स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Class 10 Hindi Important Question Answer – क्षितिज भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2  स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Important  Question Answer for HBSE. Here We Provides Class 1 to 12 all Subjects NCERT Solution with Notes, Question Answer, HBSE Important Questions, MCQ and old Question Papers for Students.

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NCERT Solution of Class 10th Hindi Kshitij bhag 2/  क्षितिज भाग 2 Kavita Shtri Shiksa ke Virodhi Kutarkon ka khandan Important Question And Answer ( महत्वपूर्ण प्रश्न ) Solution.

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Class 10 Hindi Chapter 15 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर


प्रश्न 1. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया ?

उत्तर – पढ़े-लिखे, सभ्य और स्वयं को सुसंस्कृत विचारों के समझने वाले लोग स्त्रियों की शिक्षा को समाज का अहित मानते हैं। उन लोगों ने अपने पास से कुछ कुतर्क दिए थे जिसे द्विवेदी जी ने अपने सशक्त विचारों से काट दिया है। द्विवेदी जी के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों का अनपढ़ होने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, परंतु उनके पढ़े लिखे होने के कई प्रमाण मिलते हैं। उस समय बोल-चाल की भाषा प्राकृत थी तो नाटकों में भी स्त्रियों और अन्य पात्रों से प्राकृत तथा कुछ लोगों से संस्कृत बुलवाई जाती थी इसका यह प्रमाण नहीं है कि स्त्रियां पढ़ी-लिखी नहीं थीं। हमारा प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में ही है। उसको लिखने वाले अवश्य ही अनपढ़ होने चाहिए। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अधिकतर ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचित है जो हमें उस समय के समाज से परिचित करवाते हैं। बुद्ध भगवान् के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में है। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक प्राकृत भाषा में है। जिस तरह आज हम लोग बांग्ला, हिंदी, उड़िया आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने तथा पढ़ने-लिखने में करते हैं उसी तरह उस समय के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे।

यदि प्राकृत भाषा का प्रयोग करने से कोई अनपढ़ कहलाए तो आज के समय में सब पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ अनुभव होते हैं। वाल्मीकि जी की रामायण में तो बंदर तक संस्कृत बोलते थे तो स्त्रियों के लिए कौन-सी भाषा उचित हो सकती है। यह बात स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वाले स्वयं सोच सकते हैं। ऋषि अत्रि की पत्नी, गार्गी, मंडन मिश्र की पत्नी ने अपने समय के बड़े प्राकांड आचार्य को शास्त्रार्थ में मात दी थी तो क्या वे पढ़ी-लिखी नहीं थी। लेखक के अनुसार पुराने समय में उड़ने वाले जहाजों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, परंतु किसी भी शास्त्र में उनके निर्माण की विधि नहीं मिलती इससे क्या स्त्री-शिक्षा विरोधी उस समय जहाज़ न होने से इंकार कर सकते हैं। यदि शास्त्रों में स्त्री-शिक्षा का अलग से प्रबंध का कोई वर्णन नहीं मिलता तो हम यह नहीं मान सकते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा नहीं थी। उस समय स्त्रियों को पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे। इस प्रकार द्विवेदी जी अपने विचारों से स्त्री-शिक्षा विरोधियों का उत्तर देते हैं।


प्रश्न 2. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है ? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है। उस समय आम बोलचाल और पढ़ने-लिखने की भाषा प्राकृत थी। जिस प्रकार आज हम हिंदी, बांग्ला, मराठी आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने, पढ़ने-लिखने आदि के लिए करके हम स्वयं को पढ़ा-लिखा, सुसभ्य और सुसंस्कृत बताते हैं। उसी प्रकार प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का विशेष महत्त्व है। हम लोगों का प्राचीन साहित्य स्पष्ट प्राकृत भाषा में है और उसी साहित्य से हमें तत्कालीन समाज का वर्णन मिलता है। इसलिए हम प्राकृत भाषा में बोलने वाली स्त्रियों का अनपढ़ नहीं कह सकते हैं ।


प्रश्न 3. लेखक के अनुसार कैसे लोग दंड के योग्य हैं ?

उत्तर – ऐसे लोग जो समाज को गुमराह करने के लिए इतिहास से ऐसे-ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जो स्त्री शिक्षा के प्रति लोगों के मन में संशय भरते हैं, लेखक के अनुसार दंड के योग्य हैं। उनको इतिहास की सही जानकारी नहीं होती। वे स्त्री को अशिक्षित रखना चाहते हैं तो केवल व्यक्तिगत संकुचित सोच के कारण। समाज की प्रगति में ऐसी विचारधारा रखने वाले रुकावट-बाधा डालते हैं, सो दंड के योग्य हैं


प्रश्न 4. सीता ने लक्ष्मण के माध्यम से कौन-सा कटु संदेश भिजवाया ?

उत्तर – रावण के संहार के पश्चात् सीता ने लक्ष्मण के माध्यम से राम को कटु संदेश भेजा था कि वह अपनी शुद्धता अग्नि में कूद कर दे चुकी थी। राम पर आरोप लगाते हुए उसने कहा था कि लोगों के कहने पर उन्होंने उनका परित्याग किया था। ऐसा करके उन्होंने अपने कुल के नाम पर कलंक लगाया था। सीता के द्वारा एक स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए ऐसा कहना पूर्ण रूप से उचित था।


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