनी मिट्टी के बर्तन, बारूद व ताश विदेशों में भेजते थे।

3. सामाजिक व्यवस्था – चीनियों के अनुसार संसार के निर्माता पानकू ने समाज के चार वर्ग बनाएं। प्रथम वर्ग मंदारिन का था। इसमें विद्वान, अध्यापक, उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आते थे। दूसरा वर्ग किसानों का, तीसरा वर्ग कारीगरों का, चौथा वर्ग व्यापारियों का था।

4. धार्मिक व्यवस्था – चीन के विद्वान एकेश्वरवादी तथा जनता बहुदेववादी थी। यहां प्रकृति की पूजा की जाती थी। उनके प्रमुख देवता यंग ( आकाश का देवता ), चीन ( वायु तथा पृथ्वी का देवता ) थे। चीनी लोग भूत-प्रेत अपशगुन में जादू टोने में विश्वास करते थे। छठी शताब्दी ई.पू. में भारत से यहां बौद्ध धर्म का भी काफी प्रसार हुआ।


माया सभ्यता


उत्तर अमेरिका महाद्वीप के दक्षिण में 500 ई.पू. और 1000 ई. के बीच माया सभ्यता फली फूली। वैसे यह सभ्यता 4000 ई.पू. पुरानी है। यह सभ्यता आधुनिक ग्वाटेमाला, बेलीजे, दक्षिण पूर्व मेक्सिको और होंडुरास तथा अल सेलवेडोर के पश्चिमी क्षेत्र में फैली हुई थी। टिकल, कलकमुल, कोपान और पालेंके यहां के प्रमुख शासकीय राजवंश थे। इस सभ्यता के घर लकड़ी के बनते थे और छाते ताड़ के पत्तों से बनाई जाती थी। इस सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं भव्य स्थापत्य, ललित कला, लेखन कला, खगोल विज्ञान और कैलेंडर आदि हैं।

माया सभ्यता के इतिहास को जानने के साधन —

  1. माया सभ्यता में स्थित नगरों की खुदाइयों से मिलने वाले पुरावशेष, मिट्टी के बर्तन, नक्काशी, कलात्मक वस्तुएं व ग्लिफ
  2. रासहीथर की रचना, प्राचीन माया: नया परिप्रेक्ष्य
  3. माया किताबें या कोडिसिस

राजनीतिक व्यवस्था – इस सभ्यता में राज्यों के मुखिया ‘असली पुरुष’ या ‘हेलेक यूनिक’ के नाम से जाने जाते थे। इनका पद अनुवांशिक था। इन मुखिया के अधीन शहरों के सरदार थे जिन्हें बाताबोब कहते थे। बाताबोब अपने शहर के शासन की देखरेख करते थे। जरूरत पड़ने पर बात आप लोग सेना का नेतृत्व भी करते थे।

सांस्कृतिक एवं धार्मिक व्यवस्था – माया सभ्यता का पंचांग 3114 ई.पू. शुरू किया गया था इस कैलेंडर में हर 394 वर्ष के बाद बाकतुन नाम के एक काल का अंत माना चाहता था। देवताओं के चित्र गचकारी मुखोटे से बनाए जाते थे और उनकी पूजा मंदिरों में की जाती थी। देवताओं को खुश करने के लिए बलि भी दी जाती थी। यहां नगर व राज्यों के अपने-अपने देवता होते थे।

आर्थिक व्यवस्था – लोगों का मुख्य कार्य कृषि व पशुपालन था। ये लोग गेहूं, जौ, चना, गन्ना, नारियल आदि फसलें उगाते थे और इसके साथ-साथ गाय व बकरी पालते थे। माया वासियों ने चौड़ी सड़कें बनवाई थी जो ‘स्केब’ या ‘स्केबओब’ के नाम से जानी जाती थी। किसानों के घर कच्चे होते थे जब की बाताबोब के घरों में सुंदर नक्काशीदार लकड़ी का प्रयोग होता था। माया सभ्यता में नाव, सूती वस्त्र, तांबे की घंटियां, तलवार में आभूषण बनाने के कार्य होते थे।


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