HBSE Class 10 नैतिक शिक्षा Chapter 1 – वर दे, वीणावादिनि वर दे – व्याख्या Solution

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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 1 वर दे, वीणावादिनि वर दे / Var de, vinavadini var de व्याख्या ( Vyakhya ) for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.

वर दे, वीणावादिनि वर दे Class 10 Naitik Siksha Chapter 1 व्याख्या


1. वर दे वीणावादिनि वर दें।
प्रिय स्वतन्त्र-रव अमृत-मन्त्र नव
भारत में भर दे!

शब्दार्थ वर – वरदान। वीणावादिनि – वीणा का वादन करने वाली। प्रिय – प्यारा। स्वतन्त्र-रव – स्वतंत्रता की आवाज। अमृत-मन्त्र – अमृत रूपी मंत्र। नव – नया।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। जिसके कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है। इसमें कवि ने मां सरस्वती की वंदना करते हुए उनसे भारतवासियों पर कृपा करने का आग्रह किया है।

व्याख्या – कवि मां सरस्वती की वंदना करते हुए कहता है कि हे वीणा का वादन करने वाली मां सरस्वती! आप हमें वरदान दो कि अमृत रूपी मंत्र की तरह स्वतंत्रता की भावना इस नए भारतवर्ष में भर जाए।


2. काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

शब्दार्थ काट – दूर करना। अन्ध-उर – हृदय मे भरा अंधकार। बन्धन-स्तर – बंधनों की तहे। बहा – बहा देना। जननि – जन्म देने वाली मां। ज्योतिर्मय निर्झर – प्रकाश रूपी झरना। कलुष – क्लेश। भेद-तम – अंधकार को खत्म करना। हर – दूर करना। प्रकाश – ज्ञान। भर – भरना। जगमग – जगमगाना। जग – संसार।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। जिसके कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है। इसमें कवि ने मां सरस्वती की वंदना करते हुए उनसे भारतवासियों पर कृपा करने का आग्रह किया है।

व्याख्या – कवि मां सरस्वती की वंदना करते हुए कहता है कि हे मां सरस्वती! तुम भारतवासियों के हृदय में भरे अंधकार अर्थात अज्ञानता के सभी बंधनों की तहों को काट दो और प्रकाश रूपी झड़ने को बहा दो अर्थात ज्ञान का स्त्रोत बहा दो। हे जगत जननी मां सरस्वती! हमारे अंदर जितने भी क्लेश रूपी दोष और अज्ञानता हैं उन्हें आप दूर कर दो। हमारे अंदर ज्ञान रूपी प्रकाश को भर दो। इस संपूर्ण संसार को आप ज्ञान के प्रकाश से जगमगा दो।


3. नव गति, नव लय, ताल-छन्द नव,
नवल कण्ठ, नव जलद-मन्द्रव,
नव नभ के नव विहग-वृन्द को
नव पर नव स्वर दे!

शब्दार्थ नव – नया / नवीन। गति – उन्नति। लय – तान। ताल-छन्द – ताल एवं गीत।  नवल – नया। कण्ठ – गला / स्वर। जलद – बादल। मन्द्रव – गंभीर स्वरूप। नभ – आकाश। विहग वृन्द – सभी पक्षी। स्वर – आवाज।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। जिसके कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है। इसमें कवि ने मां सरस्वती की वंदना करते हुए उनसे भारतवासियों पर कृपा करने का आग्रह किया है।

व्याख्या – कवि मां सरस्वती से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे मां सरस्वती! तुम हम सभी भारतीयों को नई उन्नति, नई लय, नई ताल एवं गीत (छंद), नए स्वर और बादल के समान गंभीर स्वरूप को प्रदान कर दो। तुम इस नवीन आसमान में उड़ने वाले सभी पक्षियों को भी नए पंख प्रदान कर नवीन स्वर को प्रदान करो। हे मां सरस्वती आप हम सब को ऐसा वरदान दे दो।


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