Class 9 इतिहास BSEH Solution for chapter 3 उदारवादी एवं राष्ट्रवादी Important Question Answer for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of हमारा भारत IV Book for HBSE.
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HBSE Class 9 इतिहास / History in hindi उदारवादी एवं राष्ट्रवादी / Udarvadi avam rastarvadi Important Question Answer for Haryana Board of chapter 3 in Hamara bharat IV Solution.
उदारवादी एवं राष्ट्रवादी Class 9 इतिहास Chapter 3 Important Question Answer
प्रश्न 1. उदारवादी कौन थे?
उत्तर – उदारवादी वे लोग थे जो ब्रिटिश शासन के समर्थक थे। उनका लक्ष्य ब्रिटिश शासन के अधीन ही स्वशासन की प्राप्ति करना था । उदारवादी चाहते थे कि विधान परिषदों में सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए, उनके अधिकारों में वृद्धि की जाए तथा परिषदों के सदस्यों को लोगों द्वारा चुना जाए। उच्च प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयों को भी नियुक्त किया जाए।
प्रश्न 2. उदारवादियों एवं राष्ट्रवादियों में मुख्य अंतर क्या थे?
उत्तर –
उदारवादी | राष्ट्रवादी |
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प्रश्न 3. बंगाल को विभाजित करने के पीछे अंग्रेजों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन का यह कारण बताया कि बंगाल बहुत बड़ा प्रांत है और उसका प्रशासन सुचारू रूप से चलाना बहुत कठिन है परंतु वास्तव में अंग्रेज़ सरकार भारत में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को कमजोर करना चाहती थी। इस विभाजन का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को नष्ट करना था।
प्रश्न 4. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के महत्व पर विचार करें।
उत्तर – स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है जिसका वर्णन निम्नलिखित है:-
- इस आंदोलन से भारतवासियों में राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना बढ़ने लगी।
- इस आंदोलन से लोगों में स्वदेशी वस्तुओं का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया।
- इससे भारतीय उद्योगों का अपार विकास हुआ। इस आंदोलन के फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में कपड़ा मिलें, साबुन और दियासलाई के कारखाने लग गए।
- स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने साहित्य पर विशेष प्रभाव डाला। उस समय राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत कई कविताओं, गद्य, गीत आदि की रचना हुई।
- इस आंदोलन में पहली बार भारतीय महिलाओं ने भी भाग लिया। कई स्थानों पर जुलूसों और धरनों में उन्होंने भाग लिया।
- स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन ने बंग-भंग के विरुद्ध लोगों को संगठित कर दिया और विवश होकर ब्रिटिश सरकार को 1911 ई. में बंगाल विभाजन रद्द करना पड़ा।
प्रश्न 5. होमरूल आंदोलन क्या था?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अनेक भारतीय नेताओं ने समझ लिया था कि अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर जनता का दबाव बनाना आवश्यक है इसलिए एक वास्तविक जन आंदोलन आवश्यक था। ऐसे में 1915 ई. – 1916 ई. में भारत में एक नए प्रकार का आंदोलन आरंभ हुआ जिसे ‘होमरूल आंदोलन’ कहा जाता है। इसके मुख्य नेता श्रीमती एनी बेसेंट तथा बाल गंगाधर तिलक थे।
प्रश्न 6. उदारवादियों की मुख्य माँगे क्या थीं?
उत्तर – उदारवादियों की मुख्य माँगें निम्नलिखित थी :-
- विधान परिषदों की सदस्य संख्या में वृद्धि की जाए।
- प्रशासनिक सेवा में भारतीयों की नियुक्ति की जाए।
- सेना के खर्चे में कमी की जाए।
- सामान्य तथा तकनीकी शिक्षा का विस्तार किया जाए।
- उच्च पदों पर भारतीयों की अधिक नियुक्ति की जाए।
- न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग किया जाए।
- किसानों पर करों का बोझ कम किया जाए।
- नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो।
- नमक पर कर में कमी की जाए।
- प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाएं।
प्रश्न 7. उदारवादियों के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर – उदारवादियों के मुख्य नेता दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी, बदरुद्दीन तैयबजी, गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविंद रानाडे, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, रोमेश चन्द्र दत्त, सुब्रमण्यम अय्यर तथा शिशिर कुमार घोष थे।
प्रश्न 8. लाला लाजपत राय का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान का वर्णन करें।
उत्तर – लाला लाजपत राय भी एक महान राष्ट्रवादी नेता थे जिन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ (पंजाब केसरी) की उपाधि दी गई। उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ नामक उर्दू दैनिक तथा ‘द पीपुल’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक का प्रकाशन किया। इन समाचार पत्रों तथा अन्य लेखों द्वारा उन्होंने लोगों को मातृभूमि की रक्षा हेतु बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। 1928 ई. में अपनी मृत्यु तक वे भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते रहे इस बीच उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने ‘होमरूल आंदोलन’ तथा किसानों के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 9. लोकमान्य तिलक की भारतीय स्वतंत्रता में क्या भूमिका थी।
उत्तर – लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ तथा मराठी भाषा में ‘केसरी’ नामक समाचार पत्र चलाए। इन समाचार पत्रों के माध्यम से उन्होंने विदेशी शासन की कठोर शब्दों में निंदा की तथा ‘स्वराज’ का जोरदार ढंग से प्रचार किया। उन्होंने 1893 ई. में लोगों में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के लिए ‘गणपति उत्सव’ को माध्यम बनाना आरंभ किया। 1895 ई. में उन्होंने ‘शिवाजी समारोह’ भी आरंभ करवाया ताकि नवयुवक शिवाजी की महान उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रवाद के उत्साही समर्थक बने। 1896 ई. 1897 ई. में अकाल पड़ने की स्थिति में, महाराष्ट्र के किसानों के द्वारा ‘भूमि कर न देने का अभियान’ तिलक ने चलाया। उन्होंने स्वराज का उद्घोष करते हुए कहा कि “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।”