सद्व्यवहार Class 9 नैतिक शिक्षा Chapter 13 Explain HBSE Solution

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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 13 सद्व्यवहार / sdvyavahar Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

सद्व्यवहार Class 9 Naitik Siksha Chapter 13 Explain


अच्छा, भला या उचित व्यवहार सद्व्यवहार है। सद्व्यवहार का अर्थ है अपने सम्पर्क में आने वाले हर प्राणी से मन, वचन और कर्म से अच्छा बर्ताव करना। सद्व्यवहार के मूल में दूसरों के कल्याण की कामना होती है। स्नेह, सौमनस्य ओर सहयोग के प्रसार के लिए सद्व्यवहार से बढ़कर और कोई उपाय नहीं। जीवन में सुख-शान्ति के लिए सद्व्यवहार अनिवार्य है। कहा भी गया है-

चार वेद छह शास्त्र में, बात मिली हैं दोय । दुःख दीने दुःख होत है, सुख दीने सुख होय।।

एक प्रसंग है- शिवधनुष टूटने का समाचार पाकर क्रोधाग्नि में जलते परशुराम यज्ञमण्डप में पहुँचते हैं। उनके क्रोध को देखकर उपस्थित जन समुदाय समेत सभी राजा भय से काँपने लगते हैं। लक्ष्मण अपने व्यंग्य भरे वचनों से उनके क्रोध को और बढ़ा रहे हैं। यह देखकर राजा जनक, उनकी पत्नी और स्वयं सीता जी भी व्याकुल हैं। सभी लोग क्रुद्ध ऋषि को शान्त करने के उपाय सोच रहे हैं। तभी श्री रामचन्द्र आगे बढ़ते हैं; ऋषि की वन्दना करते हैं, उन्हें ‘स्वामी’, ‘गोसाई’, ‘मुनिनायक’, ‘नाथ’ आदि सम्बोधनों से सम्बोधित करते हैं। स्वयं को उनका ‘दास’ बताते हैं तथा लक्ष्मण को बाल बुद्धि वाला ‘नासमझ बालक कहते हैं। श्री राम बार-बार ऋषि से क्षमायाचना करते हैं। अन्ततः श्री राम का सद्व्यवहार मानो ठण्डी फुहारों का काम करता है और परशुराम की क्रोधाग्नि शान्त हो जाती है। उपस्थित जनसमुदाय चैन की साँस लेता है।

इस प्रसंग से सिद्ध होता है कि सद्व्यवहार से प्रतिकूल परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। अच्छे भाव, अच्छे विचार और उनके अनुसार अच्छे कर्म सद्व्यवहार के अनिवार्य तत्त्व हैं। भाव ही विचारों के उत्प्रेरक होते हैं और विचार ही व्यवहार में परिणत होकर साकार होते हैं।

अतः सद्व्यवहार के लिए भाव, विचार और कर्म-तीनों का श्रेष्ठ होना अनिवार्य है। प्रश्न उठता है कि हम सद्व्यवहारी बनें कैसे? इसके लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है। यदि बचपन से ही बालक को अच्छा, सुसंस्कृत परिवेश उपलब्ध कराया जाता है तो बड़ों का सद्व्यवहार देखकर वह स्वतः उनका अनुकरण करता है। तब उसको ‘ऐसा करो’, ‘ऐसा मत करो रटवाना नहीं पड़ता क्योंकि सदाचरण के मूलभूत तत्त्वों को वह आँखों से देखकर, कानों से सुनकर और संवेदना से ग्रहण करके कार्यरूप में उतार चुका होता है।

पात्र के स्तर के अनुसार सद्व्यवहार के रूप में भी अन्तर आ जाता है। कहीं यह औपचारिक होता है, कहीं अनौपचारिक कभी-कभी सद्व्यवहार का एक अन्य रूप देखने में आता है, जहाँ व्यक्ति स्वार्थपूर्ति के लिए कुछ समय के लिए सद्व्यवहार का दिखावा करता है वास्तव में, वह सद्व्यवहार होता नहीं है।

सद्व्यवहार की कसौटी विवेक है। कभी-कभी जो व्यवहार हमें गलत लगता है, वह वास्तव में उचित होता है। गुरुजन तथा माता-पिता बच्चे को उसके अनुचित कार्य पर डाँटते हैं तो बच्चे को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता परन्तु इसी में उसका हित छिपा है। यह व्यवहार सद्व्यवहार ही कहा जाएगा क्योंकि डाँटने वाले का व्यवहार विवेक की कसौटी पर कसा होता है।

सद्व्यवहार से परायों को भी अपना बनाया जा सकता है दो राष्ट्रों के बीच की अनसुलझी | समस्याएँ सद्व्यवहार से सुलझ सकती हैं सद्व्यवहार शान्ति स्थापना का मूल मन्त्र है और संवेदनाओं की लहलहाती फसल है।

सद्व्यवहार की शुरुआत घर-परिवार से होती है। बालक के सबसे निकटतम उसके माता-पिता होते हैं और माता-पिता को सबसे प्रिय अपनी सन्तान होती है। उनका व्यवहार सन्तान के प्रति स्वार्थरहित होता है अतः बालक को भी अपना व्यवहार माता-पिता के प्रति दोष | दृष्टि रहित होकर करना चाहिए। इस विषय में उन्हें सीखना चाहिए-

तुम औरों से व्यवहार करो ऐसा अपने प्रति तुम करवाना चाहो जैसा ।।

दूसरों की मदद करना सद्व्यवहार के अन्तर्गत आता है। एक बार भानामल नाम का एक व्यक्ति आत्महत्या के इरादे से नदी के पुल पर जा रहा था। सैर करके लौट रहे एक अन्य व्यक्ति को उस पर सन्देह हो गया। वह भानामल के पीछे-पीछे चल पड़ा। जैसे ही भानामल नदी में कूदने को हुआ तो पीछे चल रहे व्यक्ति ने उसको पकड़ लिया और उससे ऐसा करने का कारण जानना चाहा। भानामल ने बताया कि व्यापार में घाटा होने के कारण वह यह कदम उठा रहा था। उस व्यक्ति ने भानामल की आर्थिक सहायता की और कोई काम शुरू करने को कहा। भानामल ने ऐसा ही किया। कुछ समय बाद उसकी आर्थिक स्थिति ठीक हुई तो उसने उस व्यक्ति के पैसे लौटा दिए। इस घटना के बाद भानामल जरूरतमन्दों की सहायता करने से। नहीं चूकता था।

सेवा भावना के कार्यों में हम सच बोलें और सच बोलने में सेवा भावना का खयाल रखें। बिना सच्चाई के की जाने वाली सेवा भावना विध्वंसकारी भावना बन जाती है जबकि बिना सेवा भावना के सच्चाई केवल दिखावा होती है। इसके साथ ही जरूरी यह भी है कि हम ईमानदार रहें। एक ईमानदार व्यक्ति सिर्फ दिखावे के लिए नेकी का काम नहीं करता, उसे रंगे हाथ पकड़े जाने का डर नहीं होता, वह दूसरों के साथ कभी घात नहीं करता। ईमानदारी सभी गुणों की बुनियाद है।

सद्व्यवहार के लिए स्नेह-प्रेम भी आवश्यक है। पशु-पक्षी भी प्रेम की भाषा जानते हैं। एक बार एक किसान के बैल बीमार थे। वह अपने एक परिचित के बैलों को खेत की जुताई के लिए ले गया लेकिन कुछ समय बाद वापस आकर परिचित से शिकायती स्वर में कहा, दोस्त, तुम्हारे बैल बहुत अडियल हैं। वे कदम ही नहीं बढ़ा रहे। ऐसे में खेत की जुताई हो तो कैसे ? बैलों के मालिक ने पूछा, ‘उनकी गर्दन पर जुआ रखने के बाद क्या तुमने प्यार से ऐसा कुछ कहा- चलो बादशाहो काम पर चलें?

‘नहीं’

‘उनकी पीठ थपथपाई?’

‘नहीं तो’

‘तब माफ करना, भाई। तुम्हारी ओर से बर्ताव सम्बन्धी यह कमी रही। इसको दूर करो और फिर असर देखो। एक बात और उनके प्रति कोई अपशब्द मत बोलना। बैलों के मालिक ने स्पष्ट किया।

शाम को खेत से लौटकर आया किसान बैलों की प्रशंसा कर रहा था। यह था सद्व्यवहार का जादुई प्रभाव ।

एक बार एक कॉलेज के प्रोफेसर ने समाज विज्ञान के छात्रों को एक परियोजना कार्य दिया। सभी छात्र झुग्गी-झोंपड़ी निवासी थे। उन्हें कहा गया कि प्रत्येक छात्र अपने भविष्य का आकलन कर इस बात पर बल दे कि वह भविष्य में क्या बनना चाहता है। अपने लेख में अधिकांश ने ये भाव प्रकट किए थे कि वे कोई महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए स्वयं को तैयार करना चाहते हैं। प्रोफेसर ने सभी के लेख रख लिए।

पच्चीस वर्ष बाद समाज विज्ञान के एक दूसरे प्रोफेसर को वे लेख पढ़ने का मौका मिला। उन्होंने सोचा- पता लगाया जाए कि जिन छात्रों ने अपने भविष्य का आकलन किया था, वे कहाँ तक पहुँचे? उस प्रोफेसर ने अपने नए छात्रों को उस नए परियोजना कार्य में लगाया।

पूर्ववर्ती उन सौ लड़कों में से बीस तो कहीं और जाकर बस गए थे, कुछ का देहावसान हो गया था। लगभग सत्तर छात्र मिल गए थे। नए छात्रों ने उनका इण्टरव्यू लिया। उनमें से कई लड़के वकील, डॉक्टर तो कुछ अच्छे व्यवसायी बन गए थे। जब उनसे उनकी उपलब्धि और सफलता का राज पूछा गया तो अधिकांश ने एक ही बात कही- ‘हमारी एक शिक्षिका थी, जिसने हमें बहुत प्रभावित किया ।’

प्रोफेसर ने परियोजना को और आगे बढ़ाया। उन छात्रों ने उस शिक्षिका को भी खोज निकाला। चमकीली आँखों वाली वृद्धा शिक्षिका से छात्रों ने पूछा, ‘आपने ऐसा क्या किया, जो झुग्गी-झोंपड़ी के निवासी छात्र अपने जीवन में इतने सफल हो सके ?’

शिक्षिका ने दो पल के लिए आँखें बन्द की और फिर काँपती आवाज में कहा, ‘मैंने उन्हें अपने मन में झाँकने के लिए प्रेरित किया, जिससे उनका व्यवहार सात्त्विक और आचरण शुचितापूर्ण हो गया। उनकी उपलब्धि का यही एकमात्र रहस्य है।’

सौभाग्य से उन छात्रों के जीवन में एक ऐसी शिक्षिका आई थी, जिसने उनके सोच-विचार को परिवर्तित किया। यदि लोग परस्पर सद्व्यवहार करें तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन निश्चित ही हो सकता है। ध्यान रहे, सद्व्यवहार रस्म अदायगी नहीं बल्कि सामाजिकता की सीढ़ी का एक महत्त्वपूर्ण पायदान है। किसी ने ठीक ही कहा है-

पुरखों के अनमोल वचन हैं, काम हमेशा आएँगे ।
जो कुछ हम दुनिया को देंगे, दुनिया से वह पाएँगे ।।


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