स्वतंत्र भारत के 50 वर्ष Class 10 इतिहास Chapter 9 Notes – भारत एवं विश्व HBSE Solution

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स्वतंत्र भारत के 50 वर्ष Class 10 इतिहास Chapter 9 Notes


भारत को 15 अगस्त, 1947 ई. को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भारत पर अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक शासन किया। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश का साम्प्रदायिक विभाजन भी हुआ। यह अंग्रेजों की ‘फूट डालो राज करो’ की नीति का परिणाम था। जिन्ना के ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ के कारण देश के बटवारे की मांग की। लेकिन स्वतंत्रता के प्रयास में लगे बड़े-बड़े नेताओं द्वारा साम्प्रदायिकता को कम करके आँका गया। इसी कारण वे देश के विभाजन का अंदाजा नहीं लगा सके। अंत में यही साम्प्रदायिकता भारत के विभाजन का कारण बने।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के पांच दशक के इतिहास का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है :

देश का विभाजन –

भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश का दुखद विभाजन भी हुआ। देश का विभाजन होने के कारण उत्तर-पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र, पश्चिमी पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और पूर्वी बंगाल को मिलाकर पाकिस्तान का निर्माण किया गया। भारत की तरफ से मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा नये बने पाकिस्तान में जाना था। वही पाकिस्तान के हिस्से में गए क्षेत्र से अधिकतर हिन्दुओं, सिक्खों व अन्य को भारत में आना था। यह विस्थापन मुख्यत: रेलगाड़ियों, सैनिक गाड़ियों व पैदल जत्थों द्वारा हुआ। चारों तरफ हिंसा, आगजनी व बलात्कार की घटनाएँ हो रही थी। दोनों देशों से लाखों की संख्या में शरणार्थी आ रहे थे। भारत में आने वाले लोगों को पहले अस्थाई शिविरों में ठहराया गया और फिर धीरे-धीरे उनके स्थाई पुनर्वास की व्यवस्था की गई।

देशी रियासतों का एकीकरण –

भारतीय रियासतों पर ब्रिटिश सरकार का अधिकार 15 अगस्त, 1947 ई. को समाप्त हो गया था। लगभग 565 देशी रियासतें अब भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकती थी या स्वतंत्र रह सकती थी। इस दौरान भारत सरकार के प्रथम गृह मंत्री “लौह पुरुष” सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उन्होंने ऐसी परिस्थितियों में बड़ी सूझ-बूझ से काम लिया। पटेल ने अधिकतर रियासतों को भारतीय संघ में शामिल होने के लिए सहमत कर लिया था। केवल हैदराबाद, जूनागढ़ व कश्मीर की रियासतें ही भारत में शामिल होनी बाकी थी। सरदार पटेल ने हैदराबाद व जूनागढ़ को वहाँ की जनता की राय के आधार पर भारतीय संघ में शामिल कर लिया। जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह अपनी रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे। परंतु 22 अक्टूबर 1947 ई. को पाकिस्तानी सेना तथा कबायलियों ने मिलकर जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। पाकिस्तान के आक्रमण से त्रस्त महाराजा हरि सिंह ने भारतीय संघ में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। अब भारतीय सेना ने मोर्चा सम्भालते हुए कश्मीर घाटी से आक्रान्ताओं को पीछे हटने पर विवश कर दिया। कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया।

संविधान का निर्माण –

भारत का संविधान बनाने के लिए एक ‘संविधान सभा’ का गठन किया गया। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 ई. को हुई। डा. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष बने। संविधान सभा द्वारा संविधान के निर्माण के लिये कुल 22 समितियों का गठन किया गया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय प्रारूप समिति बनाई गयी। इस समिति को संविधान के प्रारूप को तैयार करने का कार्य दिया गया।आखिरकार 26 नवम्बर 1949 ई. को हमारा संविधान बनकर तैयार हो गया। इस संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने तथा 18 दिन लगे। इसे 26 जनवरी 1950 ई. को लागू किया गया। प्रत्येक वर्ष यह दिन भारत में ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप मे मनाया जाता है।

देश के प्रथम चुनाव –

भारत के पहले आम चुनाव 1951-52 ई. के दौरान हुए। इस चुनाव में लगभग 17 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने भाग लिया। इस चुनाव में लोकसभा की कुल 489 सीटें थी तथा 14 राष्ट्रीय तथा 63 क्षेत्रीय व स्थानीय दलों ने चुनाव में भाग लिया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने इस चुनाव में भारी विजय प्राप्त की।

राज्यों का पुनर्गठन –

अंग्रेजों द्वारा भारत के शासन को अपनी सुविधा के अनुसार विभिन्न रियासतों में बांटा गया था। स्वतंत्रता के बाद इन रियासतों को भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया था। अतः देश में भाषा व भौगोलिकता के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यकता थी। भारत सरकार द्वारा इसके लिये 1953 ई. में राज्य पुनर्गठन आयोग नियुक्त किया गया। इस आयोग का कार्य भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिश करना था। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर नवम्बर 1956 ई. में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास किया गया। इसके द्वारा देश में भाषा के आधार पर चौदह राज्यों व छह केन्द्र शासित प्रदेशों की व्यवस्था की गई। हिन्दी को भारत के कार्यालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा के रूप में मान्यता दी गयी। इसके साथ ही अंग्रेजी को बड़े स्तर पर सरकारी कार्यालयों में प्रयोग किया जाता रहा।

फ्रांसीसी व पुर्तगाली क्षेत्रों की स्वतंत्रता –

भारत की स्वतंत्रता के बाद भी कुछ क्षेत्रों पर फ्रांस व पुर्तगाल का अधिकार बना हुआ था। पांडिचेरी, माही, कालीकट, यानम, चन्द्रनगर जैसे स्थान फ्रांसीसियों के कब्जे में थे। फ्रांसीसी सरकार ने ये सभी क्षेत्र 1954 ई. में भारत को वापिस लौटा दिये। जबकि गोवा, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली जैसे स्थानों पर पुर्तगालियों का कब्जा था। पुर्तगाली इन क्षेत्रों को वापिस नहीं लौटाना चाहते थे। लेकिन भारतीय सेना ने 1961 ई. में पुर्तगालियों को भारत से खदेड़ दिया।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन –

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के बहुत से देश विचारधारा के आधार पर दो विरोधी गुटों में बट गए। इन गुटों में से एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ का गुट था। अमेरिका के नेतृत्व में बने गुट को ‘पश्चिमी ब्लाक’ और सोवियत संघ के नेतृत्व में बने गुट को ‘पूर्वी ब्लाक’ कहा गया। भारत ने दोनों गुटों से समान मित्रता रखने का प्रयास किया। भारत ने शुरू से ही इन दोनो गुटों से अलग रहने की नीति अपनाई। हमारी विदेश नीति ‘किसी भी गुट में शामिल न होकर सही को सही और गलत को गलत’ कहने पर आधारित रही है। भारत के लिये गुट-निरपेक्षता का आंदोलन वैश्विक शांति तथा विकासशील देशो का समाजिक, आर्थिक व राजनीतिक विकास का प्रतीक रहा है।

हरित क्रांति –

देश के विभाजन के साथ ही बहुत सी उपजाऊ भूमि पाकिस्तान के पास चली गई। 1960 ई. के दशक में भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध और सूखे ने हमारी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया। इस कारण भारत में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप किसानों के लिये नई कृषि नीति की घोषणा की गई। इस नीति के तहत उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सस्ते व उन्नत बीज, खाद व तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया गया। इस कृषि नीति के माध्यम से किसानों को बिजली, सिंचाई व सस्ते ऋण देने की व्यवस्था की गयी। परिणामस्वरूप 1970 ई. के दशक की शुरुआत तक आते-आते देश में गेहूँ, चावल व मक्का की खेती में अढाई गुणा तक वृद्धि हो गई। इस दौर में कृषि उत्पादन में हुई तीव्र वृद्धि को ही ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

  • हरित क्रांति कृषि उत्पादन से संबंधित है।
  • पीली क्रांति तिलहन उत्पादन से संबंधित है।
  • नीली क्रांति मछली पालन से संबंधित है।
  • श्वेत क्रांति दूध उत्पादन से संबंधित है।

आपातकाल का दौर –

आजादी के बाद 1975 ई. में भारत ने सबसे बड़े राजनीतिक संकट का अनुभव किया। 1971 ई. में चुनी गई इंदिरा गांधी की सरकार ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ सत्ता में आई थी। सरकार बनने के एक वर्ष के अंदर ही दिसम्बर 1971 ई. में भारत-पाक युद्ध व बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इससे मंदी, बेरोजगारी, गरीबी, खाद्य पदार्थों की कमी, बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्या, सूखा तथा मानसून की असफलता से जनता में असंतोष बढ़ने लगा। राष्ट्रव्यापी हड़तालों व छात्र आंदोलनों के कारण देश में कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही थी। इस कारण 1974 ई. तक आते-आते इंदिरा गांधी की सरकार से जनता का एक बड़ा हिस्सा नाराज हो चुका था। 12 जून 1975 ई. को इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गये फैसले में इंदिरा गांधी को चुनावों में अनुचित आचरण का दोषी करार दिया। इस फैसले के अनुसार अब वह किसी भी पद पर नहीं रह सकती थी। इस दौरान लोकनायक के नाम से प्रसिद्ध जयप्रकाश नारायण (जे. पी.), इंदिरा गाँधी की इन गलत नीतियो का खुलकर विरोध कर रहे थे। वे भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी को लेकर सरकार के खिलाफ सत्याग्रह व अहिंसक आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने देश में उपजे राजनीतिक संकट व न्यायालय के फैसले के आधार पर भी इंदिरा गाँधी पर अपने पद से त्यागपत्र देने का दबाव बनाया। इंदिरा गाँधी ने स्वयं को चारों ओर से घिरता देख, 25 जून 1975 ई. को अपनी सत्ता बचाने के लिये आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल लगने के तुरंत बाद प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सरकार के विरुद्ध आंदोलन में शामिल जयप्रकाश नारायण व अन्य विपक्षी नेताओं जैसे मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चरण सिंह, चन्द्रशेखर तथा असंख्य छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आपातकाल के दौरान एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें थी, उनमें से अधिकांश को बर्खास्त कर दिया गया। परिवार नियोजन (नसबंदी) कार्यक्रम को भी सख्ती से लागू किया। हालाकि आपातकाल के दौरान हो रही ज्यादतियों का जनता ने तीव्र विरोध जारी रखा, जिसके फलस्वरूप तत्कालीन सरकार को 21 मार्च, 1977 ई. को आपातकाल समाप्त करने को मजबूर होना पड़ा।

शाहबानो मामला –

यह मामला तीन तलाक की प्रथा पर आधारित है। पांच बच्चों की माँ 62 वर्षीया शाहबानो नामक मुस्लिम महिला को उसके पति ने तीन तलाक दे दिया। पति द्वारा गुजारे भत्ते से इंकार किये जाने पर शाहबानो ने न्यायालय की शरण ली। यह फैसला शाहबानो के पक्ष में आया लेकिन गुजारा भत्ता बढ़वाने के लिए शाहबानो ने उच्च न्यायालय में याचिका डाली। उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता बढ़ाने का आदेश दिया। परन्तु निर्णय के विरुद्ध उसके पूर्व पति ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। 1985 ई. में उच्चतम न्यायलय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को सही बताते हुए शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। इस फैसले का पुरातनपंथी मुस्लिम नेताओं तथा संगठनों द्वारा विरोध करते हुए सरकार पर दबाव बनाया गया। परिणामस्वरूप राजीव गांधी सरकार ने 1986 ई. में संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। सरकार के दखल के कारण शाहबानो सर्वोच्च न्यायालय में जीतने के बाद भी हार गई।

आर्थिक नियोजन और विकास –

1944 ई. में ही भारत में 8 बड़े उद्योगपतियों ने बॉम्बे प्लान के रूप में भूमि सुधार, सहकारी पद्धति, योजनागत विकास के लिए आर्थिक प्रयोजन प्रस्तुत किया। लेकिन, देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकार द्वारा बड़े-बड़े सरकारी संस्थानों की स्थापना तथा समाजवाद के विस्तार पर बल दिया। इस दिशा में प्रधानमन्त्री नेहरू ने अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिये 15 मार्च 1950 ई. को सलाहकारी संस्था ‘ योजना आयोग’ की स्थापना की। इसके बाद 6 अगस्त, 1952 ई. को ‘राष्ट्रीय विकास परिषद’ की भी स्थापना की गई। इसका मुख्य कार्य योजना आयोग द्वारा दी गयी सलाहों तथा योजनाओं पर संशोधित दिशा-निर्देश देना था। भारत में पंचवर्षीय योजनायें लागू की गयी। समय-समय पर लागू की गयी आर्थिक-औद्योगिक नीतियाँ भी पर्याप्त सुधार नहीं कर पाई। 1980 ई. के दशक में विभिन्न सरकारों द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों के कारण 1991 ई. तक आते-आते भारतीय अर्थव्यस्था कमजोर हो चुकी थी। विदेशी ऋणों के भुगतान के लिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इस आर्थिक संकट का सामना करने के लिए भारत को 47 टन सोना गिरवी रखना पड़ा। अतः भारत को 1991 ई. में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक की शर्तों को मानते हुए अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुधार करने पड़े।

भारत की वैज्ञानिक उन्नति –

1951 ई. में भारत ने वैज्ञानिक अनुसंधान व प्राकृतिक संसाधनों से सम्बंधित मंत्रालय स्थापित कर दिया गया था। इसरो, बार्क एवं आई.आई.टी. जैसी संस्थाओं के अंतर्गत हुये अनुसंधान कार्यों के कारण भारत वैज्ञानिक उन्नति की ओर अग्रसर हुआ । होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, कस्तूरीरंगन इत्यादि वैज्ञानिकों के अथाह प्रयास से भारत पृथ्वी, नाग, अग्नि, आकाश, ब्रह्मोस इत्यादि मिसाइलों का निर्माण कर सका।

1974 ई. एवं 1998 ई. में भारत ने परमाणु परीक्षण कर स्वयं को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाया। भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम विश्व में ‘मिसाइल मैन’ के नाम से जाने जाते हैं। भारत ने आर्यभट्ट, भास्कर, रोहिणी इत्यादि सैटेलाइट भेजकर अंतरिक्ष तकनीक में भी नाम कमाया।

भारत की विदेश नीति –

घरेलू रूप से, इतिहास, संस्कृति, भूगोल और अर्थव्यवस्था ने भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों और सिद्धांतों को निर्धारित किया है। अंतर्राष्ट्रीय कारक के रूप में क्षेत्रीय वातावरण, सीमा-विवाद तथा शीत युद्ध की विदेश नीति निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख स्तंभ-पंचशील, गुट-निरपेक्षता, स्वतंत्र विदेश नीति संचालन, विकासशील देशों से एकजुटता, राष्ट्रीय तथा वैश्विक हित प्राप्ति के लक्ष्य आदि रहे हैं।

क) भारत के पड़ोसी देशों से सम्बन्ध – भारत के सात पड़ोसी देश इस प्रकार हैं-उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन और नेपाल, उत्तर-‍ -पूर्व में भूटान और बांग्लादेश, पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में श्रीलंका है। चीन और पाकिस्तान को छोड़कर अन्य देशों से भारत के सम्बन्ध अधिकतर सुखद रहे हैं।

पाकिस्तान से सम्बन्ध – भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक समानता, सांस्कृतिक एकरूपता, भौगोलिक निकटता व आर्थिक समरूपता के अवसर मौजूद हैं । लेकिन आज भी भारत-पाकिस्तान सम्बंध स्पर्धा, तनाव, संघर्ष और युद्ध के दायरे से बाहर नहीं निकल पाए हैं। पाकिस्तान ने 1947 ई., 1965 ई., 1971 ई. और 1999 ई. में भारत पर आक्रमण किया परन्तु भारत की वीर सेनाओं से पराजित हुआ।

चीन से सम्बन्ध – भारत पहला गैर-साम्यवादी देश था जिसने 1 जनवरी 1950 ई. को साम्यवादी चीन को मान्यता दी। प्रधानमन्त्री नेहरू ने सुरक्षा परिषद् में साम्यवादी चीन को स्थाई स्थान दिलाने के लिये कई बार प्रयास किए। विस्तारवादी प्रवृति के चीन ने 20 अक्टूबर 1962 ई. को भारत पर ही भयानक आक्रमण कर दिया। भारत को इस युद्ध में जान-माल की भारी क्षति उठानी पड़ी। परंतु साम्यवादी चीन ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर दी। इस युद्ध से भारत की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति व आत्मसम्मान को गहरी चोट पहुँची। तब से लेकर आज तक भारत-चीन सम्बन्ध तनाव और अविश्वास पर आधारित रहे हैं।

नेपाल तथा भूटान से सम्बन्ध – भारत और नेपाल के मध्य बड़े लम्बे समय से गहरे सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। दोनों के मध्य खुली सीमा विश्वास का प्रतीक रही है। इसी प्रकार हिमालय स्थित अन्य देश भूटान से भी भारत के घनिष्ठ सम्बन्ध रहे हैं। 1949 ई. की संधि ने दोनों देशों के मध्य चिरस्थायी मित्रता स्थापित कर दी। इन दोनों देशों से भारत के भावनात्मक सम्बन्ध हिन्दू तथा बौद्ध धर्म के कारण जुड़ाव से भी हैं।

श्रीलंका से सम्बन्ध – श्रीलंका हिंद महासागर स्थित निकटतम पड़ोसी देश है। भारत व श्रीलंका के मध्य ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक सम्पर्क रहे हैं । स्वतन्त्रता के बाद दोनों देशों के बीच श्रीलंका स्थित तमिलों को लेकर मतभेद रहे। 1987 ई. में भारत द्वारा शान्ति सेना भेजे जाने से तनाव अवश्य बढ़ गया था, लेकिन इसे वैमनस्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। दोनों देशों के बीच कुछ मतभेदों के बावजूद सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण रहे हैं।

बांग्लादेश से सम्बन्ध – बांग्लादेश को 1947 ई. से 1971 ई. तक पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। 6 दिसम्बर 1971 ई. को बांग्लादेश को मान्यता देने वाला भारत पहला देश था। पश्चिमी पाकिस्तान के उत्पीड़न के शिकार बांग्लादेश के जन्म में भारत की विशेष भूमिका थी। भाषा और सांस्कृतिक जुड़ाव के कारण प्रारम्भ से ही दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ मित्रता व परस्पर सहयोग का वातावरण रहा। हालांकि सैनिक शासकों के शासनकाल तथा बढ़ती धार्मिक कट्टरता के कारण सम्बन्धों में तनाव की स्थिति रही है। भारत हमेशा से ही बांग्लादेश को तकनीक, विज्ञान तथा उद्योग आदि क्षेत्रों में सहयोग करता रहा है।

म्यांमार अथवा बर्मा से सम्बन्ध – म्यांमार या बर्मा को आधिकारिक रूप से म्यांमार गणराज्य के रूप में जाना जाता है। भौगोलिक स्थिति के कारण इसे दक्षिण पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। भारत और म्यांमार की 1600 कि.मी. से भी अधिक सीमाएं आपस में लगती हैं। म्यांमार के अधिकतर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और इस दृष्टि से भारत-म्यांमार में सांस्कृतिक निकटता है। भारत-म्यांमार के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे हैं।

ख) महाशक्तियों से सम्बन्ध – विश्व में दो देशों, अमेरिका और भूतपूर्व सोवियत संघ को महाशक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात दोनों महाशक्तियों से समान दूरी अथवा समान रूप से मित्रता की नीति अपनाई । स्वतन्त्रता के बाद जहाँ एक ओर नेहरू जी का समाजवादी विचारधारा की ओर झुकाव बढ़ा वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की अमेरिका से निकटता बढने लगी। इसके कारण भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर होने लगा। पाकिस्तान और चीन से अमेरिका के सम्बन्ध बेहतर होने से भारत-अमेरिका सम्बन्ध दुष्प्रभावित हुए। 1971 ई. में भारत- सोवियत मैत्री संधि से दोनों देशों में मित्रता और अधिक मजबूत हुई। वहीं इस निकटता के कारण भारत और अमेरिका के मध्य दूरियां बढ़ती चली गयी। 1991 ई. में सोवियत संघ का विघटन हुआ और रूस उसके उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया। इससे विश्व एक-ध्रुवीय हो गया और अमेरिका एकमात्र महाशक्ति रह गया। 1991 ई. के बाद से भारत के सम्बन्ध रूस और अमेरिका, दोनों से बेहतर होने लगे।

ग) भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ – द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 24 अक्टूबर 1945 ई. को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। भारत संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था। भारत ने हमेशा से ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संचालित शांति सेनाओं में अपने सैनिक भेजकर सक्रिय भूमिका निभाई है। 1953 ई. में भारत की ‘विजयलक्ष्मी पंडित’ संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में सक्रिय भूमिका निभाने व तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के कारण आज सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है।

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