HBSE Class 9 History (इतिहास) Important Question With Answer in Hindi 2025 Pdf – हमारा भारत IV

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HBSE ( Haryana Board ) Solution of Class 9 History (इतिहास) important Question And Answer solution in Hindi.

HBSE Class 9 History (इतिहास) Important Question Answer in Hindi 2025


भारत का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण Class 9 इतिहास Chapter 1 Important Questions 2025


प्रश्न 1. आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन पर चर्चा करें।

उत्तर – हिंदू धर्म की श्रेष्ठता पर बल देते हुए आर्य समाजियों ने ‘शुद्धि आंदोलन’ आरंभ किया। जिसका उद्देश्य था ‘हिंदू धर्म से अन्य धर्मों में गए लोगों को वापस हिंदू धर्म में लाना।’ इस आंदोलन की वजह से धर्मांतरण बंद हो गया।


प्रश्न 2. नारायण गुरु एवं डॉ अंबेडकर के अछूतों के वंचितों के उद्धार के प्रयासों पर चर्चा करें।

उत्तर – नारायण गुरु ने वंचित हो गए अछूतों के उद्धार के लिए कई प्रयास किए तथा उन्होंने आह्वान किया कि सभी लोग अच्छी शिक्षा प्राप्त करें ताकि सभी को समान अवसर प्राप्त हो सके उन्होंने वंचित वर्ग के लोगों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता पैदा की। उन्होंने आह्वान किया था मानव मात्र के लिए एक धर्म एक जाति और एक ईश्वर।

डॉ. अंबेडकर आजीवन वंचितों के उद्धार के लिए संघर्ष करते रहे।  उन्होंने अछूतों के वंचितों के लिए निम्नलिखित प्रयास किए।

  • संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत छुआछूत पर प्रतिबंध लगाना।
  • उन्होंने भारत में प्रचलित वर्ण व्यवस्था, छुआछूत, लिंग व जाति के आधार पर भेदभाव का विरोध किया।
  • उन्होंने महाराष्ट्र के महाड़ स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया।
  • उनका संपूर्ण जीवन अन्याय, भेदभाव व शोषण से संघर्ष करते हुए बीता।

प्रश्न 3. स्वामी विवेकानंद के विचारों का युवाओं पर क्या असर पड़ा?

उत्तर – स्वामी विवेकानंद का मानना था कि युवाओं में अनंत ऊर्जा होती है और उसको सही दिशा मिलने पर राष्ट्र का विस्तार और विकास हो सकता है। उन्होंने युवा वर्ग को चरित्र निर्माण के 5 सूत्र दिए — आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग। उन्होंने युवाओं में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति गौरव की भावना उत्पन्न करके उनको राष्ट्रहित के लिए प्रेरित किया। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको।”


प्रश्न 4. प्रार्थना समाज के योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर – 1867 ई. में ब्रह्म समाज से प्रभावित होकर आत्माराम पांडुरंग ने ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना की। प्रार्थना समाज का उद्देश्य अछूतों, वंचितो तथा पीड़ितों की दशा में सुधार करना तथा जाति व्यवस्था एवं रूढ़िवाद का विरोध करना था। प्रार्थना समाज ने अंतर्जातीय विवाह, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा का भी समर्थन किया। रानाडे ने महाराष्ट्र में ‘विधवा पुनर्विवाह संघ’ की स्थापना की। उन्हीं के प्रयत्नों से ‘ढक्कन एजुकेशनल सोसाइटी’ की स्थापना हुई और उनके शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले ने ‘सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की। प्रार्थना समाज का भारतीय पुनर्जागरण के इतिहास में अहम योगदान हैं।


प्रश्न 5. स्वामी दयानंद ने एकता स्थापित करने के लिए क्या करने की योजना बनाई?

उत्तर – स्वामी दयानंद ने एकता स्थापित करने के लिए तीन कार्य करने की योजना बनाई।

  1. हरिद्वार कुंभ मेले में सन्यासियों के मध्य वेदों पर आधारित धार्मिक विचार रखें ताकि मतभेद दूर होकर एकता स्थापित हो सके।
  2. शास्त्रार्थ द्वारा सत्य और असत्य का निर्णय कर विद्वानों को संगठित करना ताकि सत्य को ग्रहण और असत्य का त्याग किया जा सके।
  3. 1877 ई. में दिल्ली दरबार के समय समाज सुधारको को आमंत्रित कर सर्व सम्मत कार्यक्रम बनाकर समाज सुधार किया जाए।

प्रश्न 6. सती प्रथा क्या थी?

उत्तर – सती प्रथा एक ऐसी प्रथा थी जिसमें पत्नी अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता में जलकर स्वयं को समाप्त कर लेती थी।


प्रश्न 7. असहयोग आंदोलन में डॉ. केशवराम हेडगेवार का क्या योगदान था?

उत्तर – डॉ. केशवराम हेडगेवार कांग्रेस द्वारा ‘खिलाफत आंदोलन’ का साथ देने में खुश नहीं थे। मतभेदों के होते हुए भी कांग्रेस से जुड़े होने के कारण जब कांग्रेस ने ‘असहयोग आंदोलन’ की घोषणा की तो वे आंदोलन में कूद पड़े एवं उन्हें एक वर्ष की सश्रम कारावास की सजा हुई।


प्रश्न 8. हिंदू कोड बिल की प्रमुख बातों का वर्णन करें?

उत्तर – स्वतंत्रता के पश्चात कानून मंत्री के पद पर रहते हुए अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल तैयार किया इस बिल की प्रमुख बातें निम्नलिखित थी –

  1. अंतर्जातीय विवाह की अनुमति
  2. हिंदू महिलाओं को संपत्ति के पूर्ण अधिकार
  3. पिता की संपत्ति पर पुत्री का समान अधिकार
  4. तलाक संबंधी नियम।

प्रश्न 9. संविधान निर्माण में डॉ० अम्बेडकर की भूमिका पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर –  डॉ. अंबेडकर को ‘भारतीय संविधान का निर्माता’ होने का श्रेय प्राप्त है‌। 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन की मेहनत के पश्चात 26 नवंबर 1949 ई. को भारत के संविधान का मसौदा तैयार हुआ। इस संविधान को 26 जनवरी 1950 ई. को लागू कर दिया गया। नए संविधान में उन्होंने ऐसी अनेक व्यवस्थाएं की, जिससे निम्न वर्गों, महिलाओं व पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा हो सके।


राष्ट्रीय चेतना के तत्व Class 9 इतिहास Chapter 2 Important Questions 2025


प्रश्न 1. अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों का भारत और भारतीयों पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के भारत और भारतीयों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  • अंग्रेजों ने भूमि कर इकट्ठा करने के लिए बहुत सख्त भू राजस्व नीतियां लागू की जिससे कृषि पर निर्भर विभिन्न वर्गों बहुत अधिक गरीब हो गए।
  • औद्योगिक क्रांति आने से भारत से कच्चा माल निर्यात और तैयार माल आयात होने लगा। जिससे भारत के हस्तशिल्प व लघु उद्योग नष्ट हो गए तथा भारतीय व्यापारियों को बहुत हानि उठानी पड़ी।
  • भारत से बड़ी मात्रा में धन लगातार इंग्लैंड जाता रहा जिससे भारत में धन की कमी होने लगी और भारत गरीबी में आ गया।

प्रश्न 2. 1857 की महान क्रांति का वर्णन कीजिए।

उत्तर –  ब्रिटिश शोषण तथा भारतीय सभ्यता व संस्कृति में अनुचित हस्तक्षेप के विरुद्ध भारत के प्रत्येक क्षेत्र के हर वर्ग में एक बेचैनी तथा असंतोष उत्पन्न हुआ जिसकी चरम परिणति 1857 ई. की बड़ी क्रांति के रूप में हुई। भारत के राजा, प्रजा, व्यापारी, हस्तशिल्पी, किसान, जमींदार, स्त्री-पुरुष, हिन्दू-मुसलमान आदि प्रत्येक वर्ग ने एकजुट होकर शोषणकारी विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने का सम्मिलित प्रयास किया। हजारों की संख्या में भारतीयों का बलिदान हुआ। इस राष्ट्रव्यापी संघर्ष को अंग्रेज अपने आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से दबाने में सफल तो हो गए किन्तु इस क्रांति की वीरगाथाएँ भारतीयों में सदा बलिदान तथा शौर्य की भावना जागृत करती रही।


प्रश्न 3. अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा का आरंभ किन स्वार्थों के लिए किया? भारतीयों ने इस शिक्षा का कैसे लाभ उठाया?

उत्तर – अंग्रेजी शिक्षा को लागू करने के पीछे अंग्रेजी सरकार का उद्देश्य सस्ते क्लर्क, वफादार वर्ग तथा अंग्रेजी माल की अधिक से अधिक खपत करना था । आरंभ में ऐसा हुआ भी किंतु शीघ्र ही अंग्रेजी पढ़कर भारत में एक नए भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग का उदय हुआ। पश्चिमी शिक्षा का लाभ उठाते हुए भारतीयों ने पश्चिमी साहित्य जैसे- 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति, इटली व जर्मनी के एकीकरण व आयरलैण्ड के स्वतंत्रता संघर्ष से प्रेरणा लेकर यह वर्ग स्वतंत्रता व स्वशासन की ओर आकर्षित हुआ।


प्रश्न 4. भारत के गौरवशाली इतिहास द्वारा किस प्रकार भारतीयों में आत्मसम्मान व स्वाभिमान की भावना ने जन्म लिया ?

उत्तर – विदेशी विद्वानों ने प्राचीन भारतीय इतिहास पर शोध करके भारत की प्राचीन गौरवशाली सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर को विश्व के सामने रखा। जेम्स प्रिन्सेप द्वारा ब्राह्मी लिपि पढ़ने से अशोक महान जैसे मौर्य सम्राट की जानकारी मिली, तो वहीं कनिंघम के पुरातात्त्विक उत्खनन से भारत की महान प्राचीन धरोहर का पता चला। यह ऐतिहासिक धरोहर किसी भी प्रकार से यूनान व रोम की सभ्यताओं से कमतर नहीं थी। कई विदेशी विद्वानों ने वेदों व उपनिषदों का गुणगान किया जिससे भारतीयों में आत्महीनता के स्थान पर आत्मसम्मान व स्वाभिमान की भावना ने जन्म लिया।


प्रश्न 5. अंग्रेज भारतीयों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?

उत्तर – अंग्रेज स्वयं को उच्च प्रजाति का तथा भारतीयों को निम्न व निकृष्ट प्रजाति का मानकर उनसे घृणा करते थे। वे भारतीयों को हब्शी, काला बाबू आदि नामों से पुकारते थे तथा उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे। प्रजातीय विभेद की नीति के आधार पर भारतीयों के साथ अनेक प्रकार का दुर्व्यवहार किया जाता था।


प्रश्न 6.  ‘नील दर्पण’ क्या है?

उत्तर – बांग्ला नाटककार दीनबन्धु मित्र का 1860 ई. में प्रकाशित नाटक ‘नील दर्पण’ एक महत्वपूर्ण कृति है। इस नाटक में बंगाल के किसानों के ऊपर अंग्रेजों द्वारा किए गए अमानुषिक अत्याचारों की बड़ी भावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है।


प्रश्न  7. लार्ड लिटन की दमनकारी नीतियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

  • 1876 ई. में आई.सी.एस. की प्रवेश-परीक्षा में बैठने की आयु घटाकर 19 वर्ष करना।
  • 1877 ई. में देश भर में अकाल के समय दिल्ली में शानदार शाही दरबार का आयोजन करना।
  • 1878 ई. में शस्त्र अधिनियम पास करके भारतीयों द्वारा शस्त्र रखने पर प्रतिबंध लगाना।
  • पत्रों पर 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रैस अधिनियम पास करके भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार रोक लगाना।

उदारवादी एवं राष्ट्रवादी Class 9 इतिहास Chapter 3 Important Questions 2025


प्रश्न 1. उदारवादी कौन थे ? उनकी मुख्य माँगें क्या थीं ?

उत्तर – उदारवादी वे लोग थे जो ब्रिटिश शासन के समर्थक थे। उनका लक्ष्य ब्रिटिश शासन के अधीन ही स्वशासन की प्राप्ति करना था । उदारवादी चाहते थे कि विधान परिषदों में सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए, उनके अधिकारों में वृद्धि की जाए तथा परिषदों के सदस्यों को लोगों द्वारा चुना जाए। उच्च प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयों को भी नियुक्त किया जाए।

उदारवादियों की मुख्य माँगें निम्नलिखित थी :-

  • विधान परिषदों की सदस्य संख्या में वृद्धि की जाए।
  • प्रशासनिक सेवा में भारतीयों की नियुक्ति की जाए।
  • सेना के खर्चे में कमी की जाए।
  • सामान्य तथा तकनीकी शिक्षा का विस्तार किया जाए।
  • उच्च पदों पर भारतीयों की अधिक नियुक्ति की जाए।
  • न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग किया जाए।
  • किसानों पर करों का बोझ कम किया जाए।
  • नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो।
  • नमक पर कर में कमी की जाए।
  • प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाएं।

प्रश्न 2. उदारवादियों एवं राष्ट्रवादियों में मुख्य अंतर क्या थे?

उत्तर

उदारवादी राष्ट्रवादी
  • इनका लक्ष्य ब्रिटिश शासन के अधीन ही  स्वशासन की प्राप्ति करना था।
  • उदारवादी चाहते थे कि विधान परिषदों में इनके सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए।
  • उदारवादी लोग सरकार के सामने पूरी नरमी और उदारता से अपनी मांगे रखते थे।
  • उदारवादी नेता शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक साधनों के पक्ष में थे।
  • इनका लक्ष्य ब्रिटिश शासन को भारत से उखाड़ फेंकना था।
  • राष्ट्रवादी विधान परिषद में अपना ही अधिकार चाहते थे।
  • राष्ट्रवादी लोग सरकार का विरोध करते थे और अपनी मांगे जबरदस्ती मनवाते थे।
  • राष्ट्रवादी नेता बिना किसी कानून की प्रवाह के देश की आजादी चाहते थे।

प्रश्न 3. बंगाल को विभाजित करने के पीछे अंग्रेजों का क्या उद्देश्य था?
OR
बंगाल को विभाजित करने के पीछे अंग्रेजों के दो प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?

उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन का यह कारण बताया कि बंगाल बहुत बड़ा प्रांत है और उसका प्रशासन सुचारू रूप से चलाना बहुत कठिन है परंतु वास्तव में अंग्रेज़ सरकार भारत में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को कमजोर करना चाहती थी। इस विभाजन का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को नष्ट करना था।


प्रश्न 4. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के महत्व पर विचार करें।

उत्तर – स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है जिसका वर्णन निम्नलिखित है:-

  • इस आंदोलन से भारतवासियों में राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना बढ़ने लगी।
  • इस आंदोलन से लोगों में स्वदेशी वस्तुओं का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया।
  • इससे भारतीय उद्योगों का अपार विकास हुआ। इस आंदोलन के फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में कपड़ा मिलें, साबुन और दियासलाई के कारखाने लग गए।
  • स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने साहित्य पर विशेष प्रभाव डाला। उस समय राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत कई कविताओं, गद्य, गीत आदि की रचना हुई।
  • इस आंदोलन में पहली बार भारतीय महिलाओं ने भी भाग लिया। कई स्थानों पर जुलूसों और धरनों में उन्होंने भाग लिया।
  • स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन ने बंग-भंग के विरुद्ध लोगों को संगठित कर दिया और विवश होकर ब्रिटिश सरकार को 1911 ई. में बंगाल विभाजन रद्द करना पड़ा।

प्रश्न 5. होमरूल आंदोलन क्या था? 

उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अनेक भारतीय नेताओं ने समझ लिया था कि अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर जनता का दबाव बनाना आवश्यक है इसलिए एक वास्तविक जन आंदोलन आवश्यक था। ऐसे में 1915 ई. – 1916 ई. में भारत में एक नए प्रकार का आंदोलन आरंभ हुआ जिसे ‘होमरूल आंदोलन’ कहा जाता है। इसके मुख्य नेता श्रीमती एनी बेसेंट तथा बाल गंगाधर तिलक थे।


प्रश्न 6. उदारवादियों के प्रमुख नेता कौन थे?

उत्तर – उदारवादियों के मुख्य नेता दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी, बदरुद्दीन तैयबजी, गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविंद रानाडे, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, रोमेश चन्द्र दत्त, सुब्रमण्यम अय्यर तथा शिशिर कुमार घोष थे।


प्रश्न 7. लाला लाजपत राय का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान का वर्णन करें।

उत्तर – लाला लाजपत राय भी एक महान राष्ट्रवादी नेता थे जिन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ (पंजाब केसरी) की उपाधि दी गई। उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ नामक उर्दू दैनिक तथा ‘द पीपुल’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक का प्रकाशन किया। इन समाचार पत्रों तथा अन्य लेखों द्वारा उन्होंने लोगों को मातृभूमि की रक्षा हेतु बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। 1928 ई. में अपनी मृत्यु तक वे भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते रहे इस बीच उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने ‘होमरूल आंदोलन’ तथा किसानों के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


प्रश्न 8. लोकमान्य तिलक की भारतीय स्वतंत्रता में क्या भूमिका थी।

उत्तर – लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ तथा मराठी भाषा में ‘केसरी’ नामक समाचार पत्र चलाए। इन समाचार पत्रों के माध्यम से उन्होंने विदेशी शासन की कठोर शब्दों में निंदा की तथा ‘स्वराज’ का जोरदार ढंग से प्रचार किया। उन्होंने 1893 ई. में लोगों में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के लिए ‘गणपति उत्सव’ को माध्यम बनाना आरंभ किया। 1895 ई. में उन्होंने ‘शिवाजी समारोह’ भी आरंभ करवाया ताकि नवयुवक शिवाजी की महान उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रवाद के उत्साही समर्थक बने। 1896 ई. 1897 ई. में अकाल पड़ने की स्थिति में, महाराष्ट्र के किसानों के द्वारा ‘भूमि कर न देने का अभियान’ तिलक ने चलाया। उन्होंने स्वराज का उद्घोष करते हुए कहा कि “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।”


भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन Class 9 इतिहास Chapter 4 Important Questions 2025


प्रश्न 1. भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन की उत्पत्ति पर चर्चा करें।

उत्तर – भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना के उदय के फलस्वरूप क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति हुई। भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति के कई कारण थे :

  • समाज सुधार आंदोलनों द्वारा प्रेरणा।
  • 1857 ई. की क्रांति से प्रेरणा।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के आर्थिक दोहन और शोषण के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
  • अंग्रेजों द्वारा भारतीयों से दुर्व्यवहार के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
  • राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं साहित्य से प्रेरणा।
  • लाल, बाल, पाल एवं अरविंद घोष की विचारधारा से प्रेरणा।
  • अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव।

प्रश्न 2. क्रान्तिकारियों के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? Most Important
OR
भारतीय क्रांतिकारियों के दो प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?

उत्तर

  • भारत में ब्रिटिश सरकार का अस्तित्व समाप्त करके पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना।
  • युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जागृत करना।
  • सशस्त्र बल का प्रयोग करके क्रांति करना।
  • युवाओं को संगठित करना।
  • भारत में क्रांतिकारी संस्थाओं की स्थापना करना।
  • लोकतंत्र की स्थापना।
  • राष्ट्रीय सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना।
  • व्यवस्था में बदलाव करना।

 


प्रश्न 3. गदर आंदोलन पर विस्तृत चर्चा करें।

उत्तर – उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में भारत से कई भारतीय धन कमाने व जीविका के साधन ढूंढते हुए अमेरिका, बर्मा, सिंगापुर, हांगकांग, कनाडा आदि देश जा पहुंचे परंतु भारतीय होने के नाते विदेश में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता था। इसलिए अपने देशवासियों की पीड़ा को करते अनुभव हुए उन्होंने निश्चय किया कि वह यहां विदेश में रहकर अपने भारतवर्ष को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करवाने का प्रयास करेंगे। इसलिए उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन चलाने का निश्चय किया। सर्वप्रथम 21 अप्रैल, 1913 ई. में अमेरिका व कनाडा के भारतीयों को संगठित करके एक ‘हिंदुस्तानी एसोसिएशन’ (हिन्दी पैसेफिक एसोसियेशन) बना ली जिसे गदर पार्टी कहा जाता था । गदर पार्टी के मुख्य नेता सोहन सिंह भकना, लाला हरदयाल, भाई केसर सिंह, पण्डित कांशी राम, भाई परमानन्द, मुहम्मद बरकतुल्ला, करतार सिंह सराभा थे। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत की आजादी के लिए संघर्ष था। इस पार्टी का मुख्यालय अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में युगांतर आश्रम नामक स्थान पर खोला गया। नवंबर 1913 ई. में ‘गदर’ नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला गया जो हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू आदि विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होने लगा। इस समाचार पत्र में ब्रिटिश शासन की वास्तविक तस्वीर भारतीयों के सामने पेश की गई तथा साथ ही नवयुवकों को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया। यह पत्र विश्व के कई देशों में निःशुल्क भेजा जाता था। इस पार्टी के हजारों सदस्य भारत को आजाद करवाने के लिए जहाजों द्वारा भारत पहुंचे। ये लोग पूरे पंजाब में फैल गए और अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध गोपनीय कार्य करने लगे। मार्च 1914 ई. में लाला हरदयाल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया। इसलिए वह अमेरिका छोड़कर स्विट्जरलैंड चले गए। उसके पश्चात् भगवान सिंह, करतार सिंह सराभा, रामचंद्र आदि नेताओं ने अपने प्रयासों से गदर आंदोलन को जारी रखा।


प्रश्न 4. कामागाटामारू घटना पर चर्चा करें।

उत्तर – गदर पार्टी के सदस्यों ने भारत में सशस्त्र क्रांति लाने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों को जर्मन शस्त्रों के साथ तोसामारु नामक जहाज में भारत भेजा परंतु इसकी सूचना पहले ही भारत में ब्रिटिश सरकार को हो गई । इसलिए भारत पहुंचने पर सभी व्यक्तियों को कैदी बनाकर मृत्युदंड दिया गया। इसी समय कनाडा की सरकार ने भारतीयों पर अनेक अनुचित प्रतिबंध लगा रखे थे। इसलिए इन भारतीयों के सहयोग के लिए सिंगापुर के एक धनी भारतीय बाबा गुरदित्त सिंह ने कामागाटामारू जहाज 350 भारतीयों को लेकर कनाडा के लिए प्रस्थान किया। 23 मई, 1914 ई. को जब यह जहाज कनाडा की बंदरगाह वैंकूवर पहुंचा तो कनाडा की सरकार ने केवल 24 लोगों को ही वहां उतरने की इजाजत दी। जहाज में 340 सिक्खों के साथ-साथ हिंदू व मुसलमान भी थे। सभी को वापिस जहाज में जबरदस्ती बैठा दिया गया। तत्पश्चात् यह जहाज सभी लोगों को लेकर वापिस भारत के लिए रवाना हो गया। भारत में ब्रिटिश सरकार को यह बात पहले ही पता चल चुकी थी। जब यह जहाज कलकत्ता (बजबज घाट) पहुंचा तो यहां भी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नीचे उतरने की इजाजत नहीं दी और यात्रियों को बलपूर्वक पंजाब भेजने का प्रयास किया। कुछ यात्रियों ने बलपूर्वक कलकत्ता में प्रवेश करने की कोशिश की तो सरकार ने उन निर्दोष यात्रियों पर गोली चला दी। यह घटना 27 सितम्बर, 1914 ई. को घटी। इसमें 19 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना को कामागाटामारू घटना कहते है।


प्रश्न 5. विनायक दामोदर सावरकर की प्रमुख रचनाएं कौन-सी थी?

उत्तर – विनायक दामोदर सावरकर की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं—

  • द इण्डियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस
  • हिंदू राष्ट्रीय दर्शन
  • लेटर्स फ्राम अंडमान
  • हिंदू पद पादशाही
  • एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व
  • डेडिकेशन टू मार्टियर्स

प्रश्न 6.  काले पानी की सजा कैसी होती थी?

उत्तर – अंडमान की सेल्यूलर जेल की सजा को काले पानी की सजा भी कहा जाता था। इस जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ डाकुओं और हत्यारों से भी अधिक बुरा व्यवहार किया जाता था। कैदियों को अलग-अलग सेल (कक्ष) में रखा जाता था। हल्का-सा भी शक होने पर हथकड़ियाँ पहनाकर हाथ ऊपर करके खड़ा रहने की सजा दी जाती थी। प्रतिदिन 30 पौंड तेल निकलवाने के लिए कोल्हू चलवाया जाता था। कम तेल निकालने वाले की पिटाई की जाती थी। पीने का पानी भी बहुत मुश्किल से मिलता था।


प्रश्न 7.  कूका आंदोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर – कूका या नामधारी आंदोलन वास्तव में एक ‘धर्म सुधार आंदोलन’ था। सामूहिक रूप से एक साथ इकट्ठे होकर किसी विशेष उद्देश्य के लिए ऊँची आवाज लगाने को कूक कहा जाता है। नामधारी ऊँची-ऊँची आवाज (कूक) लगाकर गायन करते थे इसलिए उनके आंदोलन को कूका आंदोलन का नाम दिया गया। आदर्श राजनीतिक शासन की स्थापना के लिए बालक सिंह नामक उदासी फकीर के शिष्य राम सिंह कूका के नेतृत्व में यह आंदोलन शुरू हुआ। । बालक सिंह की मृत्यु के पश्चात् बाबा राम सिंह ने कार्यभार संभाला तथा अपना मुख्यालय भैणी साहिब (लुधियाना) में स्थापित किया। जब बाबा राम सिंह ने सिक्खों को अंग्रेजों के हाथों पराजित व अपमानित होते हुए देखा तब उन्होंने अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए प्रयास प्रारम्भ कर दिए। बाबा राम सिंह ने पंजाब के विभिन्न जिलों में अपने सूबेदार और नायब सूबेदार नियुक्त किए। उन्होंने युवकों को सैनिक प्रशिक्षण देने के लिए एक निजी अर्ध-सैनिक संस्था स्थापित कर ली। कूका या नामधारी आंदोलन के अनुयायी गायों का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने सरकार से गौ हत्या पर कड़ी रोक लगाने की लगातार मांग की, परन्तु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 1872 ई. में कूकाओं को सूचना मिली कि मुस्लिम राज्य मलेरकोटला में गायों की हत्या की जा रही है तो उनके एक समूह ने मलेरकोटला पर धावा बोल दिया। अंग्रेज सरकार ने राम सिंह व उनके अनुयायियों को इस उपद्रव के लिए उत्तरदायी माना और उन्हें बंदी बनाकर रंगून (वर्तमान में म्यानमार) भेज दिया। अपनी मृत्यु तक वे जेल में बंदी रहे। राम सिंह कूका ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को उखाड़ने का प्रयास किया। नामधारी कूकाओं ने सर्वप्रथम स्वदेशी कपड़े, खासकर गाढ़ा या खर पहनकर स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके उसे राष्ट्रीय अस्त्र के रूप में प्रयोग किया था।


प्रश्न 8. ‘अलीपुर षड्यंत्र केस’ क्या था?

उत्तर – सन् 1960 ई. में खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर के न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को मारने के मकसद से उसकी बग्गी पर बम फेंक दिया। चाकी ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम बोस को मृत्युदंड दिया गया। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों का बम बनाने का कारखाना पकड़ लिया और कई क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला था। इस केस को अलीपुर षड्यंत्र केस कहा जाता है।


भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन Class 9 इतिहास Chapter 5 Important Questions 2025


प्रश्न 1. काकोरी की घटना पर विस्तार से चर्चा करें। इसका परिणाम क्या रहा?

उत्तर – सबसे पहले उत्तर भारत के क्रांतिकारियों ने संगठित होना आरम्भ कर दिया। इनके नेता राम प्रसाद बिस्मिल, योगेश चंद्र चटर्जी, शचींद्रनाथ सान्याल व सुरेश चंद्र भट्टाचार्य थे। अक्टूबर 1924 ई. में इन क्रांतिकारियों का कानपुर में एक सम्मेलन हुआ जिसमें हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ का गठन किया गया। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र ‘संयुक्त राज्य भारत’ की स्थापना करना था। संघर्ष छेड़ने, प्रचार करने, युवाओं को अपने दल में मिलाने, प्रशिक्षित करने और हथियार जुटाने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य के लिए इस संगठन के 10 व्यक्तियों ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में शाहजहाँपुर में एक बैठक की और अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 ई. को लखनऊ जिले के गांव काकोरी के रेलवे स्टेशन से छूटी 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींच कर रोक लिया व अंग्रेजी सरकार का खजाना लूट लिया। सरकार इस घटना से बहुत कुपित हुई व भारी संख्या में युवकों को गिरफ्तार किया गया। उन पर मुकद्दमा चलाया गया। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेंद्र लाहड़ी व अशफाकुल्लाह खाँ को फाँसी की सजा दी गई। चार को आजीवन कारावास देकर अंडमान भेज दिया। 17 अन्य लोगों को लंबी सजाएं सुनाई गई। चंद्रशेखर आजाद अंत समय तक पकड़े नहीं जा सके।


प्रश्न 2. शाही नौसेना के आंदोलन पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसका महत्व बताइये।

उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने ‘आजाद हिंद फौज’ के कुछ अफसरों के विरुद्ध ब्रिटिश शासन की वफादारी की शपथ तोड़ने और विश्वासघात करने के आरोप में मुकद्दमा चलाने की घोषणा की तो राष्ट्रवादी विरोध की लहर सारे देश में फैल गई। सारे देश में विशाल प्रदर्शन हुए। ‘आजाद हिंद फौज’ के आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय आंदोलन पर तथा सेना पर भी पड़ा। सन् 1946 ई. में सेना में अशांति फैलने लगी थी। इस आंदोलन की स्वतः स्फूर्त शुरुआत 18 फरवरी, 1946 ई. को नौसेना के सिगनल्स प्रशिक्षण पोत ‘आई. एन. एस. तलवार’ से हुई। नाविकों द्वारा खराब खाने की शिकायत करने पर अंग्रेज कमान अफसरों ने नस्ली अपमान और प्रतिशोध का रवैया अपनाया। वे सीधे तौर पर भारतीय सैनिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार करते थे। ब्रिटिश अधिकारियों का जवाब था “भिखारियों को चुनने की छूट नहीं हो सकती।” नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी। हड़ताल अगले दिन कैसल, फोर्ट बैरकों और बम्बई बन्दरगाह के 22 जहाजों तक फैल गई । यद्यपि यह बम्बई में आरम्भ हुआ परन्तु कराची से लेकर कलकत्ता तक पूरे ब्रिटिश भारत में इसे भरपूर समर्थन मिला। क्रांतिकारी नाविकों ने जहाज पर से यूनियन जैक के झण्डों को हटाकर वहां पर तिरंगा फहरा दिया। कुल मिलाकर 78 जलयानों, 20 स्थलीय ठिकानों एवं 20,000 नाविकों ने इसमें भाग लिया। जनवरी 1946 ई. में वायुसैनिकों ने भी बम्बई में हड़ताल शुरू कर दी। उनकी मांगें थी कि हवाई सेना में अंग्रेजों और भारतीयों में भेदभाव दूर किया जाए। इनके नारे थे ‘जय हिंद’, ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’, ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो।’ वास्तव में अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय आजाद हिंद फौज के संघर्ष तथा नौसेना के आंदोलन के पश्चात सेना में उत्पन्न हुए आक्रोश के कारण ही लिया।


प्रश्न 3. लाहौर षड्यंत्र केस क्या है? इसका क्या परिणाम हुआ?

उत्तर – भगत सिंह ने 1929 ई. को “सार्वजनिक सभा” एवं “औद्योगिक विवाद बिल” पर जब बहस हो रही थी तो दर्शक गैलरी से भगत सिंह ने दो बम गिरा दिए जिससे वहां हड़कंप मच गया। भगत सिंह ने भागने का कोई प्रयास नहीं किया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जज ने 12 जून, 1929 ई. को भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुना दी। इसी बीच पुलिस को क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित बम फैक्ट्रियों का सुराग मिल गया। अतः पुलिस ने दिल्ली, सहारनपुर एवं लाहौर की बम फैक्ट्रियों पर धावा बोल दिया। अनेक क्रांतिकारी पकड़े गए। जय गोपाल के सरकारी गवाह बनने से सांडर्स हत्याकांड में भगत सिंह की संलिप्तता का केस आरम्भ हुआ। इसे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ कहते हैं। इसके बाद उन्हें लाहौर की अदालत में पेश करके उनके विरुद्ध मुकद्दमा चलाया गया। मुकद्दमे के दौरान इन क्रांतिकारियों ने कोर्ट को क्रांतिकारी दल की नीतियों, उद्देश्यों तथा कार्यक्रम के बारे में बताया। समाचार पत्रों के माध्यम से ये सब खबरें लोगों तक पहुंचने लगी। उन्होंने लगातार बयान देने शुरू किए, जिससे जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ी। जो अब तक क्रांतिकारियों की निंदा करते थे, अब वे प्रशंसा करने लगे।


प्रश्न 4. भगत सिंह की भारत की आजादी में क्या भूमिका रही ?

उत्तर – भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला अंग्रेजी पुलिस अफसर की हत्या करके लिया। उसके बाद भगत सिंह दुर्गा भाभी के साथ कलकत्ता पहुंच गए। वहां उन्होंने बम बनाने सीखें और वापिस अपने क्षेत्र में आकर बम बनाने की फैक्ट्री लगा दी। 1929 ई. को “सार्वजनिक सभा” एवं “औद्योगिक विवाद बिल” पर जब बहस हो रही थी तो दर्शक गैलरी से भगत सिंह ने दो बम गिरा दिए जिससे वहां हड़कंप मच गया। भगत सिंह ने भागने का कोई प्रयास नहीं किया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसका नाम देश के घर घर में पहुंच चुका था। भगत सिंह को कई सारे केसों के तहत अंत में फांसी की सजा सुनाई गई। भगत सिंह ने अपने प्राणों की आहुति देेकर लोगों को अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कर दिया और एकजुट भी किया।


महात्मा गांधी व भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष Class 9 इतिहास Chapter 6 Important Questions 2025


प्रश्न 1. असहयोग आंदोलन के महत्व पर प्रकाश डालें। Most Important

उत्तर – असहयोगआंदोलन में हिंदुओं, मुसलमानों, शिक्षित व अशिक्षित लोगों, अध्यापकों व छात्रों, पुरुषों और स्त्रियों ने भाग लिया। पहली बार राष्ट्रीय आंदोलन ने देशव्यापी आंदोलन का रूप धारण किया। अब लोगों के मन में से सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने व जेल जाने का भय समाप्त हो गया। लोगों में सरकार से सीधी टक्कर लेने का जोश उत्पन्न हो गया। साथ ही साथ देश के अंदर कई नए रचनात्मक कार्य भी हुए जैसे-राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व लोगों को रोजगार प्रदान करना। लोग देश के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिए तैयार हो गए।


प्रश्न 2. रोलेट एक्ट क्या था? या काला कानून क्या था?

उत्तर – रौलट एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर, उस पर मुकद्दमा चलाए जेल में डाल सकती थी और उसे वकील, दलील और अपील का कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। बिल के विरुद्ध लोगों में बहुत रोष था। लोगों ने इसे ‘काला कानून’ कहकर संबोधित किया।


प्रश्न 3. रौलट सत्याग्रह का वर्णन कीजिए।

उत्तर – फरवरी 1919 ई. में केंद्रीय विधान सभा में दो बिल पेश किए गए। इन बिलों के द्वारा नौकरशाही को क्रांतिकारी गतिविधियां दबाने के लिए असीम शक्तियाँ दी गई थीं। महात्मा गांधी ने वायसराय से इन बिलों को पास न करने की प्रार्थना की परंतु विरोध के बावजूद इनमें से एक बिल को पास कर दिया गया जिसे ‘ रौलट एक्ट’ का नाम दिया गया। महात्मा गांधी ने 30 मार्च, 1919 ई. को रौलट एक्ट के विरोध में और देशव्यापी हड़ताल करने की अपील की। बाद में यह तिथि बदलकर 6 अप्रैल कर दी गई परंतु दिल्ली जैसे शहरों में दोनों दिन हड़ताल हुई। गांधी जी ने उन इलाकों में जाना चाहा परंतु इससे पहले ही पलवल के स्टेशन पर उन्हें बंदी बना लिया गया। महात्मा गांधी को बंदी बनाए जाने की सूचना भारतवर्ष में आग की तरह फैल गई। कई नगरों में पुलिस और जनता के बीच झगड़े हुए। लोगों ने हड़तालों व प्रदर्शनों का सहारा लेकर अपने नेताओं की रिहाई की मांग की परंतु सरकार ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए उन पर गोलियां चला दी। जिसके परिणामस्वरूप कई लोग मारे गए और घायल हुए।


प्रश्न 4. महात्मा गांधी की दांडी यात्रा का वर्णन कीजिए।

उत्तर – सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ 12 मार्च, 1930 ई. को महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा से किया। आरंभ में गांधी जी के साथ 78 अनुयायियों ने भाग लिया परंतु धीरे-धीरे मार्ग में सैकड़ों लोगों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। 24 दिन के पश्चात् 6 अप्रैल, 1930 ई. को महात्मा गांधी दांडी के समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक तैयार करके नमक कानून का उल्लंघन किया।


प्रश्न 5. नमक सत्याग्रह क्या था? विस्तार से चर्चा करें।

उत्तर – सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ 12 मार्च, 1930 ई. को महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा से किया। आरंभ में गांधी जी के साथ 78 अनुयायियों ने भाग लिया परंतु धीरे-धीरे मार्ग में सैकड़ों लोगों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। 24 दिन के पश्चात् 6 अप्रैल, 1930 ई. को महात्मा गांधी दांडी के समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक तैयार करके नमक कानून का उल्लंघन किया। उनका यह कार्य इस बात का प्रतीक था कि सारे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया जाए। सविनय अवज्ञा आंदोलन शीघ्र ही सारे देश में फैल गया। प्रत्येक संभव स्थान पर नमक बनाया गया अथवा अन्य कानूनों का उल्लंघन किया गया। सरोजिनी नायडू ने धरासना में तथा चक्रवर्ती राजागोपालाचार्य ने वेदारण्यम में ‘नमक सत्याग्रह’ किया।


प्रश्न 6. पूना समझौता क्या था? 

उत्तर – दूसरे गोलमेज सम्मेलन में मुसलमान, सिक्ख और भारतीय ईसाइयों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। अछूतों को हिन्दुओं से अलग मानकर पृथक निर्वाचन और प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया गया। प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में स्त्रियों को तीन प्रतिशत स्थान सुरक्षित कर दिये गये। गांधी जी ने इसका विरोध किया क्योंकि यह भारतीय एकता के लिए हानिकारक था। गांधी जी ने इस घोषणा के विरोध में आमरण अनशन आरम्भ कर दिया जिससे सारे देश में हलचल मच गई। कुछ नेताओं के प्रयासों से गांधी जी व डॉ. अम्बेडकर के बीच समझौता हो गया जिसे “पूना समझौता’ कहा जाता है।


प्रश्न 7. महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा क्यों दिया और इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव के पास होने के अगले दिन ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं को बंदी बना लिया गया। गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देते हुए कहा ‘एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूं, उसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और अपनी हर सांस द्वारा व्यक्त कर सकते हैं वह मंत्र है ‘करो या मरो’, या तो हम भारत को आजाद कराएंगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे।’ जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली एवं राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर इस आंदोलन का संचालन किया। इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन में वकीलों, अध्यापकों, व्यापारियों, डॉक्टरों, पत्रकारों, मजदूरों, विद्यार्थियों व स्त्रियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। विभिन्न नगरों में सभाएँ की गई एवं जुलूस निकाले गए। लोगों ने हिंसा का उत्तर हिंसा से दिया। कई सरकारी भवनों व पुलिस थानों को जला दिया गया, तार की लाइनें काट दी गई।


प्रश्न  8. गांधी जिन्ना वार्ता क्या थी? इसका क्या परिणाम रहा?

उत्तर – भारत छोड़ो आंदोलन के बाद मई 1944 ई. में गांधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया। तत्पश्चात् गांधी जी ने विभाजन को टालने तथा मोहम्मद अली जिन्ना को मनाने के लिए 9 सितंबर से 27 सितंबर, 1944 ई. के बीच कई दौर की बातचीत की। इस गांधी- जिन्ना वार्ता में गांधी जी जिन्ना के लिए ‘कायदे आज़म’ का सम्बोधन करते रहे, जिससे जिन्ना और अधिक अहंकारी हो गये। जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग को मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 ई. को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ घोषित किया। जिससे बंगाल, बिहार और बंबई में दंगे हुए, जिसमें 5 हजार लोग मारे गए तथा 15 हजार लोग घायल हुए।


प्रश्न 9. गांधी जी ने पटेल की बजाए नेहरू को क्यों चुना? 

उत्तर – बहुत सारे प्रांतों की अधिकतर कांग्रेस कार्य समितियों ने सरदार पटेल का नाम कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सुझाव दिया था। गांधी जी का विचार था कि नेहरू अंग्रेजों से आजादी के समय बेहतर लेनदेन कर सकता है तथा देश के बाहर भी उसे लोग जानते हैं। वह दूसरा स्थान कभी स्वीकार नहीं करेंगे। इसी कारण गांधीजी ने पटेल की बजाय नेहरू को चुना।


प्रश्न 10. गांधी जी कांग्रेस को क्यों समाप्त करना चाहते थे?

उत्तर – स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस में व्याप्त भ्रष्टाचार से आहत होकर गांधी जी ने ऑल इंडिया स्पीनर एसोसिएशन, हरिजन सेवक संघ, ग्राम उद्योग संघ, गौ सेवा संघ एवं नई तालीमी संघ जैसे संगठनों के मुख्य प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन बुलाया तथा सम्मेलन के बाद कांग्रेस का उद्देश्य पूरा हो जाने के कारण कांग्रेस को समाप्त करने तथा उसके स्थान पर लोक सेवा संघ बनाने की योजना बनाई


प्रश्न 11. भारत छोड़ो आंदोलन की उत्पत्ति एवं प्रसार की व्याख्या करें। Most Important

उत्तर – भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू किए जाने का मुख्य कारण क्रिप्स मिशन की असफलता व जापान की बढ़ती हुई शक्ति थी। क्रिप्स मिशन के सुझावों में ब्रिटिश सरकार की भारतीयों को स्वराज देने की नीति स्पष्ट नहीं थी। जापान की बढ़ती हुई शक्ति से ब्रिटिश सरकार चिंतित थी क्योंकि भारतीयों के सहयोग के बिना वह इसका मुकाबला नहीं कर सकती थी। वहीं दूसरी ओर भारतीयों की यह सोच थी कि वे स्वयं जापान का मुकाबला करें इसलिए वे जापान के आक्रमण से पहले ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाना चाहते थे। उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव पास किया। गांधी जी ने जनता से निष्क्रियता की भावना को दूर करने के लिए ‘ अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा दिया, ब्रिटिश सरकार के व्यवहार से तंग आकर कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 ई. को बंबई अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया। इसके अनुसार यह मांग की गई कि अंग्रेजों को तुरंत बिना शर्त भारत छोड़ देना चाहिए। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव के पास होने के अगले दिन ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं जैसे गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, अबुल कलाम आजाद, राजेंद्र प्रसाद, पट्टाभि सीतारमैया आदि नेताओं को बंदी बना लिया गया। इस खबर से भारतीयों में रोष की भावना प्रबल हो गई। मुंबई, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों के लोग ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार हो गए। अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए दमन की नीति का सहारा लिया। सरकार ने शांतिपूर्ण जुलूसों पर गोलियाँ चलाई व लाठीचार्ज किया। एक लाख से अधिक स्त्री-पुरुषों को बंदी बना लिया गया। प्रदर्शनकारियों पर भारी जुर्माने किए गए, देश में चारों ओर अराजकता और अशांति फैल गई।


आजाद हिंद फौज एवं नेताजी की भूमिका Class 9 इतिहास Chapter 7 Important  Question Answer


प्रश्न 1. गांधी जी और नेताजी के विचारों में मुख्य भेद क्या था? Most Important

उत्तर – गांधी जी और नेताजी के विचार आपस में नहीं मिलते थे। गांधी जी साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में गहरा विश्वास रखते थे जबकि नेताजी साध्य के लिए किसी भी साधन को अपनाने के हक में थे। इसके अलावा नेताजी के द्वारा महात्मा गांधी से पूछे गए स्वराज के सवालों का महात्मा गांधी नेताजी को स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए जिसके कारण भी उनके अंदर वैचारिक भेद था।


प्रश्न 2. आजाद हिन्द फौज के गठन पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – फरवरी 1942 ई. में जब अंग्रेजी सेना ने सिंगापुर में जापानी सेना के सामने हथियार डाले तो नेताजी ने एशिया जाने की योजना बनानी शुरू कर दी तथा 90 दिन की पनडुब्बी की यात्रा करके वे दक्षिण-पूर्व एशिया पहुँचे। ‘रास बिहारी बोस’ काफी समय से आत्म निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का गठन करके दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की स्वतंत्रता के प्रयास किए। उनके अलावा बर्मा, थाईलैंड और शंघाई में क्रमश: प्रीतम सिंह, बाबा अमर सिंह एवं बाबा उस्मान खान भी स्वतंत्रता की अलख जगाए हुए थे। इन सबके प्रयत्नों तथा कैप्टन मोहन सिंह के सहयोग से ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन हुआ लेकिन शीघ्र ही मोहन सिंह व जापानी अधिकारियों में मतभेद होने से इसका विघटन होने लगा। नेताजी आजाद हिंद फौज में तीन लाख सैनिक भर्ती करना चाहते थे। इसके लिए धन की आवश्यकता थी। रंगून के एक उद्योगपति हबीबुर्रहमान ने एक करोड़ रुपए की सहायता दी। एक गुजराती महिला श्रीमती बताई देवी ने तीन करोड़ की संपत्ति नेताजी के कदमों में रख दी। रंगून में ‘आजाद हिंद बैंक’ की स्थापना हुई। प्रवासी भारतीयों ने अपने गहने बेचकर नेताजी को धन दिया। नेताजी ने अधिकाधिक सैनिक भर्ती करने के लिए सिंगापुर, मलाया, जावा, सुमात्रा, बर्मा में फौज के दफ्तर खोल दिए।


प्रश्न 3. नेता जी द्वारा महात्मा गांधी से पूछे गए तीन सवाल कौन से थे?

उत्तर

  1. कांग्रेसी कार्यक्रमों से करों की अदायगी कैसे बंद हो?
  2. असहयोग आन्दोलन से अंग्रेज भारत छोड़कर कैसे जाएंगे?
  3. गांधी जी एक वर्ष में स्वराज का वचन कैसे पूरा करेंगे?

प्रश्न 4. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिंद फौज का क्या योगदान था?

उत्तर – भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ को संगठित करते हुए आह्वान किया था कि “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” आजाद हिंद फौज एवं नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान निम्नलिखित हैं :-

  • युवकों को प्रेरणा देना।
  • अहिंसात्मक नीति का विरोध करके आजाद हिंद फौज के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन को जुझारू एवं संघर्षशील बनाया।
  • संघर्ष एवं युद्ध करके राष्ट्रीय भावना को तीव्रत्तम स्तर पर पहुँचाया।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख सभी को सेना में समान रूप से भर्ती करके साम्प्रदायिक एकता व सौहार्द उत्पन्न किया।
  • प्रवासी भारतीयों ने तन-मन-धन से फौज को सहयोग देकर देश की स्वतंत्रता में योगदान दिया।
  • मुंबई नौसेना का 1946 ई. का संघर्ष भी बोस की आजाद हिंद फौज से ली गई प्रेरणा का परिणाम था। • अग्रेंजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
  • महिलाओं ने जेवर दिए, बताई देवी ने संपत्ति दान कर दी, लक्ष्मी स्वामीनाथन ने रेजीमेंट का नेत्तृत्व किया। हजारों स्त्रियाँ युद्ध के मोर्चों पर सक्रिय रही, जिससे संघर्षशील आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी हुई।

भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण एवं विस्थापितों का पुनर्वास Class 9 इतिहास Chapter 8 Important Questions 2025


प्रश्न 1. भारत का विभाजन किन कारणों से हुआ? Most Important
OR
भारत के विभाजन के प्रमुख कारणों पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर – भारत का विभाजन निम्नलिखित कारणों से हुआ :-

1. अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति – भारत में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अंग्रेज़ों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् भारत में अंग्रेज़ों ने मुसलमानों का पक्ष लेना और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना आरम्भ कर दिया। उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों में आपसी फूट डालने का हर सम्भव प्रयास किया। इस नीति के परिणामस्वरूप ही 1947 ई. में भारत का विभाजन हुआ।

2. मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक विचारधारा – भारत के विभाजन का मुख्य कारण मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक विचारधारा थी। मुस्लिम लीग ने अपने उद्देश्य में स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय मुसलमानों के पृथक राजनीतिक अस्तित्व के रूप में उनके हितों की रक्षा करेगी। 1939 ई. में जब ब्रिटिश सरकार की मनमानी नीति के विरोध में कांग्रेस के मन्त्रीमण्डल ने त्याग पत्र दे दिया तो जिन्ना ने मुसलमानों को ‘मुक्ति दिवस’ मनाने के लिए कहा। 1940 में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए पृथक स्वतन्त्र देश पाकिस्तान की मांग संबंधी प्रस्ताव पास करके अलग स्वतन्त्र राज्य के लिए संघर्ष करना आरम्भ कर दिया। जिसके कारण विभाजन हुआ।

3. जिन्ना की हठधर्मिता – मोहम्मद अली जिन्ना बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति था, वह अपनी हठधर्मिता पर चलते हुए लंदन के तीनों गोलमेज सम्मेलनों में साम्प्रदायिकता का राग अलापता रहा। वह हर उस प्रस्ताव का विरोध करता रहा जिसमें पाकिस्तान का समर्थन नहीं था। उसने दंगे व कत्लेआम करवाकर कांग्रेस पर दबाव बनाया तथा पाकिस्तान बनवाने में सफल हो गया।

4. कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति – मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के मार्ग में बाधाएँ डालने की नीति अपनाई। दूसरी ओर कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मुस्लिम लीग का साथ चाहती थी। इनसे सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला। देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़क रहे थे, जिनके पीछे मुस्लिम लीग का ही हाथ था। कांग्रेस को अब यह विश्वास हो गया था कि देश की शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए देश के बंटवारे को स्वीकार करना आवश्यक है।

5. मुस्लिम लीग की प्रत्यक्ष कार्यवाही एवं साम्प्रदायिक दंगे – मुस्लिम लीग पाकिस्तान का निर्माण करने एवं सत्ता प्राप्त करने के लिए बेचैन हो रही थी। उसने कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया और 16 अगस्त, 1946 ई. को प्रत्यक्ष कार्यवाही की घोषणा कर दी। उस दिन बंगाल विशेषकर कलकत्ता में दंगे हुए। यहाँ मुसलमानों ने सैकड़ों हिन्दुओं की हत्या कर दी तथा उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया। शीघ्र ही साम्प्रदायिक दंगों की यह आग पूरे उत्तर भारत में फैल गई। ऐसी परिस्थिति में निर्दोष जनता के खून-खराबे को बंद करने के लिए कांग्रेस देश के विभाजन को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गई।


प्रश्न 2. रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका पर विचार करें।

उत्तर – 4 जुलाई, 1947 ई. को सरदार पटेल द्वारा देशी शासकों से अपील की गई कि देश के सामूहिक हितों के लिए रियासतों को सुरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार सम्बन्धी विषयों पर भारतीय संघ में शामिल हो जाना चाहिए। तत्पश्चात् रियासतों के समायोजन सम्बन्धी पत्र तैयार किया गया। सरदार पटेल तथा उनके सचिव मेनन ने बहुत से शासकों से भेंट की और उनसे अधिमिलन सम्बन्धी पत्र पर हस्ताक्षर करने की अपील की। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप अधिकतर रियासतें स्वतंत्रता से पहले ही भारतीय संघ मे शामिल हो गईं। 15 अगस्त, 1947 ई. के पश्चात् भारत की स्वतन्त्र सरकार को रियासतों के सम्बन्ध में केवल जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर की समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि इन रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में शामिल होने से मना कर दिया। सरदार पटेल के योगदान को देखते हुए उन्हें ‘लोह पुरुष’ की उपाधि दी गई।


प्रश्न 3. जूनागढ़ की रियासत का भारतीय संघ में विलय कैसे हुआ?

उत्तर – जूनागढ़ काठियावाड़ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक प्रमुख रियासत थी। इस रियासत की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत हिन्दू तथा 20 प्रतिशत मुसलमान थे। जूनागढ़ का नवाब मुसलमान था। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी। नवाब की इस घोषणा का वहाँ की जनता ने घोर विरोध किया। जूनागढ़ के नवाब ने अपने पड़ोस की दो रियासतों में अपनी सेनाएँ भेज दी। ये दोनों रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो चुकी थी। भारतीय सरकार ने इसका उचित उत्तर देने के लिए ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेज दी। ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में सेना के पहुँचने पर नवाब ने पाकिस्तान से मदद की प्रार्थना की। मदद की कोई आशा न देखकर नवाब अपने परिवार तथा धन-दौलत सहित विमान द्वारा कराची चला गया। 20 फरवरी, 1948 ई. को जूनागढ़ में जनमत करवाया गया। इस जनमत में 99 प्रतिशत मत भारतीय संघ में सम्मिलित होने के पक्ष में थे। इस प्रकार जूनागढ़ को भारतीय संघ में शामिल किया गया।


प्रश्न 4.  हैदराबाद की रियासत भारतीय संघ में कैसे शामिल हुई?

उत्तर – हैदराबाद भारत की बड़ी रियासतों में से एक थी। 1947 ई. में मीर उसमान अली खाँ बहादुर, हैदराबाद का निज़ाम (शासक) था। हैदराबाद की रियासत में 85 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दुओं की थी। निजाम किसी भी संघ में शामिल नहीं होना चाहता था। उसने भारतीय संघ के सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। निज़ाम ने लार्ड माउंटबेटन की हैदराबाद में जनमत करवाने की मांग भी अस्वीकार कर दी। 29 नवम्बर, 1947 ई. में भारत की स्वतन्त्र सरकार और निज़ाम के बीच एक समझौता हो गया। इसके अनुसार भारत सरकार तथा निज़ाम दोनों ने मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हुए एक दूसरे के हितों में काम करने का वचन दिया परन्तु हैदराबाद का निजाम अधिक समय तक इस समझौते की शर्तों पर टिक न सका। उसने अपने फरमानों द्वारा हैदराबाद से भारत जाने वाली सभी मूल्यवान धातुओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। साथ ही उसने भारतीय सिक्कों को भी अवैध घोषित कर दिया। इसके अतिरिक्त हैदराबाद के निज़ाम ने भारतीय सरकार की स्वीकृति के बिना रियासत की सेना की संख्या भी बढ़ा दी। रज़ाकारों ने हैदराबाद के मुसलमानों को भड़काना आरम्भ कर दिया। अन्त में विवश होकर भारत सरकार ने हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया। 13 सितम्बर, 1948 ई. को मेजर जनरल जे. एन. चौधरी के नेतृत्व में सेना हैदराबाद भेजी गई । 18 सितम्बर, 1948 ई. को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई और उस पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् निज़ाम ने भारतीय संघ में शामिल होने की घोषणा कर दी।


प्रश्न 5. कश्मीर की रियासत का भारतीय संघ में विलय पर चर्चा करें?

उत्तर – कश्मीर भारत के उत्तर में स्थित एक बड़ी रियासत थी। इस रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। रियासत की बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी। इस रियासत की सीमाएँ भारत तथा पाकिस्तान दोनों के साथ लगती थी। इसलिए दोनों देश इसे अपने देश में शामिल करने के इच्छुक थे, परन्तु कश्मीर का शासक किसी भी देश में शामिल नहीं होना चाहता था। कश्मीर की रियासत को अपने साथ मिलाने हेतु विवश करने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने कश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी कर दी। पाकिस्तान ने कश्मीर को अनाज, पेट्रोल तथा कई अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बन्द कर दी। सीमावर्ती क्षेत्रों में कबाइलियों द्वारा गड़बड़ी करवानी आरम्भ कर दी। 22 अक्टूबर, 1947 ई. को पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबाइली हमला करवा दिया। जम्मू कश्मीर की सेना ने कर्नल नारायण सिंह के नेतृत्व में कबाइलियों का मुकाबला किया। लड़ाई के दौरान रियासत के कुछ मुसलमान सैनिक भी कबाइलियों के साथ मिल गये। परिणामस्वरूप कबाइलियों ने रियासत के कई सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया तथा श्रीनगर की बिजली सप्लाई बन्द कर दी। ऐसी परिस्थितियों में कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 ई. को भारत की सरकार से सैनिक सहायता की अपील की और अपनी रियासत को भारतीय संघ में शामिल करना स्वीकार कर लिया।


प्रश्न 6. विस्थापितों की समस्याओं का वर्णन करें। (5 mark )

उत्तर

विस्थापितों की समस्याएँ – विभाजन के कारण सबसे अधिक दुःख एवं मुसीबतें पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिन्दुओं और सिक्खों को सहनी पड़ी। विस्थापित होकर भारत आए इन लोगों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित थीं :

  1. पहली समस्या विस्थापितों के लिए निवास स्थान उपलब्ध करवाने की थी। लाखों की संख्या में हिन्दू तथा सिक्ख अपने-अपने गाँव, शहर तथा घरों को छोड़ कर भारत आ गए थे। उनके पास भारत आने पर न घर था न ही छत जिसके नीचे रहकर वे अपना जीवन व्यतीत कर सकें।
  2. विस्थापितों की दूसरी बड़ी समस्या भोजन, वस्त्र तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की थी। पाकिस्तान से भारत आते हुए इन लोगों की धन-संपत्ति भी लूट ली गई थी। अब इनके पास भोजन, वस्त्र तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए धन भी नहीं था।
  3. तीसरी समस्या जमीन की थी। जो सिक्ख तथा हिन्दू जमींदार पाकिस्तान से भारत आए थे, उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था। भारत आने पर उनके पास कोई जमीन नहीं थी जिस पर वे खेती कर सकें जबकि पाकिस्तान में उनके पास कृषि योग्य उपजाऊ जमीन थी।
  4. चौथी समस्या रोजगार एवं व्यवसाय की थी। अधिकतर हिन्दू तथा सिक्ख विस्थापित पाकिस्तान के शहरों में रहने वाले थे और वहां उनका अच्छा व्यापार चलता था। इनमें कई अमीर साहूकार एवं व्यापारी थे। अनेक लोगों के पाकिस्तान में अपने उद्योग धन्धे थे।
  5. विस्थापितों की पांचवीं समस्या बिछुड़े हुए अपनों से मिलने की थी। भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आ रहे हिन्दू तथा सिक्ख विस्थापितों के परिवार बिखर गए। विस्थापन के अराजक माहौल में कई परिवारों से उनके सदस्य बिछड़ गए। ये लोग या तो दंगे की भेंट चढ़ गए या उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बना दिया गया।

प्रश्न 7. विस्थापितों की समस्याओं का वर्णन करें। (2 Marks )

उत्तर

  • निवास स्थान ।
  • भोजन, वस्त्र व आवश्यक सामग्री।
  • कृषि योग्य भूमि ।
  • व्यवसाय व रोजगार।
  • बिछड़े व बिखरे परिवार
  • स्वास्थ्य

प्रश्न 8.  भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ई. की मुख्य धाराएं कौन सी थी?

उत्तर

जुलाई 1947 ई. में ब्रिटिश संसद में भारत को स्वतन्त्रता की प्राप्ति ‘भारत स्वतंत्रता अधिनियम’ पारित किया गया। इस अधिनियम की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित थी:

  • 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत तथा पाकिस्तान दो नये अधिराज्य बना दिए जाएंगे।
  • इन दोनों अधिराज्यों की सीमाएँ निश्चित कर दी गई।
  • दोनों अधिराज्यों का एक-एक गवर्नर-जनरल होगा। यदि दोनों अधिराज्य सहमत हों तो एक ही व्यक्ति को दोनों अधिराज्यों का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया जा सकता है।
  • यह निश्चित किया गया कि दोनों अधिराज्यों की संविधान सभाएँ जब तक अपने-अपने अधिराज्य का संविधान नहीं बना लेती, तब तक विधानमण्डल की सारी शक्तियाँ सभा के पास रहेंगी।
  • 15 अगस्त, 1947 ई. के पश्चात् ब्रिटिश सरकार का किसी भी अधिराज्य पर अधिकार नहीं होगा।
  • देशी रियासतों को भारत अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित होने की स्वतन्त्रता दी गई और यदि ये रियासतें चाहें तो दोनों से अलग भी रह सकती हैं।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका Class 9 इतिहास Chapter 9 Important Questions 2025


प्रश्न 1. 1857 ई. की क्रांति में राव तुलाराम की क्या भूमिका रही? व्याख्या करें।

उत्तर – राव तुलाराम दूर-दृष्टि रखने वाला एक जनरल था। उसने पटौदी की इस छोटी-सी टक्कर से शावर्स की सेना की ताकत का अंदाजा लगा लिया। शावर्स के रेवाड़ी पहुंचने से पहले ही राव तुलाराम ने 5 अक्टूबर, 1857 ई. को किला खाली कर दिया। राव तुलाराम पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने सहायता के लिए विदेश जाने का प्रयास किया परन्तु अफगानिस्तान तक ही पहुंच पाए और काबुल में 23 सितम्बर, 1863 ई. को उनका देहांत हो गया।


प्रश्न 2. 1857 ई. की क्रांति में रोहनात गांव की भूमिका पर विचार करें।

उत्तर – गांव रोहनात हांसी से आठ मील दक्षिण की ओर स्थित है। अंग्रेज सैनिकों ने 800 घुड़सवार व 4 तोपें लेकर तोशाम पर हमला किया और उसके बाद रोहनात गाँव पर अंग्रेजी सेना व बीकानेर के सैनिकों ने जबरदस्त हमला किया, जिसका गाँव के देशभक्त क्रांतिकारियों ने जेली, बल्लम, गंडासों आदि हथियारों से डटकर मुकाबला किया। इसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई। परंतु सितम्बर के आखिरी दिनों में अंग्रेजों की पकड़ मजबूत होने लगी। अंग्रेजों ने तोपों के साथ गाँव रोहनात पर हमला किया। बहुत से हिस्सों को जला दिया गया जिसमें सैंकड़ों क्रांतिकारी शहीद हुए । ‘मंगल खां’ व ‘बिरड़ दास बैरागी’ को तोप से उड़ा दिया गया व ‘रूपा खाती’ को मार डाला गया। अन्य साथियों को हांसी ले जाकर पत्थर की गिरड़ी के नीचे कुचल दिया गया।


प्रश्न 3. असहयोग आंदोलन में हरियाणा के योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर –  1920 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ। इसमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन को चलाने का निर्णय लिया गया। अतः हरियाणा में लाला लाजपत राय, लाला दुनी चन्द, लाला मुरलीधर, गणपतराय आदि महान राष्ट्रीय नेताओं ने विभिन्न शहरों में जनसभाएँ आयोजित की। असहयोग आंदोलन के अन्तर्गत सरकार को किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का निर्णय लिया गया, जिसके परणामस्वरूप प्रदेश के सैकड़ों लोगों ने उपाधियाँ त्याग दी। विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जाना बन्द कर दिया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी। किसानों द्वारा कर देना बन्द कर दिया गया। विभिन्न शहरों में शराब की दुकानों एवं विदेशी सामान बेचने बाली दुकानों के सामने धरने दिये जाने लगे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई और खादी पहनने की शपथ ली गई। हरियाणा में असहयोग आंदोलन गाँव-गाँव तथा शहर-शहर में बड़ी सफलता से चल रहा था। इससे सरकार घबरा गई और उसने आंदोलनकारियों की धर-पकड़ आरम्भ कर दी। हरियाणा से हजारों की संख्या में आंदोलनकारी गिरफ्तार किये गए। झज्जर के पंडित श्रीराम शर्मा ने भी असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने व्यक्तियों को न केवल एकजुट होने अपितु विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने के लिए भी प्रेरित किया।


प्रश्न 4. भारत नौजवान सभा में हरियाणा की क्या भूमिका थी?

उत्तर – इस नौजवान सभा ने हरियाणा में विभिन्न शहरों में शाखाएँ स्थापित की। इस सभा के व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों की गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे तथा क्रान्तिकारी नेताओं की हर तरह से सहायता करते थे। इसमें पोस्टर लगाना, हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना आदि प्रमुख कार्य थे लेकिन 1930 ई. में इस संगठन को अंग्रेजों ने अवैध घोषित करके इसके सदस्यों की धर पकड़ शुरू कर दी। अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया गया। धीरे-धीरे यह सभा कमजोर पड़ती गई।


प्रश्न 5. हरियाणा कब व किस प्रकार एक पूर्ण राज्य के रूप में विकसित हुआ? स्पष्ट करें।

उत्तर – स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हरियाणा पंजाब राज्य के साथ जुड़ा हुआ था। इसके आर्थिक व सामाजिक हितों की निरंतर उपेक्षा की जा रही थी जिससे यहाँ के लोगों को अनुभव होने लगा कि पंजाब में रह कर उनका राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विकास नहीं हो सकता। इसके फलस्वरूप अलग प्रान्त के निर्माण के लिए आंदोलन छिड़ गया ।

अलग प्रान्त की मांग को और अधिक प्रबल बनाने के लिए आर्य समाज, हिन्दू महासभा तथा जनसंघ आदि संगठनों ने इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन किए। पंडित श्रीराम शर्मा की अध्यक्षता में ‘हरियाणा विकास कमेटी’ द्वारा हरियाणा को अलग प्रांत की मांग को पुरजोर तरीके से रखा गया। पंजाब सरकार ने बहुत लोगों को जेलों में बन्द कर दिया लेकिन विरोध बढ़ता देखकर एक अलग प्रान्त की मांग को स्वीकार कर लिया गया। एक विधेयक के अनुसार 1 नवम्बर, 1966 ई. को हरियाणा का एक पूर्ण राज्य के रूप में उदय हुआ।


प्रश्न 6. अरूण आसफ अली का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर – अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई, 1908 ई. को हरियाणा के कालका में हुआ था। वे एक सशक्त देशभक्त महिला थी। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे भारत में महिलाओं का नेतृत्व किया। वह ग्वालिया टैंक मैदान (मुम्बई) में पहली महिला रही, जिन्होंने राष्ट्र ध्वज फहराया। वे महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई। 1994 ई. में इन्हें ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। इनका नाम हरियाणा व पूरे भारत वर्ष में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है।


प्रश्न 7. सुचेता कृपलानी का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर – सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 ई. को अम्बाला में हुआ। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में इनका योगदान बहुत सराहनीय रहा। महिला आंदोलनों का नेतृत्व करना, उन्हें लाठी चलाना एवं प्राथमिक चिकित्सा की शिक्षा देना इनका महत्वपूर्ण कार्य था। इसके साथ-साथ उन्होंने सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। आजादी के बाद ये स्वतन्त्र भारत में उतर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।


प्रश्न 8. चौधरी छोटूराम कौन थे? उनके द्वारा देशवासियों के लिए योगदान का वर्णन करें।

उत्तर – चौधरी छोटूराम हरियाणा के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपना जीवन दरिद्र किसानों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने पंजाब के नेता फजले हुसैन से मिलकर 1923 ई. में ‘यूनियनिस्ट पार्टी’ का गठन किया। इस पार्टी का उद्देश्य किसानों और पिछड़े हुए गरीब लोगों का उद्धार करना था। जहाँ तक स्वतंत्रता की बात थी वह भी कांग्रेस की तरह ही डोमिनियन स्टेटस की ही मांग करते थे। कांग्रेस का विस्तार अभी तक गांवों तक नहीं हुआ था। चौधरी छोटूराम तथा यूनियनिस्ट पार्टी ने दरिद्र किसानों और पिछड़े हुए लोगों के हितों की आवाज उठाई। 1923 ई. के बाद हुए केंद्रीय विधान परिषद तथा पंजाब विधान परिषद के लगभग सभी चुनावों में यूनियनिस्ट पार्टी विजयी रही। चौधरी छोटूराम ने पंजाब सरकार में मंत्री रहते हुए किसानों के हितों के लिए कई कानून पास करवाए तथा किसानों को साहूकारों एवं महाजनों के चंगुल से मुक्त कराने का प्रयास किया। उनके द्वारा पास करवाए गए कानून ‘सुनहरी कानूनो’ के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने ‘जाट गजट’ नामक अखबार का प्रकाशन एवं संपादन किया तथा ‘ठग बाजार की सैर’ तथा ‘बेचारा किसान’ शीर्षक के तहत 17 लेखों की एक श्रृंखला भी लिखी। उन्होंने किसानों में व्याप्त हीन भावना को मिटाकर आत्मविश्वास उत्पन्न किया। जनसाधारण ने उन्हें ‘रहबर-ए-आज़म’ ‘दीनबंधु’ तथा ‘किसानों का मसीहा’ इत्यादि नाम दिए।


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